हंसल मेहता द्वारा निर्देशित फिल्म छलांग राजकुमार राव के होम ग्राउंड हरियाणा की ही कहानी है, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिताया है। इस वजह से वहां की संस्कृति वहां की भाषा सब कुछ राजकुमार राव को और बेहतरीन काम करने के लिए प्रेरित करता है। एक नॉन-सीरियस पीटी टीचर महेंद्र हुड्डा उर्फ मोंटू की भूमिका के साथ राजकुमार राव पूरी तरह से इंसाफ कर रहे हैं। ये फिल्म अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है।
राजकुमार राव ने महेंद्र हुड्डा की सभी बारीकियों को बेहद नजदीक से पकड़ा है चाहे वह उसका हरियाणवी लहजा हो या दूसरों के साथ व्यवहार करने की कला, अपने किरदार में राजकुमार राव पूरी तरह उतरे हैं। राजकुमार राव जैसे कलाकार को अच्छा काम करने के लिए अपने होम ग्राउंड की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन फिर भी राजकुमार राव अपने होम ग्राउंड में आपको कुछ बेहतरीन करके दिखा रहे हैं।
फिल्म की कहानी क्या है
फिल्म की कहानी एक ऐसे पीटी टीचर की है जो हमेशा खुश और मस्त रहता है जिसे अपने नौकरी की थोड़ी सी भी परवाह नहीं है। वह एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने साथी शिक्षकों को अपना पीरियड खुशी-खुशी दे देता है ताकि वह अपना सिलेबस टाइम पर कंप्लीट कर सकें। मोंटू हमेशा वैलेंटाइन डे के दिन अपने पड़ोस के पार्क में रोमांस कर रहे कपल्स को धमकाता रहता है। लेकिन स्कूल में नई-नई कंप्यूटर शिक्षक नीलम उर्फ नीलू यानी नुसरत भरुचा की एंट्री होने के बाद वह उस पर फिदा हो जाता है। कहानी तब इंटरेस्टिंग बनती है जब फिल्म में इंदर मोहन सिंह यानी मोहम्मद जीशान अयूब स्पोर्ट्स कोच की एंट्री होती है। इंदर की एंट्री के बाद मोंटू की लाइफ में तूफान आ जाता है और बात उसकी इज्जत पर बन जाती है साथ में उसका प्यार नीलू भी उसके हाथ से फिसलती नजर आती है। जिसके बाद मोंटू यह कसम खाता है कि वह अपनी इज्जत वापस लाकर रहेगा। अब देखना यह होगा कि क्या मोंटू अपना खोया हुआ आत्म सम्मान वापस ला सकता है।
फिल्म में लोगों का काम कितना बेहतर है
स्टोरीलाइन और स्क्रीनप्ले के मामले में छलांग के पास कुछ नया आपको देने के लिए नहीं है। लेकिन फिल्म में इस्तेमाल किए गए चुटकुले, कुछ बहुत अच्छे हैं कुछ अच्छे हैं। सुप्रीमली टैलेंटेड हंसल मेहता, मोहम्मद जीशान अयूब, सौरभ शुक्ला, जतिन सरना और सतीश कौशिक जैसे अभिनेताओं की वजह से फिल्म का लेवल काफी ऊपर है। फिल्म के फर्स्ट हाफ में कोई भी ऐसा मोमेंट नहीं है जहां आप हंसे ना हों। लेकिन सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ी सुस्त और बोरिंग हो जाती है लेकिन लास्ट के 20-25 मिनट में फिल्म फिर से फॉर्म में आ जाती है। खासतौर पर बच्चों के मैच के बाद जीशान और राजकुमार की स्पीच के साथ कसा हुआ क्लाइमैक्स फिल्म की वैल्यू बढ़ा देता है।
नुसरत भरुचा इतने बेहतरीन ढंग से हरियाणवी लहजे को पकड़ नहीं पाती हैं। राजकुमार राव के मुकाबले नुशरत भरुचा का इस फिल्म में काम कुछ भी नहीं है। नुसरत जब भी हरियाणवी बोलने या दिखने का प्रयास करती हैं आपको उससे चिढ़ मचने लगती है। तनु वेड्स मनु में कंगना की हरियाणवी के आगे वह कहीं नहीं ठहरतीं। बेहतर होता कि उनका किरदार रांझना में धनुष के किरदार की तरह थोड़ा बाहर का दिखाया जाता जिससे ये स्पष्ट हो जाता कि उनकी बोली इतनी सहज क्यों नहीं है।
लेकिन अपनी इन तमाम कमियों के बावजूद भी 135 मिनट कि यह फिल्म इंटरटेनमेंट के मामले में ऊंची छलांग लगा रही है। कुल मिलाकर फिल्म आपके समय के साथ पूरा-पूरा इंसाफ करती नजर आती है।