- ममता बनर्जी का फिलहाल बंगाल, गोवा, त्रिपुरा, मेघालय, असम में ज्यादा प्रभाव हैं।
- कांग्रेस कमजोर प्रदर्शन के बावजूद 2019 में 19.55 फीसदी वोट पाने के साथ लोकसभा में दूसरा सबसे बड़ा दल है।
- ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल चुनाव में जीत के बाद राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का चेहरा बनना चाहती हैं ?
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब सोनिया गांधी से मिले बिना दिल्ली से मुंबई चले गईं। तभी अंदाजा हो गया था कि उनके मन में कुछ और पक रहा है। और इसका खुलासा उन्होंने शरद पवार से कल (एक दिंसबर) मुलाकात के बाद कर दिया। उन्होंने बयान दिया "यूपीए क्या है? कोई यूपीए नहीं है।" असल में जब बुधवार को पत्रकारों ने ममता बनर्जी से पूछा कि क्या शरद पवार को यूपीए का नेतृत्व करना चाहिए? इसके जवाब में ममता बनर्जी ने यूपीए क्या है, कहकर अप्रत्यक्ष रुप से कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल ही उठा दिए। फिलहाल यूपीए का नेतृत्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास है।
कांग्रेस के बिना तीसरा मोर्चा बनाना चाहती हैं
ममता बनर्जी यहीं नहीं रुकी उन्होंने कहा कि आज जो परिस्थिति है देश में, जैसा फासीवाद है, उसके खिलाफ एक मजबूत वैकल्पिक ताकत बनानी पड़ेगी, अकेला कोई नहीं कर सकता है, जो मजबूत है उसे लेकर करना पड़ेगा।
साफ है कि ममता चाहती हैं कि विपक्ष का नेतृत्व अब कांग्रेस के पास नहीं रहे। यही नहीं उन्होंने राहुल गांधी का नाम नहीं लिए बिना निशाना साधा कि कोई व्यक्ति कुछ न करे और सिर्फ विदेश में ही रहे तो काम कैसे चलेगा? उन्होंने इशारों में कहा कि अगर आप फील्ड में नहीं रहेंगे तो बीजेपी आप को बोल्ड कर देगी। अगर आप फील्ड में रहेंगे तो बीजेपी हार जाएगी।
कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही हैं ममता
कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं है, इसके संकेत ममता बनर्जी पिछले कुछ समय से लगातार दे रही हैं। संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कांग्रेस की ओर से बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में तृणमूल के नेता शामिल नहीं हुए। इसके अलावा तीनों कृषि कानूनों पर सोनिया गांधी के नेतृत्व में संसद में प्रदर्शन से भी तृणमूल ने दूरी बना ली। और उसने अपना अलग प्रदर्शन किया। साथ ही वह लगातार कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को तृणमूल में शामिल कर रही है। जिससे भी लगता है कि दोनों दलों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं।
कांग्रेस ने साधा निशाना
इतने हमले के बाद कांग्रेस कैसे चुप रह सकती थी। तो हमले की कमान ममता बनर्जी के राज्य बंगाल से आने वाले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने संभाली। उन्होंने गुरुवार को पूछा कि क्या टीएमसी अपने 4 फीसदी पॉपुलर वोटों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सकती हैं। चौधरी ने पूछा क्या आप कांग्रेस के 20 प्रतिशत वोट के बिना मोदी का मुकाबला कर सकती हैं? उन्होंने यह भी कहा कि ममता बनर्जी मोदी का भेदिया बनकर कांग्रेस और विपक्ष को कमजोर करना चाहती हैं।
225 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस की सीधी टक्कर
अधीर रंजन कांग्रेस के जिस 20 फीसदी वोट की बात कर रहे हैं। वह इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि 2019 के परिणाम का विश्लेषण किया जाय तो भाजपा के बाद कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसे दहाई अंक में वोट मिले थे। भाजपा को जहां 37.38 फीसदी वोट मिले , वहीं कांग्रेस को 19.55 फीसदी वोट मिले थे। जबकि टीएमसी को 4.07 फीसदी वोट मिले थे।
कांग्रेस की ताकत पर सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार ने टाइम्सनाउ नवभारत से बात करते हुए अगस्त 2021 में कहा था "देखिए मीटिंग और नाश्ते से ज्यादा कुछ नहीं होने वाला है, इस तरह की कवायद होती रहती हैं। यह बात समझना होगा कि कांग्रेस को एक मजबूत नेतृत्व देने के लिए तैयार होना होगा। क्योंकि देश में अभी भी 225 सीटें ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है। जहां तक क्षत्रपों की बात है तो वह अपने राज्य तक ही सीमित है। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व में ही मजबूत गठबंधन बन सकता है।"
ममता की क्या है ताकत
अगर मौजूदा स्थिति देखी जाय तो जिस तरह ममता ने गोवा, त्रिपुरा, मेघालय, असम, यूपी, हरियाणा में कांग्रेस नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर अपनी पार्टी का आधार बनाने की कोशिश की है। उसमें वह पश्चिम बंगाल, गोवा, त्रिपुरा, मेघालय और थोड़ा बहुत असम छोड़कर अभी ज्यादा असर दिखाने की स्थिति में नहीं है। इनमे सबसे ज्याजा 41 सीटें पश्चिम बंगाल में हैं। इसके बाद असम में 14, जबकि त्रिपुरा, गोवा, मेघालय में लोक सभा की 2-2 सीटें हैं। यानी ममता फिलहाल करीब 50-55 सीटों पर असर डाल सकती हैं। हालांकि इससे वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकती हैं। क्योंकि कांग्रेस अपने खराब प्रदर्शन के बावजूद 2019 में 53 सीटें जीती हैं।
ऐसा नहीं है कि ममता को कांग्रेस की ताकत का अंदाजा नहीं है। सूत्रों के अनुसार शरद पवार के साथ हुई बैठक में इस बात की चर्चा हुई है कि भाजपा की 200 से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस की मौजूदगी है। अब इन सीटों के लिए ममता क्या रणनीति बनाती हैं, यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन एक बात साफ है कि ममता को अब कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं है।