- अमित शाह ने माना कि चुनावों में मायावती की प्रासंगिकता बनी हुई है, और जाटव-मुसलमान बसपा को वोट दे रहे हैं।
- यूपी में मायावती भाजपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन चुकी हैं।
- 10 मार्च के नतीजे के बाद कई नए राजनीतिक समीकरण उभर सकते हैं।
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश चुनावों में सत्ता की लड़ाई अब पूर्वांचल की ओर पहुंच गई है। ऐसे में नेताओं के तेवर भी बदले हुए दिखाए दे रहे हैं। ताजा मामला बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती का है। जिन्होंने भाजपा नेता और गृहमंत्री अमित शाह के एक बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह उनकी महानता है। असल में इसके पहले अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यूपी चुनावों में बसपा की प्रासंगिकता है। और उन्हें मुसलमानों के भी वोट मिल रहे हैं। मायवाती ने शाह के इसी बयान पर कहा कि यह उनकी महानता है कि उन्होंने सच्चाई स्वीकार की। बीच चुनावों में अमित शाह और मायावती के एक-दूसरे के प्रति नरम रूख ने कई सियासी कयासों को जन्म दे दिया है।
अमित शाह और मायावती ने क्या कहा
इंटरव्यू के दौरान अमित शाह से बसपा को लेकर प्रमुख रूप से चार सवाल पूछे गए थे। जिसमें पर उन्होंने कहा था कि मैं मानता हूं कि इन चुनावों में बसपा की प्रासंगिकता है, पार्टी को वोट मिलेंगे। लेकिन सीटें कितनी मिलेंगी, इस पर कुछ नहीं कह सकता हूं। दूसरी बात यह थी कि जाटव वोट मायावती के साथ है। तीसरा मुसलमान भी बसपा को वोट दे रहे हैं। चौथी और अहम बात उन्होंने जो कही कि जहां तक चुनावों के बाद बसपा से गठबंधन की बात है तो उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि भाजपा और सहयोगी दल अपने दम पर भारी बहुमत से सरकार बनाएंगे।
शाह के इस बयान पर, मायावती ने 23 मार्च को लखनऊ में वोट डालने के बाद मीडिया से कहा यह उनकी महानता है कि उन्होंने सच्चाई को स्वीकार किया। हालांकि मायवती ने यह भी कहा कि बसपा को न केवल दलितों, बल्कि मुसलमानों, ओबीसी और सवर्णों का भी वोट मिल रहा है।
नरमी की क्या है वजह
भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह के बारे में एक बात साफ है कि वह बहुत नाप-तौल के बयान देते हैं। ऐसे में जब वह मायावती की तारीफ कर रहे हैं, तो निश्चित तौर उसके सियासी मतलब निकाले जाएंगे। अगर शाह के बयान का विश्लेषण किया जाय तो कुछ बातें साफ है। जैसे शाह यह मानते हैं कि पहले तीन चरण में मायावती का परंपरागत जाटव वोट बसपा के साथ बना हुआ है। दूसरी अहम बात यह है कि उनका मानना है कि यह जो धारणा बनाई जा रही है कि मुस्लिम वोट एकजुट होकर समाजवादी पार्टी को जो रहा है, वह सही नहीं है।
अब इस बयान के दो मायने हैं एक तो शाह ऐसा कह कर आगे के चरणों के चुनावों की रणनीति बिछा रहे हैं। जिससे कि मतदाताओं के मन में यह बात जाय कि यह चुनाव केवल भाजपा बनाम सपा नहीं है। बल्कि इस रेस में बसपा भी प्रमुख दावेदार है। ऐसा कर वह त्रिकोणीय लड़ाई की ओर चुनाव मोड़ना चाहते हैं। अगर चौथे चरण के बाद बची हुई 171 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई होती है, तो उसका फायदा , भाजपा को मिल सकता है। क्योंकि अब असली लड़ाई पूर्वांचल, बुंदेलखंड में होनी है। जहां पर जातिगत समीकरण बेहद मायने रखते हैं। ऐसे में भाजपा के लिए द्विध्रुवीय की जगह त्रिकोणीय लड़ाई ज्यादा मुफीद साबित हो सकती है।
चुनाव बाद क्या होगा गठबंधन ?
गृहमंत्री ने इंटरव्यू के दौरान इस सवाल के जवाब पर यह कहा है कि इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि उन्होंने गठबंधन को नकारा नहीं। बल्कि यही कहा कि भाजपा और उसके सहयोगी दल भारी बहुमत से सरकार बनाएंगे। लेकिन अगर पुराने इतिहास को देखा जाय तो बसपा ने न केवल भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई है बल्कि संसद में भी कई मौकों पर भाजपा का साथ दिया है। मायावती 1995 और 2002 में भाजपा के समर्थन से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। ऐसे में इस नरमी से यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि अगर नतीजों के बाद जरूरत पड़ी तो एक बार फिर से क्या 1995 और 2002 जैसा इतिहास दोहराया जाएगा। हालांकि यह सब 10 मार्च के नतीजों पर निर्भर करेगा।
मायावती ने अमित शाह को कहा थैंक्स, अखिलेश पर साधा निशाना- सपा से खुश नहीं है मुसलमान