- यूपी में सात चरणों में चुनाव होंगे
- 2017 में यूपी में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी
- सपा का आंकड़ा 100 के नीचे था
देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी में सात चरणों में चुनावी प्रक्रिया संपन्न होगी और नतीजे 10 मार्च को आएंगे। 10 मार्च को यह तय हो जाएगा कि कौन सा दल मतदाताओं के दिल में उतरने में कामयाब रहा। क्या बीजेपी सत्ता में दोबारा वापसी करेगी। क्या सपा, बीजेपी से सत्ता छीन पाने में कामयाब होगी। क्या बीएसपी 2007 के बाद कमाल कर पाएगी या क्या प्रियंका गांधी का नारा लड़की हूं लड़ सकती हूं कांग्रेस को यूपी में स्थापित कर पाने में कामयाब होगा। इन सबके बीच चुनावी तारीखों की घोषणा के साथ ही यूपी में आचार संहिता लागू हो चुकी है और सार्वजनिक जगहों से सरकारी पोस्टरों को हटाया जा रहा है। चुनाव आयोग के इस कदम पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए ट्वीट किया कि वो जो वादे करके मुकर गये ~ उनके झूठ के पुतले उतर गये।
ट्वीट के जरिए माहौल बनाने की कोशिश
इससे पहले उन्होंने एक और खास ट्वीट किया था कि झूठ का पर्दाफाश होगा, अब यूपी में बदलाव होगा, 10 मार्च को इंकलाब होगा, उत्तर प्रदेश में बदलाव होगा। अखिलेश यादव ने कहा था कि 10 मार्च को ईवीएम से गिनती जब पूरी हो जाएगी तो प्रचंड बदलाव नजर आएगा। ये बात अलग है कि योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 10 मार्च को बीजेपी एक बार फिर प्रचंड जीत के साथ सत्ता में वापसी कर रही है।
क्या कहते हैं जानकार
सपा और बीजेपी के इन दावों में कितना दम है इसे हम समझने की कोशिश करेंगे। जानकारों का कहना है कि 2012 में जब समाजवादी पार्टी सरकार सत्ता में आई तो लोगों के मन में उस समय की सरकार से आक्रोश था। अखिलेश यादव को करीब ढ़ाई साल तक लोग ढ़ाई मुख्यमंत्री ही मानते रहे। अखिलेश यादव अपने दूसरे हॉफ में कुछ बेहतर फैसले लेने और उनके क्रियान्वयन में सफल रहे। लेकिन 2017 में जिस तरह से उनके परिवार में रार मचा उसका खामियाजा सपा को उठाना पड़ा। इसके इतर 2017 में बीजेपी ने यूपी में सामाजिक समीकरणों को समझा और उसे जमीन पर भी उतारा। अब जब अखिलेश यादव कहते हैं कि मौजूदा सरकार ने फीता काटने का काम किया है तो उसे जनता बहुत गंभीरता से नहीं लेती है। .ये तो एक रवायत है कि जो अंतिम रूप से किसी चीज को अमलीजामा पहनाता है श्रेय उसको जाता है।
जब समाजवादी पार्टी की तरफ से इस तरह की बातें कहीं जाती हैं तो उसके उलट सवाल पूछा जाता है कि जब आपने इतना काम किया था तो जनता ने नकार क्यों दिया और इस सवाल का जवाब उनके नेताओं के पास नहीं होता है। जब कोई सरकार सत्ता में होती है तो सच यही होता है कि वो अपने सभी वादों को पूरा नहीं कर पाती है और यही विपक्ष के लिए हथियार होता है, लिहाजा अगर अखिलेश यादव इस तरह के स्लोगन के जरिए तंज कसते हैं तो उनकी कोशिश है कि वो जनता को समझा सकें कि मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार अपने वादों को निभा पाने में नाकाम रही है।