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यूपी में अब छोटे दलों की होगी असली परीक्षा, क्या बन पाएंगे किंग मेकर

Updated Feb 24, 2022 | 20:33 IST

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में चुनाव अब ऐसे चरण में पहुंच गया है। जहां छोटे दलों की असर परीक्षा होगी और उनके बदौलत बड़ी पार्टियों की चुनावी नैया पार हो सकती है।

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बचे तीन चरणों में छोटे दलों की अहम भूमिका
मुख्य बातें
  • यूपी के बचे चुनावी क्षेत्र में सुहलेदेव भारतीय समाज पार्टी,निषाद पार्टी, अपला दल अपनी-अपनी जातियों में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं।
  • 2017 के विधान सभा चुनावों में अपना दल (एस) को 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।  
  • 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी  को 4 सीटें मिली थीं।

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में चुनाव अब अयोध्या, बनारस, गोरखपुर, आजमगढ़ की ओर पहुंच गया है। अगले तीन चरण में प्रदेश की 171 सीटों पर इन्हीं प्रमुख शहरों और उसके आस-पास के क्षेत्र में चुनाव होंगे। भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस सभी अब इन इलाकों में वोटरों को लुभाने के लिए जुट  गए हैं। लेकिन ये वहीं क्षेत्र हैं, जहां पर बड़ी पार्टियों के साथ-साथ छोटे दलों की भी अग्नि परीक्षा होगा। और यह भी साबित होगा कि इन दलों में कौन किंग मेकर होगा। 

छोटे दलों का सबसे ज्यादा असर

पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में छोटे दलों का बोल-बाला है। इसीलिए पूर्वांचल को छोटे दलों की प्रयोगशाला भी कहा जाता है। यहां पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी , निषाद पार्टी , अपला दल,  पीस पार्टी से लेकर कई छोटे-छोटे दल अपनी-अपनी जातियों में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 18 मान्यता प्राप्त दल,  3 अमान्यता प्राप्त और 91 तात्कालिक पंजीकरण के साथ चुनाव लड़ने वाले दल हैं। इनमें से बड़ी पार्टियों के अलावा 10-12 छोटे दल ऐसे हैं। जो चुनावों में सीधे असर डालते हैं। 

इन क्षेत्रों में है असर

इस बार के चुनावों में सबसे ज्यादा अहम भूमिका में ओम प्रकार राजभर की  सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी है। जिसकी गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत पकड़ है। इन जिलों की करीब 45 सीटें ऐसी है, जिसमें राजभर समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। राजभर अखिलेश यादव के साथ चुनावी दंगल में है। 2017 में वह भाजपा के साथ थे, और भाजपा की बड़ी जीत में उनकी अहम भूमिका रही थी।  सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी की इस इलाके की सीटों पर 5000-10000 वोट बड़ा फैक्टर बन सकता है। 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी  को 4 सीटें मिली थी।

इसी तरह संजय निषाद की निषाद पार्टी भी पूर्वांचल में बड़ा असर रखती है। निषाद समुदाय में निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड सहित करीब 22 उप जातियां  हैं। जिनका पूर्वांचल के करीब 60- 70 विधान सभा क्षेत्रों पर प्रभाव है। इसमें बनारस, मिर्जापुर, गोरखपुर सहित प्रमुख जिलों में असर है। निषाद पार्टी इस बार भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। वहीं निषाद पार्टी को एक सीट मिली थी।

बची तीन चरणों की सीटों पर कुर्मी जाति भी असर रखती है। अनुमान के अनुसार पूर्वांचल क्षेत्र में कुर्मी जाति की करीब 20 फीसदी आबादी है। कुर्मी  जाति पर अपना दल का अच्छा खासा असर है। जो कि मां और बेटी के दल में बंटा हुआ है। अपना दल (एस) की कमान केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पास है। जो कि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। 2017 में भी वह भाजपा के साथ थी। जबकि उनका दूसरा उनकी मां कृष्णा पटेल का अपना पटेल है। वह अखिलेश यादव के साथ चुनावी मैदान में है।अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल का वाराणसी, मिर्जापुर,प्रतापगढ़, रॉबर्ट्सगंज क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। 2017 के विधान सभा चुनावों में अपना दल (एस) को 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।  

योगी-अखिलेश को पूरी होगी उम्मीद

साफ है कि भाजपा और सपा ने छोटे दलों के साथ गठबंधन कर वोटरों की घेराबंदी करने की कोशिश की है। जबकि बसपा और कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ को जहां निषाद और अपना दल (एस) के सहयोग से चुनावी नैया पार करने की उम्मीद है। वहीं अखिलेश यादव, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और कृष्णा पटेल के अपना दल से फिर से लखनऊ की कुर्सी पर बैठने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
 

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