- यूक्रेन में करीब 18 हजार भारतीय छात्र-छात्राएं हैं। जो कि वहां मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई करते हैं।
- दोनों देशों के बीच 2019-20 में करीब 2.52 अरब डॉलर का कारोबार हुआ है।
- रैनबैक्सी, डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज, सन ग्रुप आदि जैसी कई भारतीय कंपनियों के यूक्रेन में कार्यालय हैं।
Russia-Ukraine Crisis: यूक्रेन पर युद्ध के बादल गहरे होते जा रहे हैं। पिछले दिनों संकट को दूर करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden)के बीच हुई करीब 50 मिनट की बातचीत भी फेल होती नजर जा रही है। और ऐसा लग रहा है कि रूस जल्द ही यूक्रेन पर हमला कर देगा। ऐसी भी खबरे हैं कि रूस इस हफ्ते या फिर शीतकालीन ओलंपिक के बाद हमला कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के अनुसार रूस ने करीब 1.30 लाख सैनिक यूक्रेन के बार्डर पर तैनात कर रखे हैं।
अगर युद्ध होता है तो उसका सीधा असर भारत पर भी पड़ने वाला है। जो कि दो तरफा हो सकता है। सबसे सीधा असर वह पर रहने वाले भारतीयों पर होगा। जिसमें करीब 18 हजार विद्यार्थी हैं। इसके बाद भारत और यूक्रेन के बीच 2.5 अरब डॉलर से ज्यादा होने वाले कारोबार पर असर होगा।
18 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र
भारतीय दूतावास के जरिए मिली जानकारी के अनुसार यूक्रेन में करीब 18 हजार भारतीय छात्र-छात्राएं हैं। जो कि वहां मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित अन्य पढ़ाई करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार इसमें सबसे ज्यादा बच्चे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हैं। ऐसे में अगर युद्ध छिड़ता है तो इन छात्र-छात्राओं के लिए संकट बढ़ सकता है।
इन कारोबार पर असर
अगर युद्ध छिड़ता है तो भारत और यूक्रेन के बीच होने वाले कारोबार पर भी असर होगा। दोनों देशों के बीच 2019-20 में करीब 2.52 अरब डॉलर का कारोबार हुआ है। इसमें करीब भारत ने 436.81 मिलियन डॉलर का निर्यात किया है और 2060.79 अरब डॉलर का यूक्रेन से आयात किया है।
भारत से यूक्रेन को प्रमुख रूप से फार्मास्युटिकल उत्पाद, रिएक्टर/बॉयलर मशीनरी, तिलहन, फल, कॉफी, चाय, मसाले, लोहा और इस्पात आदि का निर्यात होता है। जबति यूक्रेन से, भारत को प्रमुख रूप से सूरजमुखी तेल, अकार्बनिक रसायन, प्लास्टिक, रसायन आदि आयात करता है।
इन दवा कंपनियों का यूक्रेन में कारोबार
भारत, जर्मनी और फ्रांस के बाद, मूल्य के लिहाज से यूक्रेन को फार्मास्युटिकल उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। रैनबैक्सी, डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज, सन ग्रुप आदि जैसी कई भारतीय कंपनियों के यूक्रेन में कार्यालय है। ऐसे में साफ है कि अगर युद्ध होता है तो भारतीय कारोबार पर भी सीधा असर होगा।
भारत पर कूटनीतिक असर
अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो नॉटो के रवैये से साफ है कि उस पर पश्चिमी देश प्रतिबंध लगाएंगे। भारत के रूस के साथ-साथ नॉटो देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि से बेहतर संबंध हैं। ऐसी स्थिति में उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन बनकर आएगा। क्योकि रूस पर किसी तरह की सख्ती होने में साफ है कि चीन, रूस के पक्ष में ही खड़ा होगा। रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ने पर, वह रूस से भारत को हथियारों की सप्लाई पर असर डलवा सकता है। भारत रूस से अपने हथियारों की 50 फीसदी से ज्यादा जरूरतें पूरी करता है। हाल ही में भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से भारत ने एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा था।
हालांकि भारत, रूस को लेकर एकतरफा नीति से बचता आया है। इसी वजह से वह क्रीमिया के मसले पर रूस के साथ ही खड़ा नजर आया है। चाहे 2015 में हुआ कब्जा हो या फिर 2020 में यूक्रेन द्वारा क्रीमिया में मानवाधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में लाए गए प्रस्ताव का मामला हो। भारत रूस के साथ खड़ा रहा है। और यूक्रेन मसले पर भी उसने ऐसा ही रूख अपनाया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन मामले में रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रस्ताव पर मतदान से खुद को अलग रखा। इसके साथ उसने शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये तनाव को तत्काल कम करने की अपील भी की है।
रूस क्यों करना चाहता है हमला
इसकी जड़ें करीब 30 साल पुरानी है। यूक्रेन कभी रूस का हिस्सा हुआ करता था। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिल गई, लेकिन उसके बावजूद रूस उसे अपनी छत्रछाया में रखना चाहता था और यूक्रेन पश्चिमी देशों से अपने अपनी नजदीकियां बढ़ा रहा था। लेकिन 2010 में विक्टर यानूकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने के बाद फिर से यूक्रेन की रूस से नजदीकियां बढ़ने लगी और यूक्रेन ने यूरोपीय संघ में शामिल होने से इंकार कर दिया। लेकिन इस फैसले के बाद उनका स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हो गया और 2014 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
उसके बाद रूस ने 2015 में यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। और 2015 में फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता से युद्ध विराम हुआ। लेकिन रूस का आरोप है कि युद्ध विराम समझौते का पालन अच्छी तरह से नहीं हुआ। इसके अलावा रूस को आशंका है कि यूक्रेन नॉटो का सदस्य बन जाएगा। अगर ऐसा होता है तो नॉटो की सीमाएं रूस तक पहुंच जाएंगी। और यूक्रेन उसकी सुरक्षा और सामरिक हितों के लिए खतरा बन जाएगा।
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