Shaheed Divas 23 March: भारत में 23 मार्च को शहीद दिवस (Martyrs' Day) मनाया जाता है, 23 मार्च, 1931 की मध्यरात्रि को अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया था इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही "शहीद दिवस" मनाया जाता है।
शहीद दिवस यानि क्रांतिकारी वीर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का बलिदान दिवस, आज ही दिन भारत मां के तीन सपूतों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था, उन्होंने भी देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया था।
बताते हैं कि उन्होंने 8 अप्रैल, 1929 को अपने साथियों के साथ "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे को पढ़कर केंद्रीय विधान सभा पर बम फेंके थे, इस मामले की गूंज बहुत ज्यादा हुई थी जिससे अंग्रेजी शासन की चूलें हिल गई थीं, जिसके लिए उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया गया और 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई थी।
शहीद दिवस का तारीख को लेकर है थोड़ा कंफ्यूजन
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की याद में भी शहीद दिवस मनाया जाता है मगर वो 30 जनवरी को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर 'शहीद दिवस' मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है वहीं 23 मार्च को उस दिन के रूप में याद किया जाता है जब भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर नाम के तीन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
भगत सिंह का जन्म 1907 को पंजाब के लायलपुर में हुआ था
भगत सिंह ने अपने साथियों राजगुरु, सुखदेव, आज़ाद और गोपाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की हत्या के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को अपने साथियों के साथ "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा दिया और केंद्रीय विधानसभा पर बम फेंका। इसके लिए उनके खिलाफ हत्या का मामला लगाया गया था और 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
भगत सिंह को फांसी तय तारीख से 1 दिन पहले ही दे दी गई थी
देश के लिए अपनी जान हंसते-हंसते कुर्बान कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 के दिन फांसी की सजा दी गई थी मगर उनको फांसी का जो दिन तय हुआ था वह 24 मार्च 1931 का दिन था लेकिन अंग्रेजों ने उसमें बदलाव कर दिया और निर्धारित तारीख और समय से पहले उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया, देश की आजादी के लिए भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव के साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए और देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए ऐसी मिसाल बहुत कम ही देखने को मिलती है।
बताते हैं कि इन तीनों वीर सपूतों को फांसी दिए जाने की खबर से देश में लोग भड़के हुए थे तीनों की फांसी को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहे थे और इससे अंग्रेज सरकार डर गई थी उन्हें लगा कि माहौल बिगड़ सकता है, इसलिए उन्होंने फांसी के दिन और टाइमिंग में ये बदलाव किया था।