- ऑटो चालक जितेंद्र शिंदे का नाम कोल्हापुर और आस पास के लोगों की जुबान पर चढ़ गया है
- एक साल में वह अपनी करीब डेढ़ लाख रूपए की जमा पूंजी इस काम पर खर्च कर चुके हैं
- किसी मरीज की मौत हो जाए और उसकी मृत देह को शमशान पहुंचाने का काम भी शिंदे करते हैं
नई दिल्ली: कोरोना संकट के इस दौर में जहां रोज अपने प्रियनों की लाइफ बचाने के लिए लोग अस्पतालों में एडमिशन के लिए बेहाल हैं ऑक्सीजन और बेड्स की कमी से जूझ रहे हैं वहीं इस संकट काल में परेशान मरीजों और उनके परिजनों की जेब काटने में भी लोग पीछे नहीं हैं और ऐसे दौर में भी कालाबाजारी और चीजों और सेवाओं के मनमाने और कई गुना दाम वसूल रहे हैं, ऐसे में कोल्हापुर महाराष्ट्र के ऑटो चालक जितेंद्र शिंदे का काम ऐसे लोगों के मुंह पर तमाचा है।
ऑटो चालक जितेंद्र शिंदे का नाम कोल्हापुर और आस पास के लोगों की जुबान पर चढ़ गया है हो भी क्यों ना वो ऐसा महान काम जो कर रहे हैं, जितेंद्र हर दिन कई कोरोना पीड़ित लोगों को अस्पताल पहुंचा रहे हैं वो भी फ्री सेवा के रूप में।
कोरोना संक्रमण की जानकारी होने पर जहां मरीज के रिश्तेदार और जानने वाले मदद के नाम पर पीछे हट जाते हैं ऐसे में शिंदे उनकी मदद को आगे आते हैं और किसी को अगर अस्पताल जाना हो तो वो उन्हें कॉल करता है वो तुरंत वहां हाजिर होकर मरीज को अस्पताल पहुंचाते हैं।
अगर कोई मरीज ठीक हो जाता है तो उसे खुशी-खुशी उसके घर भी पहुंचाते हैं, इस काम में उन्हें बेहद खुशी मिलती है और वो इसे मानव मात्र की सेवा का अवसर मानते हैं।शिंदे यहीं नहीं रूकते वो कोरोना संक्रमितों की मदद के लिए हर तरीके से तैयार रहते हैं उनके घर कोई सामान पहुंचाना हो तो वो इसे लिए भी पहल करते हैं और अपने पास से सामान ले जाकर उनकी सहायता करते हैं।
कहते हैं कि पिछले एक साल में वह अपनी करीब डेढ़ लाख रूपए की जमा पूंजी इस काम पर खर्च कर चुके हैं, अबतक पीपीई किट्स में भी पांच हजार रुपये से ज्यादा रकम खर्च हो गई है साथ ही पेट्रोल में भी उनका खासा पैसा लगता है।
कोरोना से पीड़ित किसी मरीज की मौत हो जाए और उसकी मृत देह को शमशान पहुंचाने का काम भी शिंदे करते हैं यहां तक कि उसके अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी खुद ही कर देते हैं।
प्रवासी मजदूरों को खाना खिलाने और उनकी घर वापसी में मदद के काम में भी शिंदे पीछे नहीं है और इसमें भी वो आगे आकर यथासंभव मदद करने को ना सिर्फ तत्पर दिखते हैं बल्कि पूरी सहायता भी करते हैं।
बताते हैं कि जितेंद्र शिंदे जब 10 साल के थे, तभी उनके माता- पिता का निधन हो गया था उन्हें इस बात का दुख हमेशा सताता रहा कि वह आखिरी वक्त में अपने माता- पिता की सेवा नहीं कर पाए शायद इसी कमी को वो अब लोगों की मदद कर पूरी कर रहे हैं।