- आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर है कैफी आजमी का पैतृक गांव मिजवां
- मिजवां, फूलपुर पवई विधानसभा का हिस्सा
- सात मार्च को आखिरी चरण में है मतदान
मशहूर शायर और प्रखर वामपंथी नेता कैफी आजमी के पुश्तैनी गांव मिजवां से कभी वामपंथी राजनीति की बयार बहती थी मगर समय के साथ यहां के मिजाज में भी अब बदलाव आ गया है।आजमगढ़ जिले की फूलपुर तहसील स्थित मिजवां प्रखर वामपंथी नेता और मशहूर शायर कैफी आजमी का पैतृक गांव है। उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में वामपंथ के पराभव का असर मिजवां पर भी दिखता है। यह गांव आजमगढ़ के फूलपुर पवई क्षेत्र में आता है जहां मुख्य चुनावी मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच है। भाकपा ने पिछली बार इस क्षेत्र से उम्मीदवार उतारा था जिसे करारी शिकस्त मिली थी। इस बार पार्टी का कोई भी प्रत्याशी यहां से चुनाव नहीं लड़ रहा है।
वामपंथी विचार का केंद्र था मिजवां
आजमगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर मिजवां गांव कभी बेहद पिछड़ा हुआ था मगर कैफी ने इसे सुविधाओं से जोड़ा। फूलपुर पवई क्षेत्र में प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण के तहत आगामी सात मार्च को मतदान होगा। बेहतर कानून-व्यवस्था और रोजगार इस क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे हैं। क्षेत्र के अनेक लोग खासकर कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर भाजपा सरकार से खुश हैं और वे चाहते हैं कि यही व्यवस्था बरकरार रहनी चाहिए।
दिल्ली में एक निजी कंपनी में काम करने वाले युवक मंगेश ने दावा किया "मिजवां में सबसे बड़ा मुद्दा लोगों की सुरक्षा का है और भाजपा सरकार ने इस दिशा में अच्छा काम किया है। सरकार की योजनाओं का लाभ सभी वर्गों को बिना किसी भेदभाव के मिल रहा है। हम चाहते हैं कि यही व्यवस्था बनी रहे।"हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि क्षेत्र के नौजवानों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिले ताकि उन्हें रोजी-रोटी कमाने के लिए बाहर न जाना पड़े।
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सुरक्षा व्यवस्था मुख्य मुद्दा
स्थानीय निवासी मुन्नीलाल ने कहा "इस बार सबसे बड़ा मुद्दा कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाये रखने का है। पहले यहां राहजनी और छेड़छाड़ की घटनाएं बहुत होती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है। हम चाहते हैं कि सभी लोग सुकून से रहें।"क्षेत्र के अलीनगर गांव के रहने वाले सुनील कुमार ने कहा ‘‘फूलपुर पवई क्षेत्र में भाजपा और सपा के बीच कड़ी टक्कर है। महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है लिहाजा क्षेत्र के लोग बदलाव चाहते हैं। ’’
कैफ़ी की बेटी और मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी ने अपने पिता की मृत्यु के बाद मिजवां को और सजाया संवारा। उन्होंने यहां 'मिजवां वेलफेयर सोसाइटी' का गठन किया और लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई-कढ़ाई एवं कंप्यूटर सेंटर स्थापित किया। वह अक्सर यहां आती रहती हैं।
मिजवां वेलफेयर सोसाइटी द्वारा स्थापित सिलाई-कढ़ाई सेंटर की प्रभारी संयोगिता ने को बताया "यहां के लोग और ज्यादा विकास चाहते हैं। मिजवां में तो पहले अब्बा (कैफी) और फिर शबाना बाजी ने विकास किया है मगर बाकी जगह भी तरक्की की धारा पहुंचनी चाहिए।" उन्होंने कहा कि जब तक कैफ़ी आज़मी थे, तब तक क्षेत्र में वामपंथी विचारधारा थी लेकिन उनके बाद चीजें बदलती चली गईं।
आजमगढ़ जिला किसी जमाने में वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था। मगर इस जिले को काटकर नया मऊ जिला बनाए जाने के बाद,
बाद में मऊ बना वामपंथ का केंद्र
मऊ वामपंथियों का प्रमुख केंद्र बन गया, क्योंकि ज्यादातर बड़े वामपंथी नेता उसी इलाके के थे। कैफ़ी आज़मी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के बहुत प्रखर नेता थे। हालांकि वक्त के साथ वामपंथी विचारधारा प्रदेश की चुनावी राजनीति के फलक से ओझल होती गई।
भाकपा के वरिष्ठ नेता अतुल अंजान ने बताया ‘‘कैफी ने वामपंथ की एक नई सोच और उसकी राजनीति को लोगों के सामने रखा। वह महिलाओं के अधिकारों के बारे में बहुत मुखर थे। ’’
उन्होंने बताया कि पहले पूरा आजमगढ़ वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था लेकिन उसके ज्यादातर नेता लालगंज और मऊ में सक्रिय थे। मऊ से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जय बहादुर सिंह दो बार लोकसभा के सदस्य रहे। उसके बाद झारखंडे राय 1952 में और उसके बाद भी घोसी से विधायक बने। वह तीन बार सांसद भी चुने गए।
कैफी आजमी की ये थी चाहत
अंजान ने कहा "भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आज भी मजबूत है। मगर मंडल-कमंडल की राजनीति ने उसे चुनावी सियासत में कमजोर कर दिया। वामपंथियों ने मंदिर-मस्जिद मुद्दे का विरोध किया था लेकिन उस वक्त माहौल कुछ और ही बना दिया गया, जिसमें हमारी बात अनसुनी कर दी गई और हम हाशिए पर पहुंच गए।अंजान ने कहा "कैफ़ी आज़मी साहब कहते थे कि मैं गुलाम हिंदुस्तान में पैदा हुआ, आजाद हिंदुस्तान में जी रहा हूं और वामपंथी हिंदुस्तान में मरना चाहता हूं। मगर उनकी यह हसरत अधूरी रह गई।"