काबुल: दशकों तक अमेरिका और उसके सहयोगियों से लड़ाई लडने वाले तालिबान के शीर्ष नेता ने इस हफ्ते अफगानिस्तान में शानदार वापसी की।उम्मीद की जा रही है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की तालिबान और अफगान सरकार के अधिकारियों से वार्ता में अहम भूमिका होगी। तालिबान ने कहा है कि वह 'समावेशी इस्लामिक' सरकार बनाना चाहता है और दावा किया है कि वह पिछली बार के मुकाबले अधिक नरम रुख अपनाएगा। हालांकि, कई अब भी आशंकित है और उनकी नजर अब बरादर पर है जिसने अबतक बहुत कम तालिबान के संभावित शासन के बारे में कहा है लेकिन पूर्व में खुद को व्यवहारिक साबित किया है।
बरादर की जीवनी तालिबान की यात्रा का प्रतिबिंब है जिसने इस्लामिक मिलिशिया से वर्ष 1990 के दशक में युद्ध क्षत्रप की भूमिका निभाई और देश की सत्ता इस्लामिक कानूनों की कट्टर व्याख्या के आधार पर चलाई और दो दशक तक अमेरिकी घुसपैठ के खिलाफ लड़ता रहा। उसका अनुभव तालिबान की पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ जटिल रिश्तों पर भी प्रकाश डालता है। वह तालिबान के मौजूदा सर्वोच्च नेता मौलवी हिबातुल्ला अखुंजादा के मुकाबले अधिक नजर आता है। माना जाता है कि अखुंजादा पाकिस्तान में छिपा है और केवल बयान जारी करता है।
उसका 20 साल का निर्वासन भी समाप्त हुआ
मंगलवार को बरादर, दक्षिण अफगानिस्तान के कंधार शहर पहुंचा जहां से तालिबान आंदोलन की शुरुआत 1990 के दशक के मध्य में हुई। इसके साथ ही उसका 20 साल का निर्वासन भी समाप्त हुआ। वह जैसे ही कतर सरकार के विमान से उतरा, समर्थकों की भीड़ जमा हो गई। बरादर का जन्म उरुजगन प्रांत में हुआ था और बाद में वह सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने के लिए सीआईए- पाकिस्तान समर्थित मुजाहिदीन के तौर पर मिलिशिया में शामिल हुआ। सोवियत संघ की अफगानिस्तान से वर्ष 1989 में वापसी हुई।
1994 में मुल्ला उमर, बरादर और अन्य ने तालिबान की स्थापना की
वर्ष 1990 के दशक में देश में गृहयुद्ध शुरू हो गया और प्रतिद्वंद्वी मुजाहिदीन एक दूसरे से इलाके पर कब्जे के लिए लड़ने लगे। क्षत्रप निर्दयी सुरक्षा गिरोह चलाने लगे और जांच चौकी स्थापित की जहां पर यात्रियों से उनकी सैन्य गतिविधि के लिए धन लिया जा सके।वर्ष 1994 में मुल्ला उमर, बरादर और अन्य ने तालिबान की स्थापना की जिसका मतलब होता है धार्मिक विषयों का छात्र। समूह में मुख्य रूप से धार्मिक नेता और युवा, धर्मिनिष्ठ लोग शामिल हुए जो घरों को छोड़कर आए थे और केवल युद्ध करना जानते थे। बरादर ने मुल्ला उमर के साथ युद्ध लड़ा जिसकी वजह से तालिबान वर्ष 1996 में सत्ता पर काबिज हुआ।
वर्ष 1996 से 2001 के तालिबान के शासन के दौरान राष्ट्रपति और कार्यकारी परिषद काबुल में थी लेकिन बरादर अपना अधिकतर समय कंधार में बिताता था जो तालिबान की आध्यात्मिक राजधानी थी । बरादर की आधिकारिक भूमिका सरकार में नहीं थी।अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद जब अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को तालिबान द्वारा शरण देने पर अफगानिस्तान पर चढ़ाई की तब बरादर, उमर और अन्य तालिबानी नेता पड़ोसी देश पाकिस्तान भाग गए।इसके आगे के सालों में तालिबान सीमा से लगे अर्धस्वायत्त इलाकों में खुद को संगठित करने में सफल रहा। बरादर को वर्ष 2010 में सीआईए और आतंकवाद निरोधक बल के संयुक्त अभियान में पाकिस्तान के कराची शहर से गिरफ्तार किया गया।
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हमिद करजई ने बाद में पुष्टि की कि उन्होंने दो बार अमेरिका और पाकिस्तान से बरादर को रिहा करने का अनुरोध किया था और अंतत: उसे 2013 में सहयोग करने की शर्त पर रिहा किया गया था। करजई इस समय अगली सरकार को लेकर तालिबान से बात कर रहे हैं और हो सकता है कि एक बार फिर वह बरादर से खुद बात करें। बरादर के नेतृत्व में तालिबान की वार्ता टीम ने कतर में कई दौर की वार्ता की थी जिसके बाद फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ समझौता हुआ था। अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी बरादर से मुलाकात की थी।