- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सोमवार को ताइवान पर बड़ा बयान दिया
- बाइडेन ने कहा कि चीन अगर ताइवान पर हमला करता है तो वह सैन्य दखल देंगे
- चीन का कहना है कि वह अपने हितों से समझौता नहीं करेगा, वह मजबूती से जवाब देगा
नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ताइवान को लेकर सोमवार को बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि चीन अगर ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका सैन्य दखल देगा। ताइवान को लेकर अमेरिका के किसी राष्ट्रपति का अब तक का यह सबसे बड़ा बयान माना जा रहा है। बाइडेन का यह बयान चीन के मंसूबे को सीधे तौर पर चुनौती देने वाला है। क्वाड की बैठक में हिस्से ले रहे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए इंडो-पेसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEC) की घोषणा कर बीजिंग को एक बड़ा झटका दिया है। अपने खिलाफ चार देशों की एकजुटता देख चीन बौखलाते हुए इस पर प्रतिक्रिया दी है।
ताइवान पर हमला हुआ तो सैन्य दखल देंगे-बाइडेन
चीन सरकार के मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने लिखा है कि ताइवान पर चीनी हमले की सूरत में अमेरिका सैन्य दखल देगा, यह बयान देकर अमेरिकी प्रशासन 'वन चाइन पॉलिसी' को खारिज करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा है। बाइडेन के इस बयान का चीन कड़े शब्दों में निंदा करता है। रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि अमेरिका और उसके सहयोगी खासकर जापान यूक्रेन संकट का इस्तेमाल ताइवान को 'आजाद' रखने के लिए करना चाहते हैं लेकिन चीन इसका कड़ा विरोध करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक चीन अपने हितों से समझौता नहीं करने वाला है।
ताइवान को अपना हिस्सा मानता है चीन
बता दें कि चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसे लगता है कि एक दिन यह देश उसका हिस्सा बनेगा। वहीं, ताइवान खुद को एक 'आजाद' देश मानता है। कई देशों ने ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता दे रखी है। हाल के महीनों में ताइवान को लेकर चीन ज्यादा आक्रामक नजर आया है। उसकी वायु सेना ताइवान के वायु क्षेत्र में दाखिल हुई। रिपोर्टों में अंदेशा जताया गया है कि यूक्रेन पर जिस तरह से रूस ने हमला किया, कुछ इसी तरह की कार्रवाई ची भी ताइवान पर कर सकता है। चीन के मुकाबले ताइवान हर मामले में कमजोर है। उसे हथियार एवं सैन्य उपकरणों की आपूर्ति अमेरिका करता है।
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IPEF को आकार लेने में वर्षों लगेंगे-चीन
IPEF की घोषणा भी चीन को नागवार गुजरी है। अपनी एक अन्य रिपोर्ट में 'ग्लोबल टाइम्स' ने इस आर्थिक फ्रेमवर्क को लेकर अमेरिकी की काबिलियत पर सवाल खड़ा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने अमेरिका के इस कदम को चीन को अलग-थलग करने की एक कोशिश के रूप में देखा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस फ्रेमवर्क की घोषणा भले ही कर दी गई हो लेकिन इसे आकार लेने में वर्षों लगेंगे। ऐसा भी हो सकता है कि अमेरिका आगे चलकर इस आर्थिक मंच से दूरी बना ले। हालांकि, चीन के लिए इससे निपटना एक चुनौती है।