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'कौन तुझे यूं प्‍यार करेगा' लिखने वाले मनोज मुंतशिर ने भाई-भतीजावाद पर साधा निशाना

Updated Jun 17, 2020 | 09:32 IST

Manoj Muntashir speaks on nepotism: सुशांत स‍िंह राजपूत की फ‍िल्‍म MS Dhoni के गाने ''कौन तुझे यूं प्‍यार करेगा' को ल‍िखने वाले गीतकार मनोज मुंतशिर ने बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद पर न‍िशाना साधा है।

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Manoj Muntashir
मुख्य बातें
  • जाने माने गीतकार मनोज मुंतशिर सुशांत के न‍िधन से आहत
  • कलाकार के न‍िधन पर ट्वीट तक जताया गुस्‍सा
  • बोले- भाई भतीजावाद के साथ असली कला की हाे कद्र

Manoj Muntashir speaks on nepotism: बॉलीवुड के शानदार एक्‍टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्‍महत्‍या के बाद बॉलीवुड जगत की ऐसी परतें खुल रही हैं, जो पहले कभी नहीं देखी गईं। भाई भतीजावाद से लेकर बाहरियों को टॉर्चर करने तक के आरोप सिनेमा के दिग्‍गजों पर लग रहे हैं। कई सितारे खुलकर सामने आ गए हैं और नाम तक ले रहे हैं। इस बीच सुशांत स‍िंह राजपूत की फ‍िल्‍म MS Dhoni के गाने ''कौन तुझे यूं प्‍यार करेगा' को ल‍िखने वाले गीतकार मनोज मुंतशिर ने भी बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद (Nepotism) पर न‍िशाना साधा है। 

मनोज मुंतशिर ने ट्वीट किया, 'नपोटिज्‍म यानि भाई भतीजावाद एक्टिंग तक ही क्‍यों सीमित है? क्‍यों ये फ‍िल्‍मी घराने लेखक और निर्देशक तैयार नहीं करते? शायद ये जानते हैं कि नेपाटिज्‍म की प्रयोगशाला में एक्‍टर्स बनाए जा सकते हैं, लेखक और निर्देशक नहीं। क्‍या लेखक और निर्देशक जन्‍म से टैलेंटेड होते हैं?' मनोज यहीं नहीं रुके। उन्‍होंने एक दूसरा ट्वीट किया- मैं नेपोटिज्‍म का विरोधी नहीं हूं लेकिन हमें कुछ मामलों में साफ रहने की जरूरत है। रियल टैलेंट को सामने लाने की जरूरत है। क्‍या आज का फ‍िल्‍म जगत नीरज पांडे, अनुराग कश्‍यप, अनुभव सिन्‍हा, इम्तियाज अली, कबीर खान और अनुराग बसु के बिना पूरा हो सकता है। 

ऐसे दी थी सुशांत को श्रद्धांजलि 

रविवार को सुशांत सिंह राजपूत के न‍िधन की खबर मनोज मुंतशिर को मिली तो वह इस पर यकीन ही नहीं कर पाए। उन्‍होंने ट्वीट किया- अब सुशांत, इतना जिंदादिल आमी और ऐसा कदम। झूठ होगा। इसके बाद उन्‍होंने दूसरे ट्वीट में जावेद अख्‍तर की एक लाइन साझा की- ‘नेकी इक दिन काम आती है, हमको क्या समझाते हो... हमने बेबस मरते देखे कैसे प्यारे- प्यारे लोग’! 

वहीं उन्‍होंने फेसबुक पर लिखा था- अजीब हैं हम। कामयाब इंसान को भी दुःख हो सकता है, ये मानने को तैयार ही नहीं हैं। और कितने सुशान्त चाहिए हमें, अपने अंदर सोयी हुई हमदर्दी जगाने के लिए? क्या depression सिर्फ़ उन्हें होता है जिनकी नौकरी चली गयी है? उनका क्या जिनकी ज़िंदगी में सब कुछ है फिर भी कुछ नहीं है। कामयाबी की अपनी tragedy है, अपनी क़ीमत है, अपना अकेलापन है, अपना दुःख है, लेकिन ये दुःख समझना कौन चाहता है। हम तो हंसते हुए लोगों से यूं भी नाराज़ रहते हैं। हमारी संवेदनाएं तो ग़रीबों और मज़लूमों के लिए reserved हैं। इन अमीरों का क्या है, मरते हैं मर जाएं। 

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