- इमरान मसूद का 5 दिन में ही समाजवादी पार्टी से हुए मोहभंग, ऐन वक्त पर अखिलेश यादव ने दिया बड़ा झटका
- चंद्रशेखर आजाद की अखिलेश यादव से मुराद पूरी नहीं हो पाई, हालांकि अभी दोनों दलों ने रास्ते खुले रखे हैं।
- समाजवादी पार्टी के लिए टिकट वितरण बड़ी समस्या बन रहा है।
नई दिल्ली: पश्चिमी यूपी की राजनीति के दो प्रमुख चेहरों को बड़ा झटका लगा है। इमरान मसूद और चंद्रशेखर आजाद को यह झटका चुनावों के ऐन वक्त पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने दिया है। और जब उनके क्षेत्र में चुनावों में महज 20 दिन बचे हैं, तो उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा है। असल में इमरान मसूद जहां पूरे गाजे-बाजे के साथ 11 जनवरी को सपा में शामिल हुए थे, वहीं चंद्रशेखर आजाद ने भी 14 जनवरी को सपा के साथ गठबंधन के जल्द ऐलान के संकेत दे दिए थे। लेकिन टिकट बंटवारे में जहां इमरान मसूद के पैरों तले की जमीन खिसक गई , वहीं चंद्रेशखर से गठबंधन की बात बिगड़ गई। अब दोनों नेताओं के सामने 2022 के चुनावों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की ही संकट खड़ा हो गया है।
मसूद का कैसे बिगड़ा खेल
काजी घराने के इमरान मसूद की सहारनपुर और उसके आस-पास के इलाके में अच्छी पकड़ है। और उनका एक बड़ा वोट बैंक है। जिसकी वजह से वह कमजोर कांग्रेस को 2017 के चुनावों में 2 सीट जिताने में सफल रहे थे। और इसी ताकत की वजह से उन्हें उम्मीद थी कि समाजवाजी पार्टी में तवज्जो मिलेगी। उन्हें उम्मीद थी कि सपा से उन्हें बेहट विधान सभा और उनके साथ आए मसूद अख्तर को सहारनपुर देहात से सीट मिलेगी। लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी है। सूत्रों के अनुसार समाजवादी पार्टी ने दोनों सीटों पर दूसरे नेताओं को टिकट पक्के कर दिए हैं। टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने जब इमरान मसूद से बात की तो उनका कहना था कि अभी कुछ मैं नहीं कहूंगा, जल्द ही आगे की योजना पर बात करूंगा।
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सूत्रों के अनुसार इमरान मसूद की अखिलेश यादव के साथ दो दौर की बातचीत हो चुकी थी और तीसरे दौर के लिए शनिवार को फिर मसूद लखनऊ पहुंचे थे, लेकिन भाजपा से धर्म सिंह सैनी के सपा में शामिल होने के बाद समीकरण बदल गए। इसलिए शनिवार को मसूद की अखिलेश यादव से मुलाकात नहीं हो पाई। असल में धर्म सिंह सैनी को नकुड़ सीट मिलना तय है। और उसके बाद बेहट और सहारनपुर देहात सीट भी, सपा के पुराने नेताओं को देने पर सहमति बन गई है। जिससे कि कार्यकर्ताओं में असंतोष नहीं रहे। साथ ही साप धर्म सिंह सैनी से जैसे मजबूत नेता के साथ आने से सैनी, जाट, मुस्लिम वोट का मजबूत समीकरण बनता देख रही हैं। ऐसे में वह मसूद की कुर्बानी देने को तैयारी है। हालांकि उन्हें एमएलसी सीट का ऑफर दिया गया है। जिसे मसूद ने इंकार कर दिया है। इस बीच सपा, मसूद को मनाने की कोशिश में भी है। लेकिन इस बीच मसूद बसपा में भी अपनी संभावना तलाश रहे हैं।
मसूद का पुराना रिकॉर्ड देखा जाय तो वह निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं। 2007 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार रहते हुए सपा के मंत्री जगदीश राणा को हराकर चुनाव जीता था। हालांकि उसके बाद खुद मसूद का चुनावी ग्राफ बहुत अच्छा नहीं रहा। और वह 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे। और 2012, 2017 का विधानसभा चुनाव भी हार गए थे। इसके बावजूद, जिस तरह उनका और उनके परिवार का सहारनपुर और उसके आस-पास के इलाके में प्रभाव है, वह एक बड़ा वोट अपने पक्ष में खींचने में माहिर हैं।
चंद्रशेखर को भी झटका
मायावती से इतर, यूपी में दलित राजनीति का चेहरा बनने की कोशिश में लगे आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद को भी अखिलेश यादव से झटका लगा हैं। अखिलेश और चंद्रशेखर आजाद के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत पक्की हो गई थी। लेकिन सीटों को लेकर बात बिगड़ गई। 14 जनवरी को जो चंद्रशेखर, भाजपा को हराने के लिए एकता में दम की बात कर रहे थे। वहीं उन्होंने 15 जनवरी को अखिलेश यादव पर सम्मान नहीं करने का आरोप लगाकर सपा से गठबंधन नहीं होने का ऐलान कर दिया। हालांकि बाद में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने 2 सीटें चंद्रशेखर को देने की बात का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर इससे ज्यादा सीटें चाह रहे थे, जो उनके पास नहीं था। सूत्रों के अनुसार चंद्रशेखर कम से कम 3 सीट चाह रहे थे। हालांकि उनकी मांग 5 सीटों की थी। लेकिन बात नहीं बन पाई। इस बीच चंद्रशेखर ने अभी भी सपा के साथ गठबंधन के रास्ते खुले रखे हैं। अब देखना है कि राजनीति किस ओर करवट बदलती है।
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