- उद्धव ठाकरे ने पीएम नरेंद्र मोदी से की थी मुलाकात
- शिवसेना के दूसरे नेता भी अब पीएम मोदी की कर रहे हैं तारीफ
- शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को बाल ठाकरे के वचन को दिलाया याद
सियासत की पिच पर कब कोई शख्स चौके या छक्के मार दे पता नहीं चलता। सियासी मैदान में कब कोई शख्स खुद के गोलपोस्ट में गोल कर दे पता नहीं चलता। सियासत में उत्तर और दक्षिण दिशाएं कब एक हो जाएं पता नहीं चलता। लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन विपरीत धाराएं एक साथ मिलीं और उद्धव ठाकरे की अगुवाई में महा विकास आघाड़ी की सरकार बनी।
पहले दूर, क्या अब आ रहे हैं पास
शिवसेना और बीजेपी जो एक ही विचार के पोषक थे सत्ता की लड़ाई में एकदूसरे से दूर छिटक गए। लेकिन अब वो दूरी सिमटती नजर आ रही है। हाल ही में उद्धव ठाकरे ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात कोविड और मराठा आरक्षण के मुद्दे पर की थी। ये बात अलग है कि प्रेस कांफ्रेस में जब उन्होंने कहा वो अपने पीएम से मिलने गए थे नवाज शरीफ से मिलने थोड़े गए थे। इस बयान के बाद सियासी हलचल होने लगी।
विश्वास शब्द को शरद पवार ने दिलाया याद
एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार को यह लगने लगा कि पीएम और सीएम की मुलाकात कोई सामान्य मुलाकात नहीं थी लिहाजा उद्धव ठाकरे को उनके पिता बाला साहेब ठाकरे और इंदिरा गांधी के प्रसंग को याद दिलाते हुए विश्वास शब्द का इस्तेमाल किया। इन सबके बीच शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने क्या कुछ कहा उसे बताते हैं।शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत कहते हैं कि मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी देश और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता हैं। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि पिछले 7 सालों में भारतीय जनता पार्टी को जो सफलता मिली है, वह सिर्फ नरेंद्र मोदी की वजह से है।
जानकारों की है यह राय
अब क्या इन बयानों इतने आसान अंदाज में समझा जाना चाहिए। इस विषय पर जानकार कहते हैं कि राजनीति खासतौर से आज के संदर्भ में अब नेताओं के बयानों का खास मतलब नहीं है। नेता अपने हर एक फैसले को समय काल परिस्थिति के हिसाब से सही ठहराते हैं। अगर आप महाराष्ट्र में सरकार की बात करें तो देवेंद्र फडणवीस का शपथ लेना अद्भुत घटना थी। उसके बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का एक साथ आना असंभव को संभव बनाने जैसा था। तीनों दलों के नेताओं ने अपने अपने फैसलों को तर्कों के जरिए सही भी साबित करने की कोशिश की। लेकिन वैचारिक तौर पर शिवसेना कभी भी एनसीपी और कांग्रेस के साथ नहीं चल सकती लिहाजा महाराष्ट्र की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।