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Shikara: इस भाजपा नेता की हत्या से शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम, घर के बाहर आतंकियों ने मारी थी गोली

Updated Jan 30, 2020 | 15:47 IST

Tika Lal Taploo Story: 7 फरवरी को रिलीज हो रही फिल्म शिकारा कश्मीरी पंडितों के पलायन की कहानी दिखाएगी। 19 जनवरी को लाखों कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन किया। इसकी शुरुआत पं.टीका लाल टपलू की हत्या से हुई थी।

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Tika Lal Taploo
मुख्य बातें
  • 19 जनवरी 1990 के दिन लाखों कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन कर लिया था।
  • कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम की शुरुआत बीजेपी नेता टीकाराम टपलू की हत्या से हुई थी। 
  • 14 सितंबर 1989 को टीका लाल टपलू की श्रीनगर में घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी थी।

मुंबई. विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म शिकारा के जरिए पहली बार कश्मीरी पंडितों की कहानी बड़े पर्दे पर आने वाली है। ये फिल्म सात फरवरी को रिलीज होगी। 19 जनवरी 1990 के दिन लाखों कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन कर लिया था। कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम की शुरुआत बीजेपी नेता टीकाराम टपलू की हत्या से हुई थी। 

14 सितंबर 1989 को टीका लाल टपलू की श्रीनगर में अपने घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी थी। इससे पहले 8 सितंबर और 12 सितंबर 1989 को टीका लाल टपलू के घर पर हमला किया गया था। लगातार मिल रही धमकी के बाद टीका लाल टपलू ने अपने परिवार को दिल्ली भेज दिया था।          

14 सितंबर की सुबह टीका लाल टपलू अपने घर से बाहर निकले थे। उन्होंने एक बच्ची को रोते हुए देख। बच्ची ने बताया कि  स्कूल में कोई फंक्शन है और उसके पास पैसे नहीं हैं। पंडित टपलू ने बच्ची को गोद में उठाया, उसे पांच रुपए देकर चुप कराया। पंडित टपलू कुछ दूर आगे ही चले थे कि उनकी हत्या कर दी गई। 

पेशे से थे वकील 
टीका लाल टपलू की घाटी में पहली किसी बड़े हिंदू नेता की हत्या थी। उनकी अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे। इनमें बीजेपी के कद्दावर नेता केदार नाथ सहानी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता भी शामिल हुए थे।      

टीका लाल टपलू पेशे से वकील थे। उन्होंने साल 1958 में अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमए एल.एल.बी की डिग्री ली थी। वह शुरुआत में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े हुए थे। टपलू को उनके करीबी 'लाला' यानी बड़ा भाई भी कहते थे। 

नहीं पकड़े गए हत्यारे 
टीका लाल टपलू के हत्यारों कभी भी पकड़े नहीं गए। पंडित टपलू की हत्या के महज सात हफ्ते के बाद जस्टिस नीलकंठ गंजू की भी हत्या कर दी गई थी। पंडित नीलकंठ गंजू ने ही जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकवादी मकबूल भट्ट को फांसी की सजा सुनाई थी।   

    
नीलकंठ गंजू के बाद श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या की गई। इसके अलावा  गिरजा टिक्कू का गैंगरेप हुआ और फिर उन्हें मार दिया गया। 4 जनवरी 1990 को  हिज्बुल मुजाहिदीन ने उर्दू अखबार आफताब में  छपवाया कि सारे पंडित कश्मीर की घाटी छोड़ दें।    

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