- दिल्ली में कोरोना के मामले 31 हजार के पार
- दिल्ली में अस्पताल अब नहीं कर पाएंगे बेड्स की कालाबाजारी, डीडीएमए के सख्त निर्देश
- स्वास्थ्य मंत्रालय ने कंटेनमेंट जोन में टेस्टिंग को बताया नाकाफी
नई दिल्ली। दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सीएम अरविंद केजरीवाल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इससे पहले बुधवार की सुबह वो संकेत दे चुके थे कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एलजी साहब ने जो कुछ कहा उसका वो सम्मान के साथ पालल भी करेंगे। अगर बात दिल्ली की करें तो आम आदमी पार्टी की सरकार यह बात मान रही है जून के अंत तक केस बढ़ेंगे और यह आंकड़ा जुलाई के अंत तक पीक पर जा सकता है।
क्या दिल्ली सरकार के हाथ से निकला मामला
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से जब पूछा गया कि क्या दिल्ली कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की तरफ बढ़ चुका है तो उनका जवाब था कि इसका फैसला तो केंद्र सरकार को करना है। जब यह सवाल स्वास्थ्य मंत्री से पूछा गया तो उनका जवाब था कि दिल्ली में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन नहीं है। लेकिन कंटेनमेंट जोन में जिस तरह से सघन ट्रेसिंग होनी चाहिए थी वो नहीं हुई। इसके साथ यह भी कहा गया कि केंद्र की तरफ से सहयोग में कभी कमी नहीं की गई। लिहाजा दोषारोपण करना सही नहीं होगा।
डीडीएमए ने कसी कमर
दिल्ली में कोरोना की भयावह तस्वीर को देखते हुए डीडीएमए ने खास निर्देश दिए। इसके तहत दिल्ली में अस्पतालों को अब एंट्री गेट पर ही डिस्प्ले बोर्ड लगाकर बेड्स की संख्या में बताना होगा। यही नहीं दिल्ली सरकार के ऐप और स्वास्थ्य पोर्टल पर भी जानकारी साझा की जाएगी ताकि पारदर्शिता बनी रही। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने कहा कि अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए जाने वाले शूल्क के बारे में भी बताना होगा।
क्या है जानकारों की राय
जानकार कहते हैं कि जिस तरह से दिल्ली के सीएम के सुर में नरमी आई है उससे एक बात साफ है कि आप के हाथ से मामला निकल रहा है। बड़ी बात यह है कि देश के अलग अलग सूबों में रिकवरी रेट 55 फीसद से ज्यादा है, लेकिन दिल्ली में यह आंकड़ा 40 फीसद पर बना हुआ है। ऐसे में हालात के खराब होने की संभावना है। दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य महकमा कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की बात कह रहा है तो डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया सीधे सीधे कुछ कहने की जगह जुलाई का प्रोजेक्शन बताते हैं। ऐसी सूरत में केजरीवाल सरकार को लगता है कि वो अपने बलबूते कुछ खास नहीं कर पाएंगे। केंद्र की तरफ से सीधी मदद की जरूरत होगी लिहाजा टकराव की भाषा को तिलांजलि दे देनी चाहिए।