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मुलायम परिवार में फिर लगेगी सेंध,अखिलेश के खिलाफ शिवपाल का BJP ऐसे करेगी यूज !

Updated Mar 31, 2022 | 16:41 IST

Shivpal Yadav: समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने संकेतों में यह साफ कर दिया है कि उन्हें अब अपने चाचा की जरूरत नहीं है। ऐसे में शिवपाल यादव के पास भाजपा में जाने के अलावा शायद ही कोई बेहतर विकल्प बचा है।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
मुलायम परिवार में फिर लग सकती है सेंध
मुख्य बातें
  • असल में चाचा-भतीजे में इस बार दूरी, अखिलेश यादव की भविष्य की रणनीति को देखते हुए बनी है।
  • शिवपाल यादव को यह समझ आ गया है कि अब वह समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के दौर का रूतबा हासिल नहीं कर सकते हैं।
  • विधानसभा चुनावों के ठीक पहले मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव भी भाजपा का दामन थाम चुकी हैं।

Shivpal Yadav: चुनावी हार के बाद एक बार फिर से मुलामय परिवार में सेंध लगने जा रही है। और इस बार मुलायम सिंह यादव के सबसे बड़े सिपहसलार निशाने पर हैं। मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक करियर में अहम भूमिका निभाने वाले और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव की भाजपा में जाने की अटकलें हैं। इस चर्चा को इसलिए बल मिला क्योंकि बीती रात उनकी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मुलाकात हुई। और इसके पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी अपने चाचा को विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाया था। अगर शिवपाल यादव भाजपा का दामन थामते हैं तो यह मुलायम परिवार और अखिलेश यादव के लिए एक बड़ा झटका होगा।

बहू अपर्णा यादव भी हो चुकी है भाजपा में शामिल

इसके पहले 2022 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव भी भाजपा का दामन थाम चुकी हैं। असल में अपर्णा यादव लखनऊ की सीट से टिकट चाह रही थी। लेकिन अखिलेश यादव से उम्मीद नहीं दिखने पर उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि भाजपा ने भी उन्हें टिकट नहीं दिया और न ही मंत्री बनाया है।

शिवपाल-अखिलेश में फिर से क्यों बनी दूरी

असल में चाचा-भतीजे में इस बार दूरी, अखिलेश यादव की भविष्य की रणनीति को देखते हुए बनी है। जिस तरह अखिलेश यादव ने आजमगढ़ से लोकसभा सीट छोड़कर, करहल विधानसभा का प्रतिनिधित्व संभाला और फिर नेता प्रतिपक्ष बनें, उससे साफ है कि समाजवादी पार्टी में वही वरिष्ठ रहेंगे। और यह वरिष्ठता विधानसभा से लेकर पार्टी में भी बनी रहेगी। क्योंकि वह पहले ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं। ऐसे में  साफ है चाचा शिवपाल यादव को अखिलेश यादव विपक्ष में रहते हुए कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं देने वाले हैं। 

इसके अलावा जिस तरह उन्हें, चुनाव के बाद सपा विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाया गया और फिर यह कहा गया कि सहयोगी दलों की अलग से बैठक होगी। उससे भी साफ हो गया कि शिवपाल यादव को पार्टी में कोई जगह नहीं मिलने वाली है। और अखिलेश के साथ वह सहयोगी दल के रूप में ही अपनी भूमिका निभा सकते हैं। असल में 2017 में जब अखिलेश यादव पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई रहे थे, तो उस वक्त भी शिवपाल यादव किनारे कर दिए गए थे। और उन्होंने अपनी प्रगतिशील समाजवादी  पार्टी बनाई थी। और इस बार विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी में रहते हुए समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था। 

भविष्य की है चिंता

अखिलेश यादव के रूख को देखते हुए शिवपाल यादव को यह समझ आ गया है कि अब वह समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के दौर का रूतबा हासिल नहीं कर सकते हैं। और दूसरी अहम बात यह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए वह अपने दम पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के जरिए ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। ऐसे में उनके पास भारतीय जनता पार्टी में जाने के अलावा कोई और बेहतर विकल्प नहीं बचा है। भाजपा में न केवल वह अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं, बल्कि अपने बेटे आदित्य यादव के राजनीतिक भविष्य की जमीन भी तैयार कर सकते हैं।

आजमगढ़ में मुलायम परिवार हो सकता है आमने-सामने

ऐसी चर्चाएं हैं कि शिवपाल यादव को भाजपा आजमगढ़ से होने वाले लोकसभा उप चुनावों के लिए मैदान में उतार सकती है। अगर समाजवादी पार्टी के गढ़ में शिवपाल यादव ताल ठोकते हैं। तो ऐसी भी संभावनाएं है कि उनका मुकाबला डिंपल यादव से हो जाए। क्योंकि अखिलेश यादव के आजमगढ़ सीट छोड़ने के बाद पार्टी के अंदर और उनके सहयोगी दल सुभासपा ने भी डिंपल यादव को चुनाव में उतारने की मांग कर डाली है। इस बार भाजपा की बड़ी जीत के बावजूद आजमगढ़ की सभी 10 विधानसभा सीटों  पर सपा का कब्जा रहा है। इसके अलावा ऐसी भी चर्चाए हैं कि भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेज सकती है। खैर अब शिवपाल यादव के अगले कदम का इंतजार है। लेकिन एक बात साफ है कि अखिलेश यादव अब पार्टी अपने तरीके से ही चलाएंगे। और वहां नंबर-2, नंबर-3 की रेस में कोई नहीं होगा।

क्या अखिलेश यादव के लिए शिवपाल सिंह यादव सिर्फ सियासी जरूरत थे