- यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने काशी का मुद्दा उठाया है।
- 1984 में दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या- मथुरा-काशी के मुक्ति का प्रस्ताव पारित किया था।
- अयोध्या-काशी की तरह भाजपा के लिए मथुरा का मुद्दा बड़ा बूस्टर साबित हो सकता है।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दो दिन से बनारस में हैं। वह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने पहुंचे थे। इस दौरान भाजपा शासित विभिन्न राज्यों के मु्ख्यमंत्री भी मौजूद थे। और अब ये मु्ख्यमंत्री अयोध्या में जाने की तैयारी है। जाहिर है भाजपा अयोध्या में बन रहे श्री राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण और काशी विश्वनाथ प्रोजेक्ट को भुनाने की तैयारी में है। और इसी कड़ी में भाजपा ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाने के भी संकेत दिए हैं। इसके लिए बकायदा नई रणनीति पर फोकस किया जा रहा है। जिसके जरिए समाजवादी पार्टी को घेरने की तैयारी है।
केशव प्रसाद मौर्य ने मथुरा का मुद्धा उठाया
भले ही भाजपा ने अयोध्या की तरह कभी भी औपचारिक तौर पर काशी और मथुरा में मंदिर निर्माण का एजेंडा नहीं बनाया। लेकिन उसके नेता काशी और मथुरा की बात करते रहते हैं। बीते एक दिसंबर को उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए कहा कि अयोध्या, काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी और मथुरा की तैयारी है।
इसके बाद कर्नाटक के हुबली से भाजपा विधायक अरविंद बेलाड का भी बयान आया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि हिंदुओं के लिए मथुरा और वाराणसी का मुद्दा खत्म नहीं हुआ है। हम हिंदू के रूप में महसूस करते हैं कि हमारे महान धार्मिक महत्व के स्थानों के साथ अन्याय किया गया है। इसे ठीक किया जाना चाहिए और मथुरा और वाराणसी के साथ न्याय किया जाना चाहिए।
एक सूत्र के अनुसार इस तरह के बयानों से पार्टी यह देखना चाहती है कि इस पर आम लोगों की क्या प्रतिक्रिया आती है। एक तरह से भाजपा इन बयानों से टेस्टिंग कर रही है।
मथुरा क्या मुद्दा बनेगा
इस पर विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया कि 1984 में दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में हुए बैठक में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या- मथुरा-काशी के मुक्ति का प्रस्ताव पारित किया था। और वह अभी भी हमारे एजेंडे मे है। जहां तक काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की बात है तो वह विकास का मुद्दा है। हमारा विषय मुक्ति का है। दोनों मुद्दे जुड़े नहीं हैं। अभी हम अयोध्या में राम निर्माण में लगे हुए हैं। जब समय आएगा तो काशी और मुथरा का मुक्ति का मामला देखेंगे।
हालांकि एक सूत्र का कहना है कि पूरे देश में लोगों को किसी खास मुद्दे पर एक जुट करने के लिए हमेशा नए मुद्दे की तलाश रहती है। और मथुरा मुद्दा ऐसा है, जो न केवल उत्तर भारत बल्कि दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर भारत और पूर्वी और पश्चिमी भारत को एक जुट कर सकता है। हालांकि यह सब एक दो महीने में नहीं किया जा सकता है। रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण का मुद्दा 1984 में वीएचपी ने औपचारिक तौर से स्वीकार किया। और उसके करीब 5 साल बाद भाजपा पालमपुर अधिवेशन (1989) में उसे स्वीकार किया। ऐसे में मथुरा के मुद्दे को इसी तरह समझना चाहिए।
सपा को कैसे घेरेंगे
इस मामले में आरएसएस से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि देखिए आरएसएस ने कभी भी मथुरा और काशी के मुद्दे को नहीं उठाया है। वह किसी आंदोलन का हिस्सा तभी बनती है, जब समाज उसके पीछे खड़ा होता है। राम जन्मभूमि का मुद्दा कुछ इसी तरह का था। अगर आने वाले दिनों में मथुरा या काशी जैसे मुद्दे को समाज उठाएगा, तो उस पर विचार होगा।
एक अन्य सूत्र का कहना है कि मथुरा ऐसा मुद्दा है जो समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है। उसकी वजह यह है कि भगवान कृष्ण खुद यदुवंशी हैं और समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा समर्थन यादवों का ही है। ऐसे में देखना होगा कि इस स्थिति में समाजवादी पार्टी क्या करेगी। हालांकि एक बात साफ है कि इस मुद्दे के जरिए सपा को 2022 से ज्यादा 2024 में घेरने की तैयारी है। जब लोकसभा चुनाव होंगे।