नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने संसद में कहा है कि नेपाल गुटनिरपेक्ष विदेश नीति अपनाता रहा है। नेपाल सरकार ने हमेशा राष्ट्रीय हित को सामने रखा है और अपने पड़ोसियों और अन्य देशों में पारस्परिक लाभ के मुद्दों पर काम किया है। नेपाल सरकार अपने क्षेत्रों की रक्षा के लिए तैयार है। लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के क्षेत्र नेपाली हैं और सरकार को इसके बारे में अच्छी समझ है। सीमा का मुद्दा संवेदनशील है और हम समझते हैं कि इसे कूटनीतिक माध्यमों से बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है। इस पर कार्रवाई करते हुए हम राजनयिक माध्यमों से अपने प्रयास कर रहे हैं। सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं और नीतियों में इस मुद्दे को उचित स्थान दिया गया है।
8 मई 2020 को भारत द्वारा उत्तराखंड के धारचूला के साथ लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क खोलने के बाद द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हो गए। नेपाल ने सड़क के उद्घाटन का विरोध करते हुए दावा किया कि यह उसके क्षेत्र से होकर गुजरती है। कुछ दिनों बाद नेपाल लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को अपने क्षेत्रों के रूप में दिखाते हुए एक नया नक्शा लेकर आया। भारत ने इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। जून 2020 में नेपाल की संसद ने देश के नए राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी दी, जिसमें उन क्षेत्रों को दर्शाया गया है, जो भारत के अधीन आते हैं। नेपाल द्वारा नक्शा जारी करने के बाद, भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे 'एकतरफा कार्रवाई' बताया और काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा 'कृत्रिम विस्तार' उसे स्वीकार्य नहीं होगा।
भारत के नए नक्शे में 372 वर्ग किलोमीटर वाले क्षेत्र कालापानी को उत्तराखंड में स्थित बताया गया है जबकि नेपाल इसे अपना हिस्सा मानता है। कालापानी सीमा विवाद का यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब भारत सरकार ने दो नवंबर 2019 को जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को नया केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद भारत का नया नक्शा जारी किया। भारत सरकार का दावा है कि उसने नेपाल के साथ लगनी वाली अपनी सीमा में कोई बदलाव नहीं किया है लेकिन नेपाल सरकार का कहना है कि लिपुलेख उसके क्षेत्र में आता है।
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