- अखिलेश यादव गैर यादव ओबीसी वोट पर दांव लगा रहे हैं और दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करने के लिए खुलकर न्यौता दे रहे हैं।
- ममता बनर्जी के खेला होबा के तर्ज पर अखिलेश ने मेला होबा का नारा दिया है।
- पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में नेताओं का शामिल होने का सिलसिला शुरू हुआ था। लेकिन परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं आए थे।
नई दिल्ली: आज फिर एक और विधायक ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। विधायक मुकेश वर्मा शिकोहाबाद से पहली बार 2017 में चुनाव में जीतकर आए थे। पेश से सर्जन मुकेश वर्मा, राजनीति में इसके पहले 2012 में भी बसपा के टिकट पर हाथ आजमा चुके थे। लेकिन जीत का स्वाद भाजपा के टिकट पर मिला। इस्तीफे की उन्होंने भी वही स्क्रिपटेड वजह बताई है, तो स्वामी प्रसाद मौर्य और दूसरे उनके साथियों ने इस्तीफा देते वक्त बताई थी।
पिछले तीन दिनों में जिस तरह से भाजपा से विधायकों की टूट शुरू हुई है, उससे समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव काफी उत्साहित हैं। उन्होंने तो कह दिया है कि उपेक्षितों का मेला है, सबको सम्मान और सबको स्थान मिलेगा। यही नहीं उन्होंने ममता बनर्जी के 'खेला होबे' की तर्ज पर कह दिया है कि अब 'मेला होबे'। लेकिन जैसे वह ममता बनर्जी की तरह जीत की उम्मीद कर रहे हैं, उसमें उन्हें यह भी याद रखना होगा कि जिस तरह आज वह उत्तर प्रदेश में विपक्ष का नेतृत्व कर रहे हैं, उसी तरह पश्चिम बंगाल चुनाव में भाजपा विपक्ष की भूमिका में थी, और उस समय ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से टूट का सिलसिला शुरू हो गया था। लेकिन ऐसे दल-बदलुओं के दम पर भाजपा बंगाल में कमाल नहीं दिखा पाई थी।
अखिलेश दिखा पाएंगे कमाल
सवाल यही है कि अखिलेश को जिन विधायकों और नेताओं का साथ मिल रहा है, उनका रिकॉर्ड मौसम विज्ञानी का रहा है। ज्यादातर नेता किसी खास विचारधारा से जुड़े न होकर मौके की राजनीति करते रहे हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहें स्वामी प्रसाद मौर्य 5 बार विधायक रह चुके हैं। 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे। इस समय वह पडरौना विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। मौर्य 2012 में बनी मायावती की सरकार में भी कैबिनेट मंत्री थे। वह 1995 में बसपा से जुड़े थे। उसके पहले जनता दल और लोकदल में भी रह चुके हैं। उनके राजनीतिक करियर से साफ है कि उन्हें दल बदलने से कभी परहेज नहीं रहा है।
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दारा सिंह चौहान
मौर्य के साथ भाजपा का साथ छोड़ने वाले वन मंत्री दारा सिंह चौहान भी बसपा में स्वामी प्रसाय मौर्य के साथी थे। चौहान 2015 में भाजपा में शामिल होने से पहले बसपा में मायवती के प्रमुख कद्दावर नेता थे। वह 1996 और 2000 में बसपा के टिकट पर राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। और 2009 में घोसी लोकसभा सीट से बसपा के सांसद भी रह चुके हैं। 2017 में वह मधुबनी विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे और अब उनके सपा में शामिल होने की तैयारी है।
राकेश राठौर
सीतापुर से भाजपा के टिकट पर 2017 में विधायक बनने थे। कारोबारी राकेश राठौर 2007 में बसपा के टिकट से चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। अब वह सपा में शामिल हो गए हैं।
माधुरी वर्मा
माधुरी वर्मा 2017 में नानपारा से भाजपा के टिकट पर विधायक बनीं थी। उनके पति दिलीप वर्मा 1993 से सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते थे। उसके बाद 2004 तक विधायक बनते रहे हैं। लेकिन 2007 में सपा से अलग हुए बेनी प्रसाद वर्मा की पार्टी समाजवादी क्रांति दल से उन्होंने चुनाव लड़ा और हार गए । बाद में दिलीप बसपा में चले गए। बसपा के टिकट पर अपनी पत्नी माधुरी वर्मा को एमएलसी बनवाकर विधानसभा पहुंचाया। लेकिन सजा मिलने के बाद वह चुनाव लड़ने से वंचित हो गए। इसके बाद 2012 में माधुरी वर्मा कांग्रेस के टिकट चुनाव जीतीं। और 2017 में फिर भाजपा से विधायक बनीं। और अब माधुरी वर्मा और उनके पति दिलीप वर्मा ने सपा का दामन थाम लिया है।
दल-बदलुओं से ये है खतरा
पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम जब आए तो जो भाजपा बहुमत का दावा कर रही थी, वह 75 सीटों पर सिमट गई। उसकी एक बड़ी वजह पार्टी की आंतरिक रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी, कि दूसरे दलों के लोगों को शामिल करने से कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ा और लंबे समय से पार्टी के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं को टिकट नहीं मिलने से, नाराजगी भी रही। ऐसे में अब देखना यह है कि अखिलेश इन नेताओं को साथ जोड़कर पार्टी कार्यकर्ताओं को कैसे उत्साहित करते हैं।
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