- सबसे बड़ा सवाल क्या जाट-मुस्लिम वोट ने बदल दी हवा या भाजपा ने कर लिया मैनेज
- मायवाती के वोट बैंक ने छोड़ा साथ या फिर अभी भी मजबूत
- ओवैसी और चंद्रशेखर बनेंगे वोट कटवा या नहीं चला जादू
नई दिल्ली: अभी तक उत्तर प्रदेश के चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चित अगर कोई इलाका रहा है, तो वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश है। किसान आंदोलन और सपा-आरएलडी गठबंधन, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की एंट्री से वोटर किसे वोट देंगे, इसी पर नजर थी। भाजपा पर 2017 की तरह पहले चरण के प्रदर्शन का दबाव है। वहीं अखिलेश यादव को जयंत चौधरी का साथ मिलने से जाट-मुस्लिम एकता का भरोसा है। ऐसे में पहले चरण के 58 सीटों पर वोटिंग के मन में सबके मन में यही सवाल है कि इस बार वोटिंग कैसी हुई है।
इसी पैटर्न को समझने के लिए टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा की कई सीटों पर वोटर से बात की है। और चुनाव बाद पार्टियों का आंतरिक सर्वे क्या कहता है, इसे भी जानने की कोशिश की है। उसके आधार पर प्रमुख रूप से तीन बातें सामने आई हैं। एक तो यह कि कोई भी पार्टी या गठबंधन 2017 जैसा एक तरफा जीत इन 58 सीटों पर हासिल नहीं करती दिख रही है। दूसरी ओवैसी और चंद्रशेखर इन सीटों पर बहुत असर डालते हुए नहीं दिख रहे हैं। तीसरी अहम बात इस बार मायावती से उनका परंपरागत वोटर भी खिसकता नजर आ रहा है।
जाट-मुस्लिम वोट किधर गया
ऐसी उम्मीद थी कि किसान आंदोलन और सपा-रालोद गठबंधन से जाट और मुस्लिम वोटर एकतरफा वोट करेंगे। विभिन्न लोगों से वोटिंग पैटर्न से जो बात निकलकर सामने आई है, कि कई जगहों पर जहां गठबंधन का उम्मीदवार मुस्लिम है, वहां पर यह एकता टूटती हुई नजर आई है। इसके अलावा सुरक्षा और बड़ी संख्या में सड़कों का निर्माण भी एक तरफा वोट के बीच खड़ा हुआ है। साथ ही महिलाओं का भी वोट बंटा है। सूत्रों के अनुसार स्थानीय स्तर कई सीटों पर युवा और बुजुर्ग का भी फासला दिखा है। जिसकी वजह से भी एकतरफा वोटिंग नहीं हुई है।
किधर गया जाटव वोट
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 26 फीसदी दलित आबादी हैं। इसमें 70-80 फीसदी जाटव आबादी है। जो कि मायावती का बड़ा वोट बैंक हैं। मायावती की कम सक्रियता को देखते हुए सपा-रालोद, आजाद समाज पार्टी और भाजपा को जाटव वोटर का साथ मिलने की उम्मीद है। हालांकि स्थानीय स्तर पर बातचीत से जो सामने आ रही है कि बसपा के एक बड़े वोट बैंक ने उससे दूरी बनाई है और सुरक्षा, कानून व्यवस्था को वोटिंग का मुद्दा बनाया है।
क्या है आकलन
पार्टियों ने अभी अपने स्तर आंकलन किए हैं। सूत्रों के अनुसार चाहे भाजपा हो या फिर आरएलडी एक तरफा जीत की उम्मीद नहीं कर रही है। यानी किसी भी पार्टी 2017 जैसे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं है। दोनों दल 50-60 फीसदी सीटों पर जीत की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि वास्तिवक स्थिति का पता तो 10 मार्च को ही चल पाएगा।
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