- पाकिस्तान की 342 सीटों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है।
- इमरान की सबसे बड़ी समस्या यहा है कि उनकी पार्टी के ही दो दर्जन के करीब सदस्य बागी हो गए हैं।
- इमरान खान के खिलाफ बदहाल इकोनॉमी और बढ़ती महंगाई ने भी विपक्ष को एकजुट कर दिया है।
Imran Khan In Crisis: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) की कुर्सी बचेगी या जाएगी इसका फैसला अब जल्द ही होने वाले है। अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे इमरान खान, अगस्त 2018 में सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तान (Pakistan)के अपने सबसे बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं।
उनके शासनकाल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब विपक्षी दलों के साथ उन्हें अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (PTI) में भी बागियों का सामना करना पड़ रहा है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि उनकी सबसे बड़ी सहारा पाकिस्तानी सेना भी, उनसे दूरी बना रही है। और वह अविश्वास प्रस्ताव के मसले पर तटस्थ रहने की बात कह रही है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि पिछले साढ़े तीन साल के शासन में ऐसा क्या कर दिया, जिससे इमरान खान की कुर्सी जाने तक की नौबत आ गई है।
ISI प्रमुख नियुक्ति के बाद सेना से बढ़ी दूरी
इमरान खान की सरकार जबसे सत्ता में आई है, उसी वक्त से विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि इमरान खान की सरकार इलेक्टेड नहीं सेलेक्टेड है। यानी उनकी पार्टी के चुनाव जीतने में सेना का बड़ा समर्थन रहा है। लेकिन पिछले साल से सेना और सरकार के बाद मतभेद उजागर होने लगे थे।
उस वक्त आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर विवाद सार्वजनिक तौर पर सामने आया था। इमरान खान तत्कालीन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को आईएसआई प्रमुख पर कुछ और अधिक समय तक रखना चाहते थे। जो कि सेना को पसंद नहीं था। ऐसे में इमरान खान ने सार्वजनिक तौर पर यह भी बयान दे डाला था कि इस पद पर नियुक्ति करने का अधिकार उनका है। हालांकि बाद में उन्हें झुकना पड़ा और सेना की पसंद लेफ्टिनेंट नदीम अंजुम को आईएसआई प्रमुख बनाना पड़ा।
लेकिन वहां से सेना और इमरान खान के बीच दूरियां बढ़ती गई। ऐसी भी खबरें आई कि विपक्ष ने जब अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का फैसला किया तो उसके बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना के शीर्ष अधिकारियों ने इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान से इस्तीफा देने का अल्टीमेटम दे दिया।
इसके अलावा नए सेना प्रमुख का नियुक्ति भी जल्द ही होने वाली है। ऐसे में सेना आईएसआई प्रमुख जैसा विवाद दोबारा नहीं चाहती है। जिसे देखते हुए वह अविश्वास प्रस्ताव के समय अपने को तटस्थ बता रही है।
विपक्ष को एकजुट होने का मौका दिया
जो विपक्ष, इमरान खान के खिलाफ एक जुट नहीं हो पा रहा था। उसे इमरान खान ने अपने खिलाफ एकजुट होने का मौका दिया। पहले तो उन्हें अपने गठबंधन के साथियों के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी शुरू की। इसके बाद बढ़ती महंगाई और खस्ताहाल इकोनॉमी की वजह से पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) ,पकिस्तान पीपुल्स पार्टी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम भी अविश्वास प्रस्ताव के लिए एकजुट हो गए।
असल में पाकिस्तान की 342 सीटों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। लेकिन अभी इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ के पास कुल 155 सीटें हैं। जबकि सहयोगी दलों के जरिए 24 सीटों का समर्थन उसे प्राप्त है। पीएमएल-क्यू, मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) और बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) का उन्हें सरकार में फिलहाल समर्थन है।
इमरान की सबसे बड़ी समस्या यहा है कि उनकी पार्टी के ही दो दर्जन के करीब सदस्य बागी हो गए हैं। और उन्हें इमरान खान अपने पाले में लाने में फेल होते नजर आ रहे है।
इकोनॉमी हुई बदहाल
इमरान खान के खिलाफ बदहाल इकोनॉमी भी मुद्दा बनती गई। उनके दौरा में पाकिस्तान द्वारा लिया गया उधार और देनदारी पहली बार 50 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये के आंकड़े को पार कर गई । सितंबर 2021 में यह देनदारी 50.5 लाख करोड़ पाकिस्तान रुपये थी। जो कि अभी 51 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये के करीब है। इसमें से करीब 20 लाख करोड़ पाकिस्तान रूपये की बढ़ोतरी इमरान खान सरकार के दौर में हुई है। इसी तरह फरवरी में उपभोक्ता महंगाई दर 12.2 फीसदी पर पहुंच गई। वहीं फरवरी 2022 में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 2 अरब डॉलर से ज्यादा रहा। और पेट्रोल की कीमतें 21 मार्च को पाकिस्तान में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमतें 149.86 पाकिस्तानी पहुंच गई। इसी तरह डीजल की कीमतें 144 पाकिस्तानी रुपये पहुंच गईं।