दुबई : सीरिया में ईरान के पूर्व राजदूत और शिया धर्मगुरु तथा पुस्तक बम हमले में अपना एक हाथ गंवाने वाले अली अकबर मोहताशमीपोर की कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मौत हो गयी। वह 74 वर्ष के थे। उन्होंने लेबनानी चरमपंथी समूह हिजबुल्ला की स्थापना में मदद थी।
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रुहोल्ला खामेनी के विश्वस्त सहयोगी रह चुके अली अकबर ने संपूर्ण पश्चिम एशिया में 1970 के दशक में मुस्लिम उग्रवादी समूहों के साथ गठबंधन किया। इस्लामिक क्रांति के बाद उन्होंने ईरान में अर्द्धसैनिक बल रिवोल्यूशनरी गार्ड की स्थापना की और सीरिया में राजदूत के रूप में बल को क्षेत्र तक ले गये जहां हिजबुल्ला की स्थापना में मदद मिली।
सुधारवादियों के साथ भी जुड़े
जीवन के बाद के वर्षों में इस्लामी गणराज्य के धर्म आधारित शासन को अंदर से बदलने के उम्मीद में वह धीरे-धीरे सुधारवादियों के साथ हो गये। उन्होंने 2009 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद की फिर से हुई विवादित जीत के बाद देश के हरित आंदोलन में विपक्षी नेताओं मीर हुसैन मौसवी और महदी करौबी का समर्थन किया। अली अकबर ने उस समय कहा था कि लोगों की इच्छा के समक्ष कोई भी ताकत खड़ा नहीं रह सकती है।
सरकारी संवाद एजेंसी ईरना की खबर में कहा गया कि अली अकबर का उत्तरी तेहरान के एक अस्पताल में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण निधन हो गया।
10 वर्षों से इराक था ठिकाना
ईरान में विवादित चुनाव के बाद पिछले दस साल से अधिक समय से धर्मगुरु इराक के शिया बहुल आबादी वाले नजफ में रहते आ रहे थे। नजफ शिया मुसलमानों का सबसे पवित्र शहर माना जाता है। धर्मगुरु सिर पर काले रंग का साफा बांधते थे।
इरना समाचार एजेंसी की खबरों के अनुसार न्यायपालिका के कठोर रुख रखने वाली प्रमुख इब्राहिम रईसी ने अली अकबर के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की है। ईरान में अगले सप्ताह होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रईसी प्रमुख उम्मीदवार माने जा रहे हैं।
अली अकबर का जन्म तेहरान में 1947 में हुआ था। वह निर्वासन में रह रहे मौलवी के रूप में खामेनी से मिले थे। शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने अली अकबर को ईरान से निकाल दिया था और वह नजफ में रह रहे थे।
मोसाद के हमले से बाल-बाल बचे थे
पत्रकार रोनेन बर्गमैन की पुस्तक 'राइस एंड किल फर्स्ट' के अनुसार, इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने 1984 में वैलेंटाइन डे के रोज उन्हें मारने के लिये एक पुस्तक भेजा थी जिसके अंदर बम रखा था। अली अकबर ने जैसे ही पुस्तक को खोला, उनका दाहिना हाथ और बायें हाथ की दो उंगली धमाके में उड़ गयी थी । हालांकि वह इस विस्फोट में जीवित बच गये। बाद में अली अकबर ईरान के आतंरिक मामलों के मंत्री बने।