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कोरोना की मार से बैंडवालों की जिंदगी से गायब हुआ 'संगीत', पैसे-पैसे को मोहताज

'Music' disappears from the lives of bandabaaja owners and employees due to corona hit
Updated Sep 02, 2020 | 23:32 IST

सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल के मौजूदा समय में बैंड बाजा बारात तो लोग भूल से गए हैं, ऐसे में बैंड की बुकिंग नहीं हो रही जिसका सीधा असर इस व्यवसाय से जुडे़ लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है।

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'Music' disappears from the lives of bandabaaja owners and employees due to corona hit'Music' disappears from the lives of bandabaaja owners and employees due to corona hit
प्रतीकात्मक फोटो

नयी दिल्ली: शादियों से लेकर बच्चे के जन्म और कभी-कभी बजुर्गों की अंतिम यात्रा के दौरान संगीत की धुनों को बजाकर आजीविका चलाने वाले लोगों के जीवन से संगीत को कोविड-19 महामारी ने गायब कर दिया है। काम ठप होने से पैसे-पैसे को मोहताज इन लोगों की माली हालत बेहद खराब हो चुकी है।कोरोना काल में इस कारोबार को ठप हुए लगभग छह महीने हो चुके हैं। बैंड के कारोबार से जुड़े लोगों के पास कमाई का कोई जरिया नहीं है, क्योंकि शादियां अब बड़े स्तर के जश्न के स्थान पर चंद लोगों के शामिल होने तक सिमट गई है।

बैंडबाजे की बुकिंग ना होने की वजह से इस कारोबार से जुड़े खुर्शीद सिद्दीकी पुराने कपड़े बेच रहे हैं तो मोहम्मद अली इसी व्यवसाय से जुड़ी अपनी वस्तुएं जैसे बग्घी, लाइट यहां तक की घोड़ी भी बेचने में जुटे हैं। यह सिर्फ खुर्शीद या अली तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इस पेशे से जुड़े लोगों का यही हाल है।

ड्रम बजाने वाले सिद्दीकी कहते हैं कि महीनों से एक भी बुकिंग नहीं हुई है। सिर्फ शादी की ही नहीं बल्कि बच्चे के जन्म पर होने वाली बुकिंग तक भी नहीं हो रही है। सिद्दीकी की पुश्तैनी दुकान पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर में है।उन्होंने बताया कि वह अपनी दुकान भी 10,000 रुपये किराया पर लगा चुके हैं और खुद अब सड़क किनारे पुराने कपड़े बेचते हैं।

बैंड वालों की दर्द कहा- कोरोना ने हमें तबाह कर दिया,और सरकार हमें नजरअंदाज कर रही है

यहीं पर ‘ग्रेट बैंड ‘ के मालिक मोहम्मद अली ने कहा कि उन्होंने इसी साल जनवरी में बग्घी, लाइट और घोड़ी खरीदने में 4.5 लाख रुपये खर्च किए थे। ये सारे ऐसे सामान हैं, जिसके बगैर धूम-धाम से काफी खर्चे वाली शादियां नहीं होती हैं।उन्होंने कहा कि घोड़ी खरीदने में 2.5 लाख रुपये खर्च हुए थे और वे अभी इसे 50,000 रुपये में भी बेचने या 500 रुपया प्रतिदिन के लिहाज से भाड़े पर देने को तैयार हैं। उन्होंने कहा, 'बारिश में बग्घी को नुकसान पहुंच रहा है। सभी तरफ से परेशानियां घेर रही हैं। कोरोना वायरस ने हमें तबाह कर दिया। और सरकार हमें नजरअंदाज कर रही है।' वहीं यहां से कुछ किलोमीटर दूर लोनी सीमा पर रहनेवाले तुरही बजाने वाले नवी जान निराश हो चुके हैं। 58 वर्षीय नवी कहते हैं कि वे एक बैंड के साथ 1985 से काम कर रहे थे लेकिन मालिक ने बैंड बंद कर दिया है और तब से वे बेरोजगार हैं।उन्होंने कहा, 'मैं बिना काम के पिछले पांच महीनों से हूं। मैंने ईद पर मालिक को पैसे के लिए फोन भी किया था, लेकिन उसने लॉकडाउन का हवाला देते हुए मना कर दिया। घर में चार लोग हैं, जो मुझपर निर्भर हैं।' उनका कहना है कि उनके साथ बैंड में काम करने वाले 35 लोग अभी सब्जियां बेच रहे हैं, रिक्शा चला रहे हैं।