- स्वामी प्रसाद मौर्य 2016 में बसपा का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे।
- स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए अखिलेश यादव गैर यादव ओबीसी वोट में सेंध लगाना चाहते हैं।
- मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से भाजपा के टिकट पर सांसद हैं।
नई दिल्ली: चुनावों से ठीक पहले, एक बार फिर स्वामी प्रसाद मौर्य ने झटका दिया है। अंतर यह है कि इस बार मौर्य ने बसपा की जगह भाजपा को झटका दिया है। असल में स्वामी प्रसाद मौर्य की उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौसम विज्ञानी वाली छवि है। पिछली बार उन्होंने 2016 में मायावाती को झटका देकर भाजपा का दामन थामा था। इस बार उन्हें अखिलेश यादव का साथ अच्छा लग रहा है।
लेकिन एक बात तो साफ है कि 2022 के चुनावी समर में स्वामी प्रसाद मौर्य से ज्यादा अखिलेश यादव के लिए उनकी पार्टी में शामिल होना उम्मीदों भरा सौदा है। इसकी वजह यह है स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए अखिलेश यादव ओबीसी कैटेगरी में गैर यादव जातियों में सेंध लगाने का संदेश देना चाहते हैं। क्योंकि समाजवादी पार्टी को आम तौर पर माना जाता है कि उसे ओबीसी जातियों में मुख्य रूप से यादव जाति का ही समर्थन मिलता है।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने क्यों दिया इस्तीफा
वैसे तो स्वामी प्रसाद मौर्य ने राज्यपाल को दिए इस्तीफे की वजह बेहद औपचारिक बताई है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों, छोटे कारोबारियों और व्यापारियों की घोर उपेक्षा के कारण इस्तीफा दिया है। हालांकि अंदरखाने उनके इस्तीफे की बड़ी वजह अपने बेटे को टिकट नहीं मिलने की आशंका है।
सूत्रों के अनुसार वह अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य को फिर से चुनाव लड़ाना चाहते थे। लेकिन पिछली बार रायबरेली की ऊंचाहार सीट से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव में हार से, इस बार उनका पत्ता कटने की उम्मीद थी। इसे देखते हुए उन्होंने यह फैसला किया है। उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य, बदायूं से भाजपा सांसद है। ऐसे में यह भी देखना होगा कि क्या संघमित्रा भी पिता के कदमों पर भाजपा से नाता तोड़ेंगी ?
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कौन हैं स्वामी प्रसाद मौर्य
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहें स्वामी प्रसाद मौर्य 5 बार विधायक रह चुके हैं। इस समय वह पडरौना विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। उनका प्रभाव पडरौना, रायबरेली, शाहजहांपुर और बदायूं के क्षेत्रों में माना जाता है। और वह करीब 25-30 सीटों पर असर रखते हैं। मौर्य 2012 में बनी मायावती की सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। और बाद में वह मायावती के इतने भरोसेमंद हो गए थे, कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिल गई थी। हालांकि बाद में उन्होंने मायावती पर टिकटों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाकर, बसपा से नाता तोड़ लिया था।
80 के दशक से राजनीति शुरू करने वाले मौर्य बसपा, भाजपा के पहले जनता दल और लोकदल में भी रह चुके हैं। ऐसे में राजनीतिक करियर से साफ है कि वह दल बदलने से उन्हें कभी परहेज नहीं रहा है।
अखिलेश को क्या मिलेगा फायदा
मौर्य जाति से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी नेता के रूप में पहचान रखते हैं। और उनकी जाति का करीब 7-8 फीसदी वोट प्रदेश में हैं। यही नहीं यूपी में 52 फीसदी ओबीसी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। इसमें से 40 फीसदी से ज्यादा गैर यादव जातियां हैं।
ऐसे में अखिलेश यादव, गैर यादव ओबीसी वोट में ,स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए सेंध लगाना चाहते हैं। भाजपा की 2017 की जीत गैर जॉटव ओबीसी वोट का बड़ा हाथ रहा था। इसलिए इस बार अखिलेश यादव ओम प्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के जरिए, भाजपा के ओबीसी वोट में सेंध लगाना चाहते है। अहम बात यह है कि 2017 के चुनावों में ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं ने भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। अब देखना है समाजवादी पार्टी के साथ जुड़कर ये नेता क्या 2017 जैसा कमाल अखिलेश यादव के लिए दिखा पाएंगे।
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