- कल्याणपुरी, त्रिलोकपुरी, रोहिणी सी, शालीमार बाग में आप की विजय
- चौहान बांगर में कांग्रेस की जीत
- बीजेपी का खाता नहीं खुला
नई दिल्ली। एमसीडी उपचुनाव को सेमीफाइनल की तरह से देखा जा रहा था। पांच वार्ड के लिए हुए उपचुनाव में बेशक आप ने चौका लगाया है। लेकिन सीलमपुर इलाके में चौहान बांगर की विजय आप के नेतृत्व को परेशान कर सकती है। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों। दरअसल चौहान बांगर में कांग्रेस का उम्मीदवार विजयी हुआ है। वो विजय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि विधानसभा चुनाव में जिस तरह से मुस्लिम आबादी ने आप के समर्थन में मतदान किया था वो यहां के चुनावी नतीजों से नदारद है।
चौहान बांगर में कांग्रेस के उम्मीदवार की शानदार जीत
चौहान बांगर में कांग्रेस के उम्मीदवार 10 हजार मतों से जीत दर्ज की है। जीत और हार के बीच का ये आंकड़ा ही परेशानी पैदा करने वाला है। क्या मुसलमान समाज, आम आदमी पार्टी से छिटक गया है। क्या कोरोना के समय मरकज के साथ जिस तरह से आप का व्यवहार रहा उसका असर है या क्या दिल्ली दंगों में आप ने जिस तरह से अपने पार्षद को डंप कर दिया उसका असर है। इस संबंध में जानकारों की राय बंटी हुई है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि यह बात सच है कि सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी के सामने दो बड़ी मुश्किलें दिल्ली दंगों और कोरोना के रूप में सामने आई। दिल्ली दंगों में जिस तरह से आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन का नाम और साक्ष्य आए उसके बाद आम आदमी पार्टी का बचाव करना आसान नहीं था। विपक्ष के हमलों को रोकने के लिए आप के सामने सिर्फ यही विकल्प था कि वो ताहिर हुसैन के खिलाफ कार्रवाई करती। निश्चित तौर पर मुस्लिम समाज में यह संदेश गया होगा कि आप के व्यवहार का बदला चुनावों में लेना है। लेकिन एक बात साफ है कि नाराजगी सालों साल नहीं चलती है और सियासत में मुद्दे समय के साथ बदलते भी रहते हैं।
नगर निगम में परचम लहराना आसान नहीं
दूसरे पक्ष का यह मानना है कि कोरोना काल में जिस तरह से मरकज के खिलाफ कुछ सख्त कदम उठाए गए उसके बाद मुस्लिम समाज में आम आदमी पार्टी के खिलाफ आक्रोश फैला, हालांकि मरकज से जुड़े लोगों के खिलाफ एक्शन दिल्ली पुलिस की तरफ से लिया जा रहा था। लेकिन आम जनमानस में यह संदेश गया कि केजरीवाल सरकार उन्हें बचा सकती थी। अब जनता पास अपने मत के जरिए ही प्यार या रोष जाहिर करने का हथियार होता है, लिहाजा जब मौका आया तो जनता ने अपना फैसला सुना दिया। इसके साथ ही सवाल यह है कि अगर कांग्रेस पार्टी मुस्लिम समाज के गुस्से को समेटने में कामयाब रही तो निश्चित तौर पर जब 2022 में नगर निगमों के पूरे चुनाव होंगे तो आप के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है।