- ऐसा पहली बार होगा जब राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के चुनावी मैनेजमेंट की भी परीक्षा होगी।
- पांच में से चार राज्य ऐसे हैं, जहां पर कांग्रेस के पास चुनावी जीत हासिल कर कार्यकर्ताओं को बड़ा बूस्ट देने का मौका मिला।
- कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को साल 2019 में यूपी का प्रभारी बनाकर, उनकी राजनीतिक पारी का आगाज कराया था।
Assembly Elections 2022: पांच राज्यों के चुनावी नतीजे 10 मार्च को घोषित होंगे। इन नतीजों से गांधी परिवार का भी सबसे बड़ा टेस्ट होने वाला है। क्योंकि ऐसा पहली बार होगा जब राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के चुनावी मैनेजमेंट की भी परीक्षा होगी। अभी तक राहुल गांधी ही सोनिया गांधी की विरासत को संभाल रहे थे। और उन्ही के नेतृत्व में कांग्रेस, पिछले 7-8 साल में आधिकारिक और गैर आधिकारिक रूप से चुनाव लड़ रही हैं। लेकिन 2022 के चुनाव में प्रियंका गांधी ने परदे के सामने आकर उत्तर प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व किया है। ऐसे में अब दोनों नेताओं के लिए 5 राज्यों के चुनावी नतीजे बेहद अहम साबित होंगे।
चार राज्यों में भुना पाएगी मौका
पांच राज्यों में से चार राज्य ऐसे हैं, जहां पर कांग्रेस के पास जीत हासिल कर कार्यकर्ताओं को बड़ा बूस्ट देने का मौका है। क्योंकि एक तरफ जहां पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी, वहीं गोवा, उत्तराखंड, मणिपुर में मुख्य विपक्षी दल के रूप में दोबारा सत्ता हासिल करने का मौका है। अगर कांग्रेस इन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करती है और नतीजे उसके अनुकूल आते हैं, तो पार्टी को बड़ा बूस्ट मिलेगा। वहीं राहुल गांधी के नेतृत्व पर उठ रही आवाजों को चुप कराया जा सकेगा। लेकिन अगर पार्टी इन राज्यों में सत्ता नहीं हासिल कर पाती है, तो तय है राहुल गांधी के नेतृत्व पर कहीं ज्यादा सवाल उठने लगेंगे। और जी-23 पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरेगा।
यूपी में वजूद बचाने की चुनौती
कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को साल 2019 में यूपी का प्रभारी बनाकर, उनकी राजनीतिक पारी का आगाज कराया था। और उन्हें उत्तर प्रदेश में अपने दम पर करीब 30 साल से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस को दोबारा पटरी पर लाने की जिम्मेदारी मिली थी। यह बात तो सभी राजनीतिक पंडित मानते हैं, कि 2022 के चुनावों में प्रियंका से सत्ता में वापसी जैसे कमाल की उम्मीद करना बेमानी है। लेकिन अगर पार्टी अपना वोट प्रतिशत बढ़ाती है और सीटों की संख्या में तीन से चार गुना इजाफा करती है, तो प्रियंका के नेतृत्व पर जरूर मुहर लगेगी। 2017 के चुनाव में कांग्रेस को सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़कर 6.25 फीसदी वोट मिले थे। जबकि 7 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। ऐसे में अगर 10 मार्च को पार्टी 2017 से बेहतर प्रदर्शन नहीं करती है तो राहुल गांधी की तरह प्रियंका गांधी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठेंगे। हालांकि कांग्रेस पार्टी के नेताओं का भी मानना है कि वह 2022 से ज्यादा 2024 पर फोकस कर रहे हैं।
विपक्ष दलों में कद बढ़ेगा या घटेगा
5 राज्यों के चुनावी नतीजों से एक बात और साफ होगी कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मोदी के खिलाफ कांग्रेस के बिना मोर्चा तैयार हो सकता है। क्योंकि अगर पार्टी यूपी के अलावा 4 राज्यों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है। तो ममता बनर्जी, शरद पवार और के.चंद्रशेखर राव के तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिशों को मदद मिलेगी। साथ ही अगर कांग्रेस को शामिल कर गैर भाजपाई दलों का कोई गठबंधन बनता है, तो उसमें कांग्रेस का कद बेहद कमजोर होगा। लेकिन अगर पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो फिर नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के गठबंधन में कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका में आ जाएगा। जाहिर है पांच राज्यों के चुनावी नतीजे गांधी परिवार के लिए बेहद अहम होने वाले हैं। और उससे पार्टी का भविष्य भी तय होगा।