- यूपी में औपचारिक तौर पर चुनावी ऐलान नहीं हुआ है
- कोरोना खतरे के बीच राजनीतिक दलों की रैलियां जारी
- इलाहाबाद हाइकोर्ट से चुनाव टालने की अपील की है।
देश में इस समय ओमिक्रॉन के 350 से अधिक के हैं। अगर इसकी रफ्तार को देखें को 1 से डेढ़ दिन में केस दोगुने हो रहे हैं। ओमिक्रॉन के खतरे से निपटने के लिए एक बार फिर सरकारें कदम उठा रही हैं उन्हीं उपायों में से एक है नाइट कर्फ्यू। मध्य प्रदेश के बाद यूपी सरकार ने 25 दिसंबर से रात 11 बजे से सुबह पांच बजे तक इसे लगाने का फैसला किया है। दूसरी ओर दिन में राजनीतिक दल रैलियों के जरिए
दिन में रैली, रात में कर्फ्यू
राजनीतिक दल लखनऊ की गद्दी पर सवार होने की तैयारी कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि नाइट कर्फ्यू और दिन में रैलियों की वजह से कोरोना का चक्र टूटेगा या हम सबको इसी वर्ष अप्रैल मई और जून जैसे दृश्यों को देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।नाइट कर्फ्यू के बारे में आमतौर पर कहा जाता है शासन प्रशासन को दिन भर की तैयारी के लिए समय मिल जाता है। लेकिन जब यह जगजाहिर है कि भीड़ कोरोना के फैलाव के लिए बेहतर माध्यम है तो रैलियों पर रोक क्यों नहीं लगाई जा रही है। बता दें कि हाईकोर्ट की सिंगल पीठ ने कहा कि सरकार को यूपी चुनाव को टालने के बारे में सोचना चाहिए।
क्या ऐसे टूटेगा कोरोना का चक्र
अब सवाल यह है कि इस तरह के फैसले से क्या कोरोना का चक्र टूटेगा। शोधकर्ता, डॉक्टर और विशेषज्ञ जब यह कह रहे हैं कि भीड़ ओमिक्रॉन के फैलने में सुपर स्प्रेडर का काम करेगी तो राजनीतिक दल किस खतरे का अभी भी इंतजार कर रहे है। क्या राजनीतिक दलों को लगता है कि संवेदनाओं और मुआवजे के मरहम से वो पीड़ित लोगों के घावों को भर देंगे। बंगाल चुनाव में किस तरह जब सुप्रीम कोर्ट ने सीधे सीधे सरकार को चेतावनी तब जाकर कहीं रैलियों पर लगाम लग पाया।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि राजनीति में लोगों की संवेदनाओं के लिए जगह कहां है। राजनीतिक दल किसी तरह सत्ता में बने रहने की कोशिश करते हैं। अगर कोई हादसा होता है तो तर्कों और तथ्यों के जरिए सत्ता और विपक्ष में तकरार शुरू हो जाती है। जनता की याददाश्त भी कमजोर होती जिसे नेता अच्छी तरह से समझते हैं। अगर ऐसा ना होता तो लाख खामियों के बात सत्ता कभी विपक्ष तो कभी विपक्ष सत्ता पर काबिज ना होते।