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ये है भारत का 'दामादों का गांव', जहां लोग शादी के बाद रहते हैं अपनी ससुराल में, वजह दिलचस्प है

Updated Sep 06, 2020 | 22:52 IST

village of son-in-law in UP:उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में स्थित एक गांव का नाम हिंगुलपुर है, हिंगुलपुर गांव (Hingul Pur) की पहचान दामादों का पुरवा यानी दामादों के गांव के तौर पर है।

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प्रतीकात्मक फोटो

हमारे हिंदुस्तानी समाज में लड़कियों का बेहद महत्व है और उनको शादी के बाद अपने पति के घर जाना होता है यानि अपने ससुराल, मगर भारत में हर जगह की अपनी ही खासियत है और अपने ही रिवाज हैं। उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक गांव है हिंगुलपुर  (Hingul Pur) ये गांव दामादों के गांव के तौर पर अपनी अलग ही पहचान लिए है।

बताते हैं कि एक समय था जब हिंगुलपुर गांव में कन्या भ्रूण हत्या और दहेज हत्या के मामले ज्यादा आते थे, बाद में इस गांव ने अपने बेटियों को बचाने के लिए अनूठा काम किया जिसे आज तक निभाया जा रहा है। बताते हैं कि दशकों पहले गांव के बुजुर्गों ने लड़कियों को शादी के बाद मायके में ही रखने का फैसला किया।

यानि हिंगुलपुर गांव की लड़कियों से रिश्ता करना है तो आपको अपनी पत्नी के घर यानि लड़के को अपनी ससुराल में ही रहना होता है, यहां रिश्ता करने में ये एक अहम शर्त होती है।

दामादों को भी रोजगार मिल सके, इसकी व्यवस्था भी गांववाले मिलकर करते हैं

गांव में आने वाले दामादों को भी रोजगार मिल सके, इसकी व्यवस्था गांववाले मिलकर करते हैं बताते हैं कि इस गांव में आसपास के जिलों जैसे कानपुर, फतेहपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद आदि जिलों के तमाम दामाद रह रहे हैं और यहां एक ही घर में दामादों की पीढ़ियां बसी हुई हैं दामाद का ख्याल रखने के साथ ही  यहां लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर खास जोर दिया जाता है और पढ़ाई के बाद उन्हें कोई न कोई हुनर जैसे सिलाई-बुनाई भी सिखाई जाती है ताकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनी रहें और किसी पर निर्भर ना रहें।

यूपी के अलावा मध्यप्रदेश और झारखंड में भी हैं जमाइयों वाले गांव 

यूपी के अलावा मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय के पास भी ऐसा ही एक गांव है, जहां दामाद आकर रहने लगते हैं वहां का बीतली नामक गांव भी जमाइयों के गांव के नाम से मशहूर है इसके अलावा झारखंड के जमशेदपुर के आदित्यपुर में जमाई पाड़ा ऐसा ही एक गांव है, जहां जमाई ही रहते हैं जहां अब भी बेटियां शादी के बाद ससुराल नहीं जाती हैं, बल्कि दामाद गांव में बस जाते हैं और वहीं काम धंधा, नौकरी आदि करते हुए परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।