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सुशांत‍ स‍िंह राजपूत ने भगवान शंकर के इस श्‍लोक को क‍िया था पोस्‍ट, आख‍िर क्‍या है इसका मतलब?

Updated Jun 14, 2020 | 16:40 IST

Sushant Singh Rajput shared shiv shlok: बॉलीवुड एक्‍टर सुशांत स‍िंह राजपूत भगवान शिव को मानने वाले थे। सुसाइड से कुछ समय पूर्व ही उन्‍होंने भगवान शंकर का एक मंत्र सोशल मीडिया पर साझा क‍िया था।

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Sushant Singh Rajput
मुख्य बातें
  • 31 मई को इंस्‍टाग्राम पर की थी भगवान शंकर की स्‍तुति
  • फोटो शेयर कर ल‍िखा था- कर्पूरगौरम करुणावतारम
  • मृत्‍यु के भय को दूर करता है भगवान श‍िव का यह मंत्र

Sushant Singh Rajput shared shiv shlok: काई पोचे, एमएस धोनी, पीके, केदारनाथ, छिछोरे जैसी फ‍िल्‍मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवाने वाले बॉलीवुड एक्‍टर सुशांत स‍िंह राजपूत भगवान शिव को बहुत मानने वाले थे। सुसाइड जैसा दिल दहला देने वाला कदम उठाने से कुछ समय पूर्व ही उन्‍होंने भगवान शंकर का एक मंत्र सोशल मीडिया पर साझा क‍िया था। इस मंत्र से सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रसार होता है, यह मंत्र कभी ना हार मानने का संदेश देने वाला है। हैरानी की बात ये है कि बेहद खुशमिजाज और जिंदादिल सुशांत ने हैरानी भरा कदम उठाकर अपनी जिंदगी का खुद अंत कर लिया।

यह बात 31 मई की है। सुशांत सिंह राजपूत ने अपने इंस्‍टाग्राम पर भगवान भोले नाथ की एक तस्‍वीर पोस्‍ट की थी। इस तस्‍वीर के साथ उन्‍होंने एक मंत्र लिखा था- कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम। सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि। लगभग पांच लाख से ज्‍यादा फैंस ने इस पोस्‍ट को पसंद किया था।

जाने लें इस मंत्र का मतलब

सुशांत सिंह राजपूत ने जो मंत्र शेयर किया था, उसका मतलब है- कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले, करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं...हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं।

आरती के बाद बोला जाता है मंत्र

सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है। इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इस मंत्र को बोले जाने के पीछे एक अर्थ छिपा है। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है।

मृत्‍यु के भय को दूर करता है मंत्र

भगवान शिव श्मशान के वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें और मृत्यु का भय दूर हो, इसलिए इस मंत्र को अनिवार्य रूप से आरतियों के बाद कहा जाता है। यह स्‍तुति बताती है कि शिव का रूप बेहद दिव्‍य है।

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