- 2017 में भाजपा को गुर्जर वोटरों का साथ मिला था।
- दादरी में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति के अनावरण को लेकर विवाद भी हो चुका है। और सपा-रालोद नेता उसे भुनाने में लगे हैं।
- वीरांगना रामप्यारी और सम्राट मिहिर भोज के जरिए भाजपा गुर्जर वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है।
नई दिल्ली: पश्चिमी यूपी में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है। और चारों तरफ सबसे ज्यादा जाट, मुस्लिम और दलित वोटरों की चर्चा है। सभी दलों की कोशिश है इन वोटरों को लुभाकर पश्चिमी यूपी में बड़ी जीत हासिल की जाय। इस लड़ाई के बीच में भाजपा गुर्जर वोटरों को साधने में लगी हुई है। और उसकी झलक एक बार फिर गृह मंत्री अमित शाह के गाजियाबाद के लोनी में दिए गए भाषण में दिख गई। उसे उम्मीद है कि 2017 जैसा उसे 2022 में साथ मिलेगा।
अमित शाह ने क्या कहा
बीते बृहस्पतिवार को लोनी की सभा में बोलते हुए भाजपा नेता ने कहा कि लोनी के मूल निवासी वीरांगना रामप्यारी और सम्राट मिहिर भोज के वंशज हैं। जिस प्रकार रामप्यारी गुर्जर की सेना की वीरता के आगे तैमूर और उसकी सेना भाग खड़ी हुई। उसी तरह अब दंगाइयों और माफिया को प्रदेश से बाहर भगाने का समय है। जाहिर है अमित शाह राम प्यारी गुर्जर और सम्राट मिहिर भोज के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जर वोटरों को साधने की कोशिश कर रहे थे।
कितने अहम हैं गुर्जर वोटर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर समुदाय, गाजियाबाद, नोएडा, संभल, शामली, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर में काफी असर रखती है। और इन जिलों में करीब 25-30 सीटें हैं, जहां पर गुर्जर वोटरों का सीधा असर है। पिछले चुनावों में भाजपा को गुर्जर वोट का बड़ा समर्थन मिलाथा। ऐसे में वह उन्हें साध कर रखना चाहती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने इसीलिए अशोक कटियार, नंदकिशोर गुर्जर, तेजपाल नागर , डॉ. सोमेंद्र तोमर, प्रदीप चौधरी जैसे भाजपा नेताओं को आगे बढ़ाया हैं।
इसीलिए चुनावों से पहले भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दादरी का दौरा कर चुके हैं। और वहां पर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था। हालांकि बाद में मूर्ति को लेकर गुर्जर और राजपूत समाज में विवाद भी हो गया। क्योंकि नाम में गुर्जर शब्द नहीं था। इसके बाद क्षेत्र में गुर्जर समाज की भाजपा के खिलाफ नाराजगी उभर कर सामने आई। शायद इसीलिए भाजपा ने जेवर से राजपूत समुदाय के धीरेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है। वहीं सपा-रालोद गठबंधन ने गुर्जर नेका अवतार सिंह भड़ाना को उतारा है। और गौतम बुद्ध नगर में खास तौर से सपा-रालोद प्रत्याशी सम्राट मिहिर भोज का मुद्दा उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
पुरानों पर दांव
2017 में भाजपा ने 7 गुर्जर नेताओं को मैदान में उतारा था। इस बार भी भाजपा ने ज्यादातर पुराने नेताओं पर भरोसा किया है। वहीं सपा-आरएलडी गठबंधन ने 3 उम्मीदवारों को उतारा है। और अखिलेश यादव मेरठ के मवाना कस्बे में क्रांतिकारी धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण कर चुके हैं। जाहिर है सभी दलों गुर्जर वोटरों को लुभाने में लगे हुए हैं, अब देखना है कि 2017 की तरह गुर्जर वोटर भाजपा के साथ जाते हैं या फिर सपा-रालोद गठबंधन पर भरोसा जताते हैं।