- कम वोटिंग से सभी दलों में बेचैनी है। लेकिन भाजपा में इस बात को लेकर चिंता है कि शहरी मतदाताओं के कम निकलने से उसे नुकसान हो सकता है
- बचे दो चऱणों में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख दांव पर लगी हुई है।
- गोरखपुर शहर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनावी मैदान में हैं।
UP Assembly Election 2022: यूपी में लगातार हर चरण में कम वोटिंग ने राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ा दी है। ऐसे में राजनीतिक दलों ने छठवें और सातवें चरण में वोटिंग बढ़ाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। क्योंकि अगर इन चरणों में वोटिंग कम हुई तो खास तौर से सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अब तक के पांच चरणों में जो ट्रेंड सामने आया है, उसमें दो बाते निकल सामने आ रही हैं। पहली बात यह है कि शहरी इलाकों में वोटिंग कम हुई है। इसी तरह कई चरणों में पुरूषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा वोटिंग सामने आई है।
अब तक हर चरण में कम वोटिंग
यूपी चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों के लिए 10 फरवरी को वोट डाले गए थे। इस चरण में 62.08 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि 2017 में इन सीटों पर 63.47 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस चरण में कैराना में रिकॉर्ड 75.12 फीसदी तो गाजियाबाद में सबसे कम 54.19 मतदान हुआ।
दूसरे चरण में 55 सीटों के लिए 14 फरवरी को वोटिंग हुई थी। इस चरण में 62.82 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि 2017 में इन सीटों पर 65.53 फीसदी वोटिंग हुई थी। अमरोहा में सबसे ज्यादा 72.27 फीसदी तो शाहजहांपुर में सबसे कम 58.83 वोटिंग हुई।
तीसरे चरण में 20 फरवरी को 59 सीटों पर वोटिंग हुई थी। थी। इस चरण में 61.61 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि 2017 में इन सीटों पर 62.21 फीसदी वोटिंग हुई थी। ललितपुर में सबसे ज्यादा 71.27 फीसदी तो जालौन में सबसे कम 59.25 फीसदी वोटिंग हुई थी।
चौथे चरण में 59 सीटों पर 23 फरवरी को मतदान हुआ। इस चरण में 61.65 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि 2017 में इन सीटों पर 62.55 फीसदी वोटिंग हुई थी। पीलीभीत में सबसे ज्यादा 69.20 फीसदी तो फतेहपुर में 59.92 फीसदी वोटिंग हुई थी।
पांचवे चरण में 61 सीटों पर 27 फरवरी को मतदान हुआ। इस चरण में 57.91 फीसदी वोटिंग हुई थी। जबकि 2017 में इन सीटों पर 58.24 फीसदी वोटिंग हुई थी। बाराबंकी में सबसे ज्यादा 66.94 फीसदी तो गोंडा में सबसे कम 57.37 फीसदी वोटिंग हुई थी।
इस पैटर्न से किसे नुकसान
कम वोटिंग से सभी दलों में बेचैनी है। लेकिन भाजपा में इस बात को लेकर परेशानी है कि शहरी मतदाताओं के कम निकलने से उसे नुकसान हो सकता है। साथ ही पार्टी में इस बात का तर्क है कि कम वोटिंग का मतलब है कि मौजूदा सरकार के खिलाफ ज्यादा नाराजगी नहीं है। और सत्ता विरोधी लहर नहीं है। साथ ही महिलाओं की बढ़-चढ़कर वोटिंग की बात आ रही है, उससे पार्टी का मानना है कि कल्याणकारी योजनाओं की वजह से भाजपा को फायदा मिलेगा।
वहीं सपा खेमा ग्रामीण इलाकों में ज्यादा वोटिंग को सत्ता विरोधी मान रहा है। साथ ही शहरों में कम वोटिंग का भी उसे फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है। साफ है कि राजनीतिक दल अपने हिसाब से नफा-नुकसान देख रहे हैं। लेकिन कम वोटिंग चिंता भी बढ़ा रही है। इसीलिए अगले दो चरणों में राजनीतिक दल ज्यादा वोटिंग के लिए जोर लगा रहे हैं।
योगी-मोदी का चलेगा मैजिक
छठवें और सातवें चरण में मिलाकर 111 सीटों पर वोटिंग होनी है। इसमें सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख दांव पर लगी हुई है। छठे चरण में गोरखपुर शहर सीट से जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनावी मैदान में हैं। बल्कि सातवें चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में भी चुनाव में है। यह दो चरण कितने अहम हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वांचल में डेरा डाले हुए हैं। और 3 मार्च से 5 मार्च तक बनारस में ही रहने वाले हैं। योगी आदित्यनाथ भी गोरखुपर में डेरा डाल चुके हैं। भाजपा के अलावा अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी और मायावती भी पूर्वांचल में पहुंच गई हैं। साफ है कि सभी नेताओं की कोशिश है वोटरों को लुभा कर ज्यादा से ज्यादा वोटिंग करा सके। जिससे उन्हें वोट मिल सके।