Marjaavaan Movie Review in Hindi: बॉलीवुड एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा, रितेश देशमुख और तारा सुतारिया की फिल्म मरजावां सिनेमाघरों में दाखिल हो चुकी है। सत्यमेव जयते जैसी फिल्म के डायरेक्टर मिलाप मिलन जावेरी के निर्देशन में बनी यह एक ऐसी फिल्म है जिसमें यारी-दुश्मनी, मोहब्बत-इंतकाम, एक्शन और खून खराबा है। सिद्धार्थ मल्होत्रा का एक्शन अवतार अच्छा है, वहीं रितेश देशमुख विलेन बने हैं और उनका किरदार काफी दिलचस्प है। वह तीन फुट के विलेन बनकर नजर आए हैं। एक्शन के अलावा फिल्म के कुछ डायलॉग्स ने भी दर्शकों में रोमांच पैदा किया, लेकिन काफी कम।
इस फिल्म में 80-90 दशक की फिल्मों के तमाम हिट फ्लेवर मिलेंगे, लेकिन एक दमदार मसाला फिल्म बनने से यह चूक गई। लेखक-निर्देशक मिलाप जावेरी ने प्यार-मोहब्बत, बदला, कुर्बानी, जैसे तमाम इमोशंस के साथ जो कहानी बुनी, वह दिल को छूती जरूर है लेकिन उतर नहीं पाती। कहानी में कई जज्बाती ट्रैक्स हैं। मेलोड्रामा खूब नजर आएगा। कुल मिलाकर यह एक बार देखी जा सकती है।
ऐसी है कहानी
रघु यानी सिद्धार्थ मल्होत्रा अन्ना (नासर) के लिए काम करता है। अन्ना टैंकर माफिया है और मुंबई में गैर कानूनी कारोबार करता है है। रघु अन्ना को गटर के पास मिला था और वह उसे अपने बेटे विष्णु (रितेश देशमुख) से ज्यादा प्यार करता है। इस बात पर विष्णु रघु से चिढ़ता है। रघु की जिंदगी में जोया (तारा सुतारिया) की एंट्री होती है, जो उसे बदलना चाहती है और प्यार के रास्ते पर लाना चाहती है। कश्मीर की रहने वाली जोया बोल नहीं सकती है। भाई की मौत के बाद लोगों के बीच प्यार बांटने को उसने संगीत का रास्ता चुना है। वह बच्चों को संगीत सीखने के लिए प्रेरित करती है। जोया के करीब आने से रघु धीरे धीरे अच्छाई के रास्ते पर आ रहा होता है तभी विष्णु एक आदमी का मर्डर करता है और उसे ऐसा करता हुए जोया देख लेती है। अब अन्ना रघु को उस लड़की को ढूंढने और मार देना का हुक्म देता है। विष्णु कुछ ऐसे हालत पैदा कर देता है कि रघु को अपने प्यार जोया को अपने हाथों गोली मारनी पड़ती है। रघु को जेल हो जाती है और वह जिंदा लाश बन जाता है। जब वह जेल से आता है तो शुरू होता है इंतकाम का खेल।
मजबूत कड़ियां
फिल्म के मुख्य विलेन रितेश देशमुख जरूर हैं, लेकिन उनका काम फिल्म के आखिरी 30 मिनट में ज्यादा है। उससे पहले उनके पिता के रोल में नजर आए साउथ के अभिनेता एम नासर दमदारी से स्क्रीन पर नजर आए हैं। वहीं सिद्धार्थ मल्होत्रा से प्यार करने वाली आरजू यानी रकुल प्रीत सिंह ने बार डांसर का खूबसूरत रोल किया है। इस फिल्म की कहानी भी सहज है। दर्शकों को बहुत अधिक दिमाग लगाकर देखने की जरूरत नहीं है। फिल्म में ना ज्यादा ट्विस्ट हैं जो आपका दिमाग घुमा दें। फिल्म सहज है और कुछ किरदारों को ही साथ लेकर आगे बढ़ती है।
कमजोर कड़ियां
फिल्म के कई डायलॉग दमदार हैं लेकिन उनकी टाइमिंग सही नहीं है। जहां डायलॉग बोले जा रहे हैं, वहां सच कहें तो उनकी जरूरत नहीं थीं। बिना डायलॉग बाजी के भी बात कही जा सकती थी। रितेश देशमुख के किरदार को थोड़ा मजबूत दिखाया जा सकता था लेकिन वह पूरी फिल्म में कमजोर किरदार में असहाय नजर आए हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अपना बेस्ट देने की कोशिश की है लेकिन उसमें भी थोड़ी मजबूती की गुंजाइश नजर आती है। उनकी इमेज और लुक पर उतना गुस्सा और तेवर कम जचे हैं। वहीं सबसे कमजोर कड़ी रहीं तारा सुतारिया। अपनी खूबसूरती से वह दर्शकों को पसंद आईं, लेकिन इस फिल्म में उन्हें बोलने क्यों नहीं दिया गया ये समझ से बाहर है। उनके बोलने में असमर्थ होने का कोई कारण नहीं। अगर वह फिल्म में बोल पातीं तो शायद उनका किरदार और निखर पाता।
दिलकश है संगीत
फिल्म मरजावां भला ही दिल में उतरने से चूक गई हो लेकिन इसका संगीत दिल में घर कर जाएगा। इसके गाने बेहद शानदार हैं। पायल देव के संगीत में जुबिन नौटियाल का गाया, 'तुम ही आना' इस फिल्म की जान है। इस गाने को कुणाल वर्मा ने लिखा है और यह फिल्म में कई बार सुनाई देता है। तनिष्क बागची के संगीत में नेहा कक्कड़ और यश नार्वेकर के स्वर में 'एक तो काम जिंदगानी' पर नोरा फतेही रंग जमा गईं। वहीं रश्मि विराग का लिखा हुआ थोड़ी जगह भी सिनेमाघर से बाहर आने पर भी होठों पर रह जाता है।