- 2014 से लगातार राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस को यूपी में हार का सामना करना पड़ा है।
- 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को आखिरी बाद दहाई अंकों में सीटें मिली थीं।
- 2022 में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी पर दांव खेला है और वह मतदाताओं में कोई कन्फ्यूजन नहीं रखना चाहती है।
नई दिल्ली: साल 2004 से सक्रिय राजनीति में आने के बाद शायद ऐसा पहली बार है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी उत्तर प्रदेश चुनावों में ज्यादा सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे हैं। राज्य के चुनाव में जब बमुश्किल से दो महीने बचे हैं, उसके बावजूद राहुल गांधी ने अभी तक राज्य में कोई बड़ी रैली नहीं की है। चुनावी सक्रियता के नाम पर अभी तक उन्होंने केवल 18 मई को अपने पुराने संसदीय क्षेत्र अमेठी की पद यात्रा की है। जबकि चुनावी राज्य उत्तराखंड और राजस्थान (2023 में होगे विधानसभा चुनाव) में वह रैलियां कर चुके हैं। वहीं पंजाब के के मोगा से वह 3 जनवरी को चुनावी अभियान का बिगुल फूंकने वाले हैं। ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या यूपी चुनावों से राहुल का मोहभंग हो गया है ?
यूपी के मुद्दों पर सक्रिय लेकिन रैलियों से दूर
राहलु गांधी कि इस बार यूपी को लेकर अलग तरह की रणनीति दिख रही है। वह एक तरफ तो चुनावी रैलियों से दूरी बनाकर रखे हुए हैं, दूसरी तरफ मुद्दों को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को घेरते रहते हैं। चाहे हाथरस कांड में दलित लड़की के साथ हुए बलात्कार का मामला हो, दूसरी लहर के दौरान अव्यवस्था का मामला, लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या और गृहमंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे की बात हो या फिर काशी विश्नवनाथ धाम कारिडोर के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गंगा में डुबकी लगाने पर हिंदु और हिंदुत्व की व्याख्या हो, इन सब मुद्दों पर राहुल गांधी मुखर हैं।
इसके बावजूद वह पार्टी को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ बैठक, रैलियां करने आदि से दूरी बनाए हुए हैं। हाल ही में वह प्रयागराज गए थे, लेकिन वहां भी साफ कहा गया थी, राहुल निजी कार्य से पहुंचे हैं। राजनीतिक यात्रा नहीं है।
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लगातार तीन हार से बढ़ी दूरी ?
असल में राहुल गांधी ने जब से कांग्रेस की कमान संभाली है। उस वक्त से केवल 2009 के लोकसभा चुनाव ऐसा था, जब पार्टी का यूपी में प्रदर्शन अच्छा था। उस दौरान उसे साल 1989 के बाद पहली बार लोकसभा चुनावों में 10 से ज्यादा सीटें मिलीं थीं। पार्टी को 2009 के चुनाव में 22 सीटें मिली। लेकिन उसके बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया। 2014 में पार्टी को केवल 2 और 2019 में केवल एक सीट मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो राहुल खुद भी अमेठी से चुनाव हार गए थे।
लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में पार्टी कमजोर होती चली गईं। 2007 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 22 सीटें और 2012 में 28 सीटें और 2017 में सपा से गठबंधन के बावजूद पार्टी को केवल 7 सीटें मिलीं।
प्रियंका ने संभाली है कमान
2022 के चुनाव की जिम्मेदारी इस बार कांग्रेस महासचिव और प्रभारी प्रियंका गांधी ने संभाल रखी है। पार्टी के सूत्रों के अनुसार प्रियंका को फ्री-हैंड दिया गया है। चुनाव रणनीति पर राहुल उनकी पूरी मदद कर रहे हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर यही संदेश है कि प्रियंका ही सब-कुछ तय कर रही है। जिससे कि कार्यकर्ताओं में कोई कन्फूजन नहीं रहे। जहां तक मुद्दों की बात है तो राहुल गांधी से ज्यादा पूरे देश में चाहें केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं उठाता है।
एक अन्य सूत्र के अनुसार देखिए यह कहना कि राहुल सक्रिय नहीं है, यह सही नहीं है। फैसलों में उनकी भूमिका साफ दिखती है। राज्य में चुनावों को लेकर पर्यवेक्षक की भूमिका छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नियुक्ति साफ बताती है, राहुल गांधी सक्रिय हैं।
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नई रणनीति में कितना दम
साफ है कि राहुल गांधी की नई रणनीति में यूपी चुनावों में कांग्रेस का चेहरा नहीं दिखना चाहते हैं। पूरी तरह से प्रियंका गांधी को फ्रंट पर रखने की रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है। जिसमें उसका सबसे ज्यादा फोकस महिला मतदाताओं पर है। ऐसे में देखना है कि लगातार हार से परेशान कांग्रेस को नई रणनीति से यूपी में कितनी संजीवनी मिलती है।