- हरीश रावत अब रामनगर नहीं लाल कुंआ से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने फेसबुक पर माफी मांगते हुए लंबा चौड़ा पोस्ट भी लिखा है।
- स्थानीय नेताओं को दिल्ली से आए नेताओं के कार्यशैली को लेकर भी समस्या है।
- दिसंबर में हरीश रावत के बागी तेवर के बाद आलाकमान ने उन्हें चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बना दिया।
नई दिल्ली: दिसंबर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बागी तेवर के बाद जिस तरह आलाकमान ने उन्हें प्रचार समिति की कमान सौंपी, उससे लगा था कि राज्य में अब कांग्रेस के लिए राह आसान हो जाएगी। लेकिन लगता है कि पंजाब में कांग्रेस के लिए संकटमोचक बने हरीश अपने ही राज्य में फंसते जा रहे हैं। ताजा मामला उनके चुनावी सीट बदलने का है। रावत को पहले पार्टी ने नैनीताल की रामनगर से टिकट दिया था। लेकिन विरोध के चलते उनकी सीट बदल दी गई। अब वह लाल कुंआ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
क्यों बदली गई सीट
सूत्रों के अनुसार हरीश रावत का रामनगर सीट से टिकट करने की वजह उनके धुर विरोधी और पूर्व प्रत्याशी रणजीत सिंह रावत के बगावती तेवर था। हरीश रावत को टिकट दिए जाने के बाद रणजीत रावत ने बगावती तेवर अपना लिया था। और उनके विरोधी प्रदर्शन कर रहे थे। जजिसके बाद पार्टी ने रामनगर सीट से हरीश रावत का टिकट वापस ले लिया। हालांकि रणजीत सिंह रावत को भी टिकट नहीं दिया गया। कांग्रेस ने इस सीट से महेंद्र पाल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन एक बात साफ हो गई है कि हरीश रावत को लेकर पार्टी में अंदरूनी लड़ाई चल रही है।
हरीश रावत ने लिखा भावुक पोस्ट
5 उम्मीदवारों के बदले टिकट
ऐसा नहीं है कि पार्टी ने अंदरूनी कलह की वजह से केवल हरीश रावत की सीट बदली है। पार्टी ने 5 और उम्मीदवारों की सीट बदल दी है। पार्टी ने कालाढूंगी से महेंद्र पाल सिंह की जगह महेश शर्मा को टिकट दिया है। दोईवाला से मोहित उनियाल की जगह गौरव चौधरी को उम्मीदवार बनाया गया है। हालांकि इसके विरोध में कुछ नेताओं ने इस्तीफा दिया है। इसी तरह ज्वालापुर से बरखा रानी की जगह रवि बहादुर को टिकट दिया गया है। ऐसे ही चौबट्टाखाल में केशर सिंह नेगी को टिकट देने से राजपाल बिष्ट के समर्थन में कई कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा दिया है।
पार्टी सू्त्रों के अनुसार स्थानीय नेताओं को दिल्ली से आए कुछ नेताओं से भी परेशानी है । उनकी कार्यशैली की वजह से असंतोष फैल रहा है। उनका कहना है कि निर्णय ऊपर से लिए जा रहे हैं। ऐसे में भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। अब देखना है कि पार्टी चुनावों के पहले इन चुनौतियों से कैसे निपटती है।