कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब (Karnataka Hijab IssueP का मुद्दा अदालत में है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस विषय पर सोमवार को दोबारा सुनवाई करने का फैसला किया है। आदेश आने तक किसी भी तरह की धार्मिक पोशाक ना पहनने के लिए कहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसका यूपी चुनाव से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर किसी तरह का संबंध है। सवाल उठना लाजिमी है कि कर्नाटक के हिजाब मुद्दे से यूपी चुनाव(UP Assembly Elections 2022) का क्या संबंध है। सामान्य तौर पर यह लग रहा होगा कि किसी तरह का संबंध नहीं है। लेकिन जानकार कहते हैं कि मामले को इतने हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
कर्नाटक के हिजाब मामले का यूपी चुनाव पर असर
यूपी में पहले चरण का चुनाव 10 फरवरी को संपन्न हो चुका है, इस चरण की 58 सीटों पर मतदान के प्रतिशत से कोई भी राजनीतिक दल पुख्ता तौर पर कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या यूपी का चुनाव विकास से हटकर धर्म और जाति के मुद्दे की तरफ शिफ्ट हो रहा है। इस विषय पर जानकारों का कहना है कि अगर आप यूपी की राजनीति को देखें तो मुस्लिम समाज टैक्टिकल वोटिंग करता रहा है। लेकिन 2019 के चुनाव में इस समाज में थोड़ा बदलाव आया। बंदिशों में कैद मुस्लिम समाज की महिलाओं को मोदी की नीतियों में भरोसा बढ़ा तो मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वालों को लगने लगा कि किसी भी तरह से समाज के वोट को बिखरने नहीं देना है। कर्नाटक के हिजाब मुद्दे में उन्हें अपना भविष्य नजर आ रहा है। सहारनपुर की रैली में पीएम नरेंद्र मोदी ने जब खुलकर कहा कि मुस्लिम समाज की महिलाएं जब मोदी मोदी का नाम लेने लगीं तो वोट के सौदागरों के पेट में तकलीफ हुई और किसी तरह से अपनी राजनीति बचाने में जुट गए।
मुस्लिम समाज में बंटवारे से बीजेपी को फायदा
जानकारों का कहना है कि मुस्लिम समाज परंपरागत तौर पर कांग्रेस का समर्थक रहा। लेकिन कमजोर पड़ती कांग्रेस के बाद उस समाज को लगा कि बीएसपी और समाजवादी पार्टी उसकी उम्मीदों को पूरी कर सकती है। लेकिन अब उस वोटबैंक में एआईएमआईएम भी सेंध लगाने की कोशिश में हैं। हिजाब मुद्दे के जरिए असदुद्दीन ओवैसी को लगता है कि वो खुलकर बैटिंग कर सकते हैं लेकिन समाजवादी पार्टी और बीएसपी को नियंत्रित तौर पर प्रतिक्रिया देनी होगी। ऐसी सूरत में अगर मुस्लिम समाज के वोटों में बंटवारा होता है तो बीजेपी को फायदा हो सकता है।
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