- मुंबई में किसानों की रैली में शरद पवार शामिल होंगे
- नए कृषि कानूनों का लगातार हो रहा है विरोध, विभिन्न हिस्सों में किसान कर रहे हैं प्रदर्शन
- किसानों का कहना है कि नए कानून को केंद्र सरकार रद्द करे
मुंबई। कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर किसान डटे हुए हैं। अब तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन नतीजा सिफर रहा है। करीब 40 किसान संगठन इस बात पर जोर देते हैं कि उनका आंदोलन गैरराजनीतिक है, लेकिन कोई भी दल उनका समर्थन करेगा तो किसी तरह की मनाही नहीं है। लेकिन नेताओं के साथ मंच साझा नहीं करेंगे। इन सबके बीच मुंबई के आजाद मैदान में किसानों का हुजूम उमड़ पड़ा है। लेकिन बीजेपी के कद्दावर नेता देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी को याद करना चाहिए कि कांट्रैक्ट फार्मिंग किसकी देन थी।
किसानों के समर्थन में महाविकास आघाड़ी
किसानों के समर्थन में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के सुर एक जैसे हैं। अभी हाल ही में शिवसेना ने मोदी सरकार पर निशाना साधा कि आखिर हठधर्मिता के रास्ते पर सरकार क्यों है। कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाने की कोशिश में करोड़ों अन्नदाताओं के हितों के साथ समझौता क्यों किया जा रहा है। एनसीपी मुखिया शरद पवार ने कहा था कि जिस रूप में कानून सामने हैं वो किसानों के हितों पर चोट करने वाला है। पिछले 60 दिनों से भीषण ठंड में किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं। लेकिन सरकार का संवेदनहीन रवैया लोकतंत्र के लिए खतरा है। अगर देश का कोई भी वर्ग जिसे किसी तरह की परेशानी है क्या वो अपनी बात नहीं रख सकता है।
अन्ना हजारे ने अनशन की दी है चेतावनी
इन सबके बीच अन्ना हजारे का कहना है कि वो अपनी जिंदगी का अंतिम अनशन किसानों के लिए दिल्ली में करने वाले हैं। अन्ना हजारे ने दावा किया था कि उन्हें मनाने के लिए महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस आए थे। लेकिन उनका एजेंडा साफ था कि किसानों के लिए वो जरूर अपने प्रण को पूरा करेंगे। अन्ना हजारे ने कहा था कि अगर सरकार का कानून इतना ही सही था वो संशोधनों के लिए क्यों तैयार हो गई। संशोधनों को सहमति प्रदान करने का अर्थ यही है कि कहीं न कहीं कानून में खामी है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि राजनीतिक दलों खासतौर से जो दल विरोध में होते हैं उन्हें मुद्दे से मतलब होता है। पिछले 6 वर्षों में मोदी सरकार के खिलाफ कई तरह की मुहिम चलाने की कोशिश की गई लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सका। अब जबकि देश के अन्नदाता सड़कों पर हैं और उनका आंदोलन अभी तक जिस तरह से आगे बढ़ा है उससे विरोध करने वाले दलों को मौका मिलता नजर आ रहा है और वो उस स्पेस को किसी तरह अपने कब्जे में लेना चाहते हैं और उसका नतीजा आप देख सकते हैं कि कभी राहुल गांधी दिल्ली तो कभी राजधानी से दूर तमिलनाडु में आवाज उठाते नजर आते हैं।