- चीन की धमकी के बावजूद अमेरिकी स्पीकर नैंसी पैलोसी ने दी ताइवान में दस्तक
- चीन ने दी थी चेतावनी, आग से ना खेले अमेरिका
- चीनी धमकियों का ताइवान पर कोई असर नहीं
China Taiwan latest News: साल था 2015 सितम्बर का, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिग अमेरिका के दौरे पर जाने की तैयारी कर रहे थे ये उनका 2013 के बाद पहला आधिकारिक विदेशी दौरा था। इस दौरे को यादगार बनाने के लिए चीन के राज्य मुखपत्र समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स में एक आर्टिकल लिखा जाता है, जिसमें चीन अमेरिका के संबंध को परिभाषित करने वाले विदेशी विद्वानों के विचार लिखे जाते हैं। इस आर्टिकल को लिखते हुए ग्लोबल टाइम्स में लिखे उस आर्टिकल के दुसरे लाइन में लिखी बात का उल्लेख किया जा रहा है।
ग्लोबल टाइम्स का लेख
ग्लोबल टाइम्स के इस आर्टिकल के दुसरे पंक्ति में ऑस्ट्रेलिया के पुर्व प्रधानमंत्री केविन रुड का जिक्र किया गया है। ग्लोबल टाइम्स केविन रुड के चीन और अमेरिका के रिश्तों के बारे में कही बातों का खंडन करता है। आइये केविन के इस बात को चाइना का मुखपत्र कैसे लिखता है देखें..'मंदारिन बोलने वाले पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रुड कहते हैं कि चीन और अमेरिका "एक बड़े शोर परिवार" की तरह हैं और उनके संबंध "केवल कल्पना से सीमित हैं।' अगर कोई कहता है कि चीन और अमेरिका के बीच संकट है, तो वह है hushuobada [बकवास के लिए चीनी शब्द ] 'यह एक सिहेयुआन [बीजिंग में पारंपरिक आंगन घर] की तरह है ... कभी-कभी आप झगड़े में पड़ जाते हैं, आपके बीच असहमति होती है, आपके पास इसे हल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है, और मुझे लगता है कि आप कर सकते हैं।'
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साफ तौर पर चीन अपने मुखपत्र के माध्यम से दोनो देशों के रिश्तों में ऐसे उतरते चढ़ते संबंधों से आगे बढ़ कर सोचने की का इशारा करता है। अतीत में चीन के इशारे चाहे जो भी रहें हों, अमेरिकी स्पीकर नैंसी पैलोसी के ताइवान यात्रा के बाद उपजी स्थिति के बाद चीन के उस जोश में काफी अंतर आ चुका है। आइये जानते हैं नैंसी पैलोसी के ताइवान यात्रा के बाद का पुरा इतिहास और वर्तमान घटनाक्रम-
कुछ ऐसा रहा है इतिहास
ताइवान, 17 वीं शताब्दी में चीन साम्राज्य का हिस्सा बना फिर पहले चीन-जापान युद्ध हारने के बाद इसे 1895 में जापान को सौंप दिया गया दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लगभग आधी सदी तक जापानी उपनिवेश बना रहा लेकिन युद्ध में जापान की हार के बाद चीन की सत्तारूढ़ राष्ट्रवादी सरकार, कुओमिन्तांग (केएमटी) को इसे सौंप दिया गया। हालांकि जल्द ही चीन में राष्ट्रवादियों - जिन्होंने इंपीरियल चीन के पतन के बाद चीन गणराज्य (आरओसी) के झंड़े के नीचे शासन स्थापित किया था उसपर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के साथ गृहयुद्ध में हार गये और आरओसी सरकार की सीट को नानजिंग से ताइपे में स्थानांतरित कर किया।इसबीच दोनों ने खुद को पूरे चीनी क्षेत्र की एकमात्र वैध सरकार घोषित किया, जो झगड़े का जड़ बना।
क्यों है अमेरिका की नज़र, चिढ़ा चीन क्यों है
- चीनी गृहयुद्ध के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका ने राष्ट्रवादी सरकार यानि केएमटी का समर्थन किया, जबकि कम्युनिस्टों को सोवियत संघ ने समर्थन दिया
- इस रूस और चीन के बीच फूट हो गयी जिससे रूस का सहयोग चीन के कम्युनिस्ट सरकार के लिए कम हुआ वही अमेरिका ने ताइवान के केएमटी सरकार को सहयोग देना जारी रखा।
- हालांकि अमेरिका ने 1979 के दशक तक अपना पाला बदला और तापेई के साथ साथ बीजिँग के साथ भी सम्बन्ध सुधारे जिसे चीन की "वन चाइना" पॉलिसी कहते हैं।
- ध्यान देने वाली बात ये है कि भले ही अमेरिका ने "वन चाइना" पॉलिसी को मान्यता दी पर चीन के सीपीसी सरकार के संप्रभूता को स्वीकार नहीं किया।
- अमेरिका ने बिना यह स्पष्ट किये कि वह ताइवान को प्रत्यक्ष सहायता देगा या नहीं,गुप्त तरीके से मिलिट्री हथियार और स्ट्रेटेजीक सहयोग देने मे कोई कमी नहीं की है।
- यह नीति बाइडेन सरकार मे और स्पष्ट रूप से प्रसारित की गयी है।
- जो बाइडेन ने ताईवान को तीन मौकों पर सहायता की पेशकश की है, जिससे चीन चिढ़ा हुआ है।
ताइवान मे सत्ता के बदलाव के बाद रिश्ते और हुए खराब
चीन के स्थापना के बाद बिजिंग और तापेई के बीच शांति बनी रही पर स्थितियाँ 2016 के बाद बदली हैं, जब महिला राष्ट्रपति ताई इंग वेन ने चीन की आक्रामक नीति को जवाब दिया है। राष्ट्रपति ताई इंग वेन ने चीन के खिलाफ भारत अमरीका सहित अनेक देशों के साथ राजनितिक सम्बन्ध मजबूत किये हैं।
चीन ताइवान युद्ध कितनी दूर
अमेरिकी स्पीकर नैंसी पैलोसी के ताइवान दौरे के बाद चीन ने अमेरिका को आग से ना खेलने तक की धमकी डे दी थी उसके बाद आज से चीन ने अपने छह प्रांतो मे मॉक ड्रिल की है हालांकि ताइवान के डिफेंस मिनिस्टर ने 2025 तक युद्ध की आशंका को व्यक्त की थी। अंतराष्ट्रीय न्यूज़ संस्था CNN से बात करते हुए ताइवान की राष्ट्रपति कहा था कि चीनी संकट बढ़ता जरूर जा रहा है पर तापेई कि सड़कों पर अभी भी शांति बरकरार है। चीनी अर्थव्यवस्था मे चरमहराहट के संकेतों के बीच अमेरिका से झगड़ा मोल लेना चीन के लिए कितना फायदेमंद रहेगा और इसकी विश्व पर प्रभाव रहेगा यहहोगी यह जानने योग्य रहेगा।