- प्रशासन ने पीओपी व सिंथेटिक गणेश प्रतिमाओं की बिक्री पर रोक लगाई
- जिला प्रशासन का दावा पर्यावरण व गोवंश मिलेगा फायदा
- लोग गाय के गोबर से बनीं मूर्तियां खरीदने में रूचि दिखा रहे हैं
MP Cow Dung Ganesh: आगामी दिनों में गणपत्ति बप्पा मोरया के उद्घोष के साथ ही घर- घर में भगवान गजानन की प्रतिमाएं विराजेंगी। गणेश चतुर्थी के मौके पर इस बार बाजारों में बिक्री होने वाली गणेश प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को लुभा रही हैं। मगर इस बार मंदसौर जिला प्रशासन ने नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। गौरतलब है कि, बाजारों में प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित प्रतिमाओं का चलन गत कई वर्षों में तेजी से बढ़ा है। त्योहार के पूर्ण होने पर विसर्जित किए जाने के बाद ये प्रतिमाएं पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती है। यही वजह है कि, मंदसौर में प्रशासन ने पीओपी व सिंथेटिक से बनीं मूर्तियों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।
इसके बाद शहर की एक गोशाला की ओर से भगवान गजानन की काउ डंग (गाय के गोबर) से बनाने का कार्य शुरू किया है। पूरी तरह से इको फ्रेंडली इन प्रतिमाओं की बिक्री को लेकर प्रशासन पूरा सहयोग कर रहा है। जिला प्रशासन के आला अधिकारी जिले भर में इन्हें खरीदने को लेकर आमजन से अपील कर इनके फायदे बता रहे हैं। इसका सीधा असर अब ये हो रहा है कि, लोग गाय के गोबर से बनीं सुंदर व आकर्षक प्रतिमाएं खरीदने में रूचि दिखा रहे हैं। प्रतिमाओं की बिक्री के लिए शहर में प्रशासन ने पशुपतिनाथ मंदिर, दलोदा गोशाला व सीतामऊ गोशाला में अलग-अलग स्टॉल लगाए हैं। जानकारी के मुताबिक सौ से भी अधिक प्रतिमाएं राजधानी भोपाल भी भेजी गई हैं।
गोशालाएं बनेंगी सेल्फ डिपेंड
इस मामले को लेकर जिला प्रशासन का कहना है कि, गाय के गोबर से बनीं प्रतिमाएं जहां इको फ्रेंडली होंगी। पीओपी व सिंथेटिक प्रतिमाओं के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान में कमी आएगी। वहीं गोशालाएं आत्मनिर्भर बनेंगी तो गोवंश का और तेजी से संरक्षण व संवर्धन होगा। वहीं गोवंश की सेवा से जुड़े लोगों के परिवारों का गुजारा बेहतरी से होगा। यह वजह है कि, जिला मुख्यालय पर स्थित हंडिया बाग गोशाला, सीतामऊ और अखिलानंद सरस्वती ग्रामीण गोशाला गाय के गोबर से भगवान गजानन की ईको फ्रेंडली मूर्तियों सहित कई अन्य प्रोडक्ट बना रही है। वहीं गोशालाओं से जुड़े लोगों का कहना है कि, गोमूत्र और गोबर से बनी इन प्रतिमाओं को सनातनी परंपरा के तौर पर अच्छा माना जाता है। वे बताते हैं कि गोबर से बनें उत्पादों में रासायनिक रंगों के स्थान पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।