- 21 सितंबर को हर्ष वर्ष मनाया जाता है इंटरनेशनल पीस डे
- कविता के जरिए समाज को सार्थक संदेश देने की हुई पहल
किसी भी समाज की प्रगति के लिए शांति का होना जरूरी है। शांति के होने का अर्थ है लोगों को समाज को, राजनीतिक शख्सियतों को, नीति नियंताओं को संयमित होना पड़ेगा। ना सिर्फ विचार में बल्कि व्यहार में भी । हर वर्ष 21 सितंबर के दिन को इंटरनेशल पीस डे के रूप में मनाया जाता है। इस खास दिन का उद्देश्य है कि वैश्विक स्तर पर अलग अलग देश अपने गिले शिकवे को भूलकर साझी समस्याओं से लड़ने के लिए ना सिर्फ अपने वादों को दोहराएं बल्कि उसे अमल में भी लाएं। इस खास मौके पर कविता के माध्यम से समाज को संदेश देने की कोशिश की गई है।
शांति- जीवन का चरम लक्ष्य ”
“ शांति - जीवन का चरम लक्ष्य,
चिर शांति- मानव जीवन का सनातन अंतिम सत्य,
इस शांति और चिर-शांति के मध्य,
की इस यात्रा में,
बैठे हैं हजारों दुश्मन, घात लगाये,
वो भी शांति-दूत बनकर,
देते हैं सभी धर्म , संदेश शांति का,
फिर क्यों हाथ में, अस्त्र- शस्त्र लिये,
फैला रहे हैं अशांति, रक्तपात,
वो भी धर्म और शांति का नाम लेकर,
जिस शांति की खोज में,
जाता है इंसान धर्म की शरण,
उसी का अब तक का,
सारा इतिहास भरा है,
रक्तपात और ज़ोर-जबरदस्ती से,
क्या वो ईश्वर है, निर्भर,
इंसानों द्वारा, धर्म के, ज्ञान के प्रसार पर,
और यदि है, तो,
वह फिर सर्व-शक्तिमान कैसा
सच तो है ये कि,
धर्म और शांति के नाम पर,
चलाई जा रही हैं, धर्म की दुकानें,
जहाँ शांति प्रदान करने के नाम पर,
भर दी जाती है-
अशांति, घृणा, वैमनस्यता,
सत्य- असत्य को लेकर,
फैला कर- झूठा भ्रम,
किया जाता है-
ढ़ोंग- सत्य, शांति, और सद्भावना का,
मनुष्य करता है जो कुछ इकट्ठा,
करता है- अनथक परिश्रम,
सिर्फ़ इसलिये कि,
जी सके चैन से,
पा सके शांति,
लेकिन क्या किसी,
बाहरी उपकरण, वस्तु या धन से,
किसी को मिली है, आज तक शांति,
बल्कि बढ़ जाती है- और भी भूख,
सांसारिक वस्तुओं की,
शांति पाने के वास्ते,
कर लेता है इकट्ठा, अशांति के ढ़ेरों यंत्र,
शांति और सुकून,
इकट्ठा करने में नहीं,
देने में है, बाँटने में है,
धर्म- मज़हब सब बेमानी है,
ग़र नहीं सीख पाये- ‘मानव- धर्म’,
और मानव- धर्म है-
जीना दूसरों की खुशी के लिये,
कहीं बाहर नहीं वो - ईश्वर,
बल्कि समाया है, वो हमारे ही घट में,
जिसे देखने के लिये,
आवश्यक नहीं किसी पुस्तक का अध्ययन,
किसी धर्म का अंधानुकरण,
बल्कि कोई भी,
तत्ववेत्ता करा सकता है,
प्रत्यक्ष साक्षात्कार उस परमसत्ता का,
जिसके बिना नहीं समझ आयेगा,
मर्म धर्म का,
रहस्य ईश्वर का,
नहीं मिल पायेगी,
वो अनिर्वचनीय सुख और शांति,
जो कहीं बाहर नहीं,
है हमारे ही अंदर,
वो गहन और दुर्लभ शांति । ”
डॉ. श्याम सुन्दर पाठक अन्नत
( कवि उत्तर प्रदेश वस्तु एवं सेवा कर में असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं तथा एक प्रसिद्ध लेखक व मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं )