- पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा इस बार भी अपना पिछला प्रदर्शन दोहराना चाहती है
- इस बार सपा ने रालोद के साथ गठबंधन कर भगवा पार्टी की मुश्किलें बढ़ाई हैं
- किसान आंदोलन के चलते भाजपा के खिलाफ किसानों में थोड़ी नाराजगी है
नई दिल्ली : पिछले विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भारी सफलता मिली थी। इलाके की 76 सीटों में से भगवा पार्टी ने 66 सीटों पर अपना कब्जा जमाते हुए ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। ऐसी सफलता उसे पहले कभी नहीं मिली। इस चुनाव में भगवा पार्टी ने विपक्ष का एक तरह से सूपड़ा साफ कर दिया। पार्टी ऐसी ही सफलता इस चुनाव में भी दोहराना चाहती है लेकिन इस बार चुनावी समीकरण थोड़े बदले हुए हैं। 2017 के चुनाव में पार्टी को पश्चिमी यूपी से भारी सफलता मिली तो उसने इसका सम्मान भी किया। भाजपा ने इस इलाके से दर्जन भर से ज्यादा मंत्री बनाए। इनमें कैबिनेट मंत्री एवं राज्यमंत्री दोनों शामिल हैं। इस चुनाव में अब इन मंत्रियों की परीक्षा होनी है।
पश्चिमी यूपी से ही कैबिनेट मंत्र हैं सुरेश राणा
इन मंत्रियों को अपनी सीट के साथ क्षेत्र की अन्य सीटों पर पार्टी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी होगी। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा और श्रीकांत शर्मा क्रमश: थाना भवन और मथुरा से विधायक हैं। राज्य मंत्री अतुल गर्ग गाजियाबाद से विधायक, विजय कुमार कश्यप चरतावल से कपिल देव अग्रवाल मुजफ्फरनगर, दिनेश खटीक हस्तिनापुर से, अनिल शर्मा शिकारपुर, संदीप कुमार सिंह (स्व. कल्याण सिंह के पौत्र) अतरौली, डॉ. गिरिराज सिंह धर्मेश से आगरा कैंट से और चौधरी उदयभान सिंह फतेहपुर सीकरी से विधायक हैं। इन मंत्रियों अपने इलाके से अच्छी खासी सीटें निकालने का दबाव होगा।
- सुरेश राणा (कैबिनेट मंत्री)
- श्रीकांत शर्मा (कैबिनेट मंत्री)
- विजय कुमार कश्यप (राज्यमंत्री)
- कपिल देव अग्रवाल (राज्यमंत्री)
- दिनेश खटीक (राज्य मंत्री)
- अनिल शर्मा (राज्यमंत्री)
- संदीप कुमार सिंह (राज्यमंत्री)
- डॉ. गिरिराज सिंह धर्मेश (राज्य मंत्री)
- चौधरी उदयभान सिंह (राज्य मंत्री)
- अतुल गर्ग (राज्यमंत्री)
पिछले चुनाव में भाजपा को मिला था ध्रुवीकरण का फायदा
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि 2017 के विस चुनाव में पार्टी को ध्रुवीकरण का भारी फायदा हुआ। सहारनपुर दंगों एवं कैराना पलायन को भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया और इसका लाभ भी उसे मिला। हिंदू वोटरों ने एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया। इसका नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रीय लोक दल जिसका गढ़ पश्चिमी यूपी माना जाता है, उसे एक सीट पर सिमटना पड़ा। सपा को चार सीटें, कांग्रेस को दो, बसपा को तीन सीटों पर जीत मिली। इस चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन भी कोई करिश्मा नहीं दिखा सका।
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किसानों में है भाजपा के खिलाफ नाराजगी
किसान आंदोलन की वजह से इस बार पश्चिमी यूपी में माहौल थोड़ा बदला हुआ है। पश्चिमी यूपी में ही किसान आंदोन का ज्यादा असर देखने को मिला है। इसके अलावा गन्ना भुगतान एवं कृषि से जुड़े अन्य मुद्दों को लेकर किसानों की नाराजगी राज्य सरकार के खिलाफ दिखी है। हालांकि, कृषि कानूनों को वापसी, बिजली बिल की माफी के जरिए भाजपा ने किसानों की नाराजगी कम करने की कोशिश की है। पश्चिमी यूपी में वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए भाजपा इस बार अपने विकास के मंत्र एवं ध्रुवीकरण दोनों का सहारा ले रही है। पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ की सहारनपुर रैली में इसके संकते मिले। भाजपा जेवर में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के शिलान्यास को इलाके की पहचान से भी जोड़ रही है।
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सपा ने की है इस बार भाजपा की घेरेबंदी
सपा की घेरेबंदी के बीच भाजपा के लिए अपना प्रदर्शन दोहराना एक बड़ी चुनौती है। पश्चिमी यूपी में करीब 26 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इस बार रालोद के साथ गठबंधन होने से सपा के साथ जाट मतदाता भी हैं। मुस्लिम वोटों में अगर बंटवारा नहीं होता है और जाट वोटर पूरी तरह से रालोद के साथ रहते हैं तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पहले चरण में पश्चिमी यूपी की 76 सीटों में से 58 सीटों पर मतदान 10 फरवरी को होना है। इन सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के बाद चुनावी तस्वीर और साफ होगी।