नई दिल्ली: दुनिया भर में हर साल पांच जून को पर्यावरण दिवस लोगों को प्रकृति को संरक्षित रखने और पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। आज यानी 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है ।
इस मौके पर कई लोग प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संदेश को एक दूसरे को भेजते है। इस मौके पर लोग शायरियों,कोट्स के जरिए प्रकृति और पर्यावरण जुड़े बधाई संदेश भेजते हैं।
पर्यावरण दिवस शायरी
1.अगर फुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
(बशीर बद्र)
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
(नीरज)
3.किसी दरख़्त से सीखो सलीक़ा जीने का
जो धूप छांव से रिश्ता बनाए रहता है
(अतुल अजनबी)
गुज़र गया जो ज़माना कहाँ गुज़रना था
(शहराम सर्मदी)
5.हवा दरख़्तों से कहती है दुख के लहजे में
अभी मुझे कई सहराओं से गुज़रना है
(असद बदायुनी)
लदे-फदे फलदार दरख़्त
ताजा इन से हवा मिले
जीने का सब मजा मिले
(सय्यद शकील दस्नवी)
7.आग जंगल में लगी है दूर दरियाओं के पार
और कोई शहर में फिरता है घबराया हुआ
(जफर इकबाल)
झूमते खेतों की सरहद पर बांके पहरे-दार
घने सुहाने छाँव छिड़कते बोर लदे छतनार
बीस हजार में बिक गए सारे हरे भरे अश्जार
(मजीद अमजद)
9.दर्पन चाँद सितारों का
फितरत के नज़्ज़ारों का
गहरी चंचल नीली झील
हद्द-ए-नज़र तक फैली झील
(सय्यद शकील दस्नवी)
10.जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हम ने किया
शहर जैसा एक आदम-खोर पैदा कर लिया
(फरहत एहसास)
11.नज़र को लुभाते हैं पौदों के मंजर
हसीं और नाजुक हैं फूलों के पैकर
समर उन के बनते हैं सब की गिजाएं
ये बनते हैं बीमारियों की दवाएं
हमें मिलती है पौदों से ऑक्सीजन
उगाओ इन्हें दोस्तो आंगन आंगन
(अमजद हुसैन हाफिज कर्नाटकी)
नगरी नगरी थाह नहीं है लोग बहुत घबराए हैं
(जमील अजीमाबादी)
13.पर्यावरण जागरूकता फैलाते चलो
लोगो को पेड़ों के लिए मनाते चलो
कोई मिल ही जाएगा इनका हमदर्द
अपने इरादों को मजबूत बनाते चलो
प्रदूषण फैलाकर पाने के लिए तरसाते हो
क्या यूं ही बेशर्मी से बर्बादी करते रहोगे
क्या नई पीढ़ी के लिए कुछ नहीं करोगे
15.हरी दुनिया, पेड़ पौधों की दुनिया
शुद्ध और स्वच्छ हवा-जल की दुनिया
फूल जैसे खिले चेहरे की दुनिया
काश हमारी होती ऐसी प्यारी दुनिया
16.फलदार था तो गांव उसे पूजता रहा
सूखा तो क़त्ल हो गया वो बे-ज़बां दरख़्त
(परवीन कुमार अश्क)
17.दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
(क़तील शिफाई)
धूप-छाया की डायरी जंगल
(वर्षा सिंह)
19.इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
ये आख़िरी दरख़्त बहुत याद आएगा
(अजहर इनायती)
इसमें है हम सबकी समझदारी
पेड़ लगायेंगे और पेड़ बचायेंगे
पर्यावरण की हम लेंगे जिम्मेदारी