- शिरोमणि अकाली दल (बादल) के साथ भाजपा का दो दशक पुराना रिश्ता रहा, लेकिन किसान आंदोलन के बाद दोनों का साथ छूट गया।
- भाजपा, पंजाब में अभी तक छोटे भाई के रूप में चुनाव लड़ती आई है। 2022 में अब वह नई भूमिका में दिखेगी।
- 2022 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा भाजपा को सुखदेव सिंह ढींढसा का भी साथ मिल गया है।
नई दिल्ली: अपने 25 साल पुराने साथी को छोड़ने के बाद, पहली बार पंजाब में चुनाव लड़ रही भाजपा ने पंजाब के लिए अपनी रणनीति बदल दी है। वह अब केवल शहरी और हिंदू वोटरों की पार्टी नहीं बने रहना चाहती है। इसके लिए वह राज्य के सिख नेताओं को लुभाने में लग गई है। इसमें उसे कैप्टन अमरिंदर से भी मदद मिल रही है। अब तक पार्टी को अकाली दल के नेता और दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी के पूर्व अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पोते इंद्रजीत सिंह, कंवर सिंह टेहरा जैसे सिख नेताओं का साथ मिल गया है।
हिंदू पार्टी की छवि तोड़ने की कोशिश
पंजाब की राजनीति पर करीब से रखने वाले एक सूत्र का कहना है कि 2017 के चुनावों तक भाजपा अपने को हिंदू वोटर और शहरी मतदाताओं तक ही सीमित रखती थी। लेकिन स्थितियां बदल गई हैं। शिरोमणि अकाली दल से उसका गठबंधन टूट चुका है। गठबंधन के समय दोनों दलों में एक तरह की सहमति थी, भाजपा छोटे भाई के रूप में काम करेगी और सिख वोटरों में पैठ नहीं बनाएगी। लेकिन अब वैसा नही है। पार्टी को कैप्टन अमरिंदर सिंह का साथ मिल गया है।
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कैप्टन को भी, संगठन स्तर पर भाजपा की जरूरत है। ऐसे में भाजपा अब अपना दायरा बढ़ा रही है। इसी कड़ी में मनजिंदर सिंह सिरसा,इंद्रजीत सिंह, कंवर सिंह टेहरा , सरचांद सिंह, इकबाल सिंह तुंग जैसे सिख नेता भाजपा से जुड़ गए है। और कई बड़े सिख नेताओं को शामिल करने की कोशिशें जारी हैं।
सुखदेव सिंह ढींढसा का भी मिला साथ
कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा भाजपा को पंजाब में शिरोमणि अकाली (संयुक्त) प्रमुख सुखदेव सिंह ढींढसा का भी साथ मिल गया है। इसके बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल संयुक्त, अमरिंदर की पंजाब लोक कांग्रेस और भाजपा मिलकर चुनाव लड़ रही हैं। इस बार भाजपा बड़े भाई के रुप में चुनाव लड़ेगी। पंजाब में ज्यादातर जाट सिख है, जिन्हें जट सिख भी कहा जाता है। ये पंजाब की आबादी का 30-40 फीसदी हैं। ऐसे में भाजपा हिंदू और सिख नेताओं को जोड़कर पहली बार बड़ा कमाल करने की उम्मीद कर रही है। 2017 में भाजपा ने 117 में से केवल 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 3 सीटें मिली थी।
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