- नवजोत सिंह सिद्धू अपनी परंपरागत सीट अमृतसर (पूर्व ) से उम्मीदवार हैं। और उन्हें शिअद के बिक्रम मजीठिया कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
- कैप्टन ने कांग्रेस से अलग होकर पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी बनाई है और भाजाप के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है।
- चुनावों से पहले नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता अपने चरम पर थी।
Punjab Assembly Election 2022: दस मार्च को पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों पर वैसे तो सबसे ज्यादा नजर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भगवंत मान और शिअद के सुखबीर सिंह बादल पर रहेगी। लेकिन दो नेताओं के लिए इन चुनावों में हार-जीत बेहद मायने रखने वाली है। पहले उम्मीदवार नवजोत सिंह सिद्धू हैं, जो पिछले 2 साल से अपनी महत्वाकांक्षा और बयानों की वजह से ज्यादा चर्चा में रहे हैं। वहीं दूसरे उम्मीदवार पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रह चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं। 10 मार्च के नतीजे इन दोनों उम्मीदवारों के राजनीतिक करियर के लिए बेहद अहम होने वाले हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू का क्या लगा है दांव
पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी परंपरागत सीट अमृतसर (पूर्व ) से उम्मीदवार हैं। और शिरोमणि अकाली दल नेता बिक्रम मजीठिया टक्कर दे रहे हैं। मजीठिया ने खास तौर से सिद्धू को चुनौती देने के लिए अमृतसर (पूर्व) सीट से चुनाव लड़ा है। मजीठिया ने सिद्धू की चुनौती स्वीकार करते हुए अपनी पारंपरिक सीट मजीठा छोड़ कर अमृतसर (पूर्व) सीट से चुनाव लड़ा है। सिद्धू के खिलाफ मजीठिया का चुनाव लड़ना कितना चुनौती भरा है, यह इससे पता चला कि सिद्धू ने चुनाव के दौरान ज्यादातर समय अमृतसर (पूर्व) सीट पर बिताया है। और मजीठिया के रूप पिछले 18 साल में सबसे बड़ी चुनौती सिद्धू को मिली है। खास बात यह है कि सिद्धू और मजीठिया आज तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। ऐसे में अपनी साख बचाने के लिए सिद्धू के लिए जीत बेहद जरूरी हो गई है।
सिद्धू दोधारी तलवार पर
सिद्धू के लिए यह चुनाव उनकी राजनीति के लिए बेहद अहम है। इसकी वजह यह है कि अगर वह मजीठिया से चुनाव हार जाते हैं। तो यह सवाल उठने लगेंगे जो सिद्धू मुख्यमंत्री बनने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से अपने रिश्ते सामान्य नहीं रख पाए। वह खुद अपना भी चुनाव नहीं जीत पाए। अगर वह मजीठिया जैसे मजबूत नेता से अपने गढ़ में चुनाव जीत जाते हैं, तो उनके लिए राहत की खबर रहेगी।
वहीं दूसरी तरफ अगर कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापस नहीं आती है, तो चन्नी के लिए उन पर दोष मढ़ना आसान हो जाएगा। और वह, कह सकेंगे कि पार्टी को एकजुटता नहीं होने की वजह से हार का सामाना करना पड़ा । वहीं सिद्धू भी यह दावा कर सकते हैं, कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया होता तो कांग्रेस पार्टी सत्ता में आती। हालांकि पार्टी की हार के बाद सिद्धू के इस दावे के साथ खड़े होने वालों की संख्या कम हो सकती है। वहीं अगर कांग्रेस चन्नी के नेतृत्व में दोबारा सत्ता में आती है, तो फिर सिद्धू का पहले जैसा रसूख पार्टी में नहीं रह जाएगा। ऐसे में सिद्धू के लिए 10 मार्च के नतीजे उनके राजनीतिक करियर के लिए बेहद अहम होने वाले हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह
कांग्रेस से अलग होकर पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी यह चुनाव बेहद अहम है। 80 साल के अमरिंदर सिंह, साल 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद यह ऐलान कर चुके थे कि वह अब दोबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालांकि बाद में उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। और इसके बाद से सिद्धू और कैप्टन के बीच राजनीतिक लड़ाई अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। परिणाम यह हुआ कि न केवल कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया बल्कि कैप्टन ने कांग्रेस से अपना करीब 40 साल का नाता भी तोड़ लिया। और उन्हीं की जगह सितंबर 2021 में चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब की कमान सौंपी गई। कैप्टन पटियाला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
नाराज कैप्टन ने इसके बाद पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन कर 2022 का चुनाव लड़ा है। अगर कैप्टन इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, तो उनके राजनीतिक करियर के भविष्य पर जरूर सवाल उठेंगे। और अगर उनकी पार्टी भाजपा के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन करती है, तो फिर कैप्टन का राजनीतिक करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा। हालांकि नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के राजनीतिक भविष्य का पता तो 10 मार्च के नतीजों से ही पता चलेगा।