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ग्वालियर जेल में बंद मुस्लिम कैदी पढ़ेगा गीता, कहा- धर्म बांटता नहीं, जोड़ता है

Updated Oct 09, 2019 | 14:54 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

मध्य प्रदेश के ग्वालियर सेंट्रल जेल में बंद मुस्लिम कैदी गीता (Gita) पढ़ेगा।  उसने कहा कि धर्म विभाजित नहीं करता है बल्कि धर्म एकजुट करता है।

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तस्वीर साभार:&nbspIANS
Muslim prisoner in Gwalior jail to read Shrimad Bhagwad Gita

ग्वालियर: मध्य प्रदेश के ग्वालियर सेंट्रल जेल (Gwalior jail) में बंद अपराधी अकील पठान का मानना है कि धर्म विभाजित नहीं करता है, धर्म एकजुट करता है। इसलिए उसने 'श्रीमद् भगवद् गीता' (Shrimad Bhagwad Gita) पढ़ने का फैसला किया। पठान को एक हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया। इस मुस्लिम व्यक्ति ने हिंदू धर्मग्रंथ को जानने की इच्छा व्यक्त की है। उसका उत्साह उन लोगों को गलत साबित करता है जो धार्मिक आधार पर लोगों को विभाजित करते हैं।

अकील का कहना है कि सभी धर्म अच्छी चीजों के बारे में बताता है। वह जेल में किताबें पढ़ता है और मुस्लिम होने के नाते, उसकी प्राथमिकता उसके धर्म से संबंधित किताबें रही हैं। लेकिन, अब वह गीता पढ़ेंगे। उसने बताया कि वह गीता में लिख उपदेशों समझने की कोशिश करेगा और अगर उसे पसंद आता है तो उन्हें स्वीकार करेगा। अकील की तरह, अन्य मुस्लिम कैदियों ने भी गीता पढ़ने और नैतिकता को समझने की इच्छा व्यक्त की है। अपने धर्म से अलग सभी कैदियों ने गीता पढ़ने की इच्छा जाहिर की। वर्तमान में ग्वालियर की सेंट्रल जेल में 3,396 कैदी हैं, जिनमें से 164 महिलाएं हैं। महिला कैदियों में 21 बच्चे उनके साथ हैं। 

ग्वालियर जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADG) राजा बाबू सिंह ने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच गीता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक अभियान शुरू किया है। यहां तक कि वह बच्चों के साथ गीता ज्ञान के बारे में बात करने के लिए स्कूलों में जाते हैं। दशहरा के दिन, सिंह ने जेल परिसर में माला के साथ गीता प्रतियां वितरित कीं।

सिंह ने कहा कि गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं जो उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो धार्मिकता के रास्ते से हट गए हैं। कैदी कुछ बुरे कर्मों के कारण यहां रह रहे हैं और गीता पढ़ने से वे क्रोध और हताशा जैसी कई समस्याओं को दूर कर सकते हैं।'

वृंदावन के एक धार्मिक विद्वान आनंदेश्वर दास चैतन्य ने कहा कि गीता केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं है, यह एक आध्यात्मिक विकास है जिसे मनुष्य को जीवन के संविधान के रूप में स्वीकार करना चाहिए। जो देश के इस संविधान के खिलाफ जाता है, वह जेल में बंद हो जाता है। इसी तरह, जो व्यक्ति आध्यात्मिक संविधान का उल्लंघन करता है, वह  इस जीवन-चक्र में फंस जाता है।' उन्होंने जेल कैदियों से पहले गीता की प्रासंगिकता के बारे में बात कही थी।