- मटका किंग रतन खत्री की 88 वर्ष की उम्र में निधन
- रतन मटका के नाम से जुआ बाजार का था बेताज बादशाह
- 1947 में बंटवारे के बाद सिंध से रतन खत्री आया था।
नई दिल्ली। मायानगरी मुंबई का अपना अलग अंदाज है। बॉलीवुड का ग्लैमर एक तरफ तो दूसरी तरफ काले कारनामों की गवाह भी रही है यह नगरी। डांस बॉर, अंडरवर्ल्ड, मटका ये सब एक तरह से पहचान रही है यहां हम उस शख्ल की बात करेंगे जिसे मटका किंग के तौर पर जाना जाता था। लेकिन 88 साल की उम्र में अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका है। यहां हम बात मटका किंग रतन खत्री की कर रहे हैं। 1947 में देश के बंटवारे के बाद सिंधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले रतन खत्री बंबई आ गए। उन्होंने अपने लिए कामकाज की पहचान शुरू की और जो पेशा रास आया वो था मटका जुआ।
मुंबई में मटका जुआ तो प्रचलन में था। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रचार और प्रसार में रतन खत्री की भूमिका रही। मुंबई में मटके के जरिए जुआ खेलने की शुरुआत 1962 में हुई और तेजी से भारत के दूसरे शहरों में भी लोकप्रिय हो गया। हालांकि यह अपराध की श्रेणी में था। पुलिस की तरफ से कार्रवाई भी होती थी। लेकिन यह अवैध धंधा फलता फूलता रहा।
दिलचस्प बात यह है कि उस समय न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज में कपास के दाम खुलने और बंद होने को लेकर सट्टा लगता था। इसके लिए मटके में पर्चियां डालकर इस जुए को खेला जाता था। रतन खत्री जह नया नया था तो उसने कल्याण भगत की सरपरस्ती में इस कारोबाक को शुरू किया था। लेकिन अनबन होने के बाद उसने रतन मटका के नाम से अपने सफर को आगे बढ़ाया।
जानकार बताते हैं कि मटका से ही सट्टेबाजी शुरू हुई। इसका क्रेज भी लोगों में जबरदस्त था और हर एक दिन टर्नओवर करीब एक करोड़ का होता था।सट्टेबाजी का खेल मुंबई में अंग्रेजों के जमाने से खेला जा रहा है। जब पुलिस की सख्ती बढ़ती थी तो कुछ समय के लिए इस कारोबार पर लगाम लगती थी। लेकिन कहीं न कहीं सत्ता, पुलिस और प्रशासन के मेलमिलाप से इस कारोबार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग सका।