- इमरान मसूद का सहारनपुर और उसके आस-पास के क्षेत्र में अच्छा प्रभाव माना जाता है।
- पश्चिमी यूपी हमेशा से समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल गढ़ रहा है।
- भाजपा 2014 से लगातार सभी चुनाव में एक तरफा जीत हासिल करती आई है।
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंगलवार का दिन, भाजपा के लिए भूचाल लाने वाला रहा है। पहले तो कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा, और उसके बाद तीन और विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। और विपक्षी दलों के जरिए ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में भाजपा के कई नेता पार्टी का साथ छोड़ देंगे। चुनावों से पहले भाजपा को बड़ा झटका देने के पीछे अखिलेश यादव हैं।
साफ है कि अखिलेश धीरे-धीरे भाजपा को उसके हर गढ़ में घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में सोमवार को पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता इमरान मसूद भी सपा में शामिल हो गए। मसूद कांग्रेस के लिए पश्चिमी यूपी में बड़ी उम्मीद थे और प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते थे। मसूद को सपा में शामिल कर अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में अपनी किलेबंदी और मजबूत कर ली है। क्योंकि उन्होंने पहले से ही राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर रखा है।
इमरान मसूद से अखिलेश को क्या फायदा
इमरान मसूद के समाजवादी पार्टी में आने से पश्चिमी यूपी की राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है। खास तौर से सहारनपुर और उसके आस-पास के इलाके में मसूद और उनके काजी परिवार का गहरा प्रभाव रहा है। 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने बहुमत से सरकार बनाई थी, उस समय भी सहारनपुर में सपा केवल एक विधानसभा सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी।
मसूद की मुस्लिम समुदाय में अच्छी पकड़ मानी जाती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इमरान समूद कांग्रेस में थे और उस समय पार्टी को प्रदेश में कुल छह सीटें मिली थी। उसमें से 2 सीटें सहारनपुर से मिली थीं। इसके पहले 2007 में मसूद ने निर्दलीय उम्मीदवार रहते हुए सपा के मंत्री जगदीश राणा को हराकर चुनाव जीता था। हालांकि उसके बाद खुद मसूद का चुनावी ग्राफ बहुत अच्छा नहीं रहा। और वह 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे। और 2012, 2017 का विधानसभा चुनाव भी हार गए थे। इसके बावजूद, जिस तरह उनका और उनके परिवार का सहारनपुर और उसके आस-पास के इलाके में प्रभाव है, उसका फायदा लेने की कोशिश अखिलेश यादव कर रहे हैं।
मोदी के खिलाफ दिए थे आपत्तिजनक बयान
इमरान मसदू 2014 में अपने बयानों से चर्चा में आए थे, और उन्होंने नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा था कि वह मोदी की बोटी-बोटी काट देंगे। हालांकि उनके इस बयान के जरिए ध्रुवीकरण की कोशिश काम नहीं आई थी और उन्हें लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था।
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जयंत चौधरी से अखिलेश को बड़ी उम्मीद
पश्चिमी यूपी एक समय आरएलडी और बसपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जहां एक तरफा जीत हासिल की, वहीं 2017 में भाजपा क्षेत्र की करीब 80 फीसदी सीटें हथिया ली। किसानों में प्रमुख पैठ रखने वाली आरएलडी को तो पश्चिमी यूपी में केवल एक सीट मिली। लेकिन किसान आंदोलन के बाद बदले समीकरण को देखते हुए पश्चिमी यूपी में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी, भाजपा जैसा कमाल करना चाहते हैं। दोनों नेताओं की जाट और मुसलमान मतदाताओं से सबसे ज्यादा उम्मीद है।
समाजवादी पार्टी के लिए पश्चिमी यूपी कभी भी एकतरफा जीत वाला क्षेत्र नहीं रहा है। 2012 में भी जब उसे बहुमत मिला था, तब भी पार्टी को 29 सीटें इस इलाके से मिली थी। जबकि 2017 में 16 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में अखिलेश यादव, जयंत चौधरी और इमरान मसूद को अपने साथ लाकर इतिहास बदलने की उम्मीद कर रहे हैं।
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