- पहले दिन की लड़ाई में यूक्रेन के 137 लोग मारे गए हैं जबकि 300 लोग घायल हो गए हैं।
- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साफ कर दिया है कि वह रूस के खिलाफ अमेरिकी सेना को नहीं उतारेंगे।
- अमेरिका-ब्रिटेन के अब तक के प्रतिबंध ऐसे नहीं है जो रूस को यूक्रेन में आगे बढ़ने से रोक सके।
Russia-Ukraine War: रूस के हमले के दूसरे दिन यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोडीमिर जेलेंस्की का भावुक बयान समाने आया है। उन्होंने कहा कि हमें इस जंग में रूस से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है। कौन हमारे साथ लड़ने के लिए तैयार है? मुझे कोई नहीं दिख रहा है। यूक्रेन को नाटो सदस्यता की गारंटी देने के लिए कौन तैयार है? हर कोई डरता है । जेलेंस्की की बेबसी इस बयान में पूरी तरह से झलक रही है। और यह भी साफ हो गया है कि उन्हें जिन पश्चिमी देशों पर सबसे ज्यादा भरोसा था, वह अब यूक्रेन को बचाने के लिए नहीं आ रहे हैं। और दूर से उसकी तबाही देख रहे हैं। उनकी तरफ से केवल जुबानी सहायता और कुछ हल्के-फुल्के आर्थिक प्रतिबंध की ही अभी तक (खबर लिखे जाने तक) कार्रवाई हुई है।
पहले दिन 137 लोग मारे गए
पहले दिन की लड़ाई में ही रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव के करीब पहुंच गई। और अब उसका दावा है कि जल्द ही वह कीव पर पूरी तरह से कब्जा कर लेगी। इस बीच पहले दिन की लड़ाई में यूक्रेन के 137 लोग मारे गए हैं जबकि 300 लोग घायल हो गए हैं। हाथ से निकलते यूक्रेन को बचाने के लिए वहां की सरकार ने स्थानीय नागरिकों को भी युद्ध में उतरने को कहा है। उसने कहा है कि हम उन्हें हथियार देंगे और रूस के खिलाफ लड़ेंगे।
बाइडेन ने खड़े किए हाथ
यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोडीमिर जेलेंस्की को सबसे ज्यादा उम्मीद नाटो देशों से थी। उन्हें उम्मीद थी कि जब रूस हमला करेगा तो निश्चित तौर अमेरिक सहित नाटो के देश उसकी मदद को आगे आएंगे और सैन्य कार्रवाई में मदद करेंगे। लेकिन अभी तक अमेरिका ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस और दूसरे किसी भी नाटो देश ने यूक्रेन की मदद के लिए सेना नहीं भेजी है। और अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साफ कर दिया है कि वह रूस के खिलाफ अमेरिकी सेना को नहीं उतारेंगे। उन्होंने बृहस्पतिवार को कहा कि यूक्रेन में हमारी सेना जंग के लिए नहीं जाएगी और नाटो के सभी देशों को हमारा समर्थन रहेगा। असल में यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है। ऐसे में 30 संगठनों वाले नाटो के ऊपरी कोई कानून दबाव नहीं है कि वह यूक्रेन की रक्षा के लिए अपनी सेनाएं भेजे। बाइडेन ने कहा है कि वह कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाएंगे। जिसका परिणाम रूस को भुगतना पड़ेगा। लेकिन क्या हकीकत में ऐसा है...
अभी तक के प्रतिबंध कितने असरदार
अमेरिका ने अभी रूस के दो बैंकों को यूएस-यूरोप में कारोबार से रोका है। और कहा है कि जरूरत पड़ने पर पुतिन और ऐसे प्रभावशाली लोगों की अमेरिका में स्थित संपत्तियों को जब्त करेगा। जाहिर यह ऐसे प्रतिबंध नहीं है कि दुनिया की 11 वीं बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश रूस को बहुत हद तक प्रभावित कर सके। ऐसी खबरें थी कि अमेरिका रूस को चिप निर्यात रोक सकता है। जो कि उसके लिए बड़ा झटका होता, लेकिन अभी तक ऐसा नही किया है। असल में कोविड-19 के बाद बदली परिस्थिति में अमेरिकी में भी महंगाई उच्चतम स्तर पर है। ऐसे में सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाना अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा।
ब्रिटेन ने 5 रूसी बैंकों और उसके तीन रूसी अरबपतियों पर प्रतिबंध लगाया है। इसके तहत रोसिया, जेनबैंक, प्रोम सव्याज बैंक,आईएस बैंक, ब्लैक सी बैंकों पर प्रतिबंध लगाया है। ये सभी बैंक रूस के छोटे बैंक हैं। ऐसे में बहुत ज्यादा असर पड़ने की संभावना नही है।
जर्मनी ने 11.6 अरब डॉलर की नार्ड स्ट्रीम 2 गैस परियोजना पर रोक लगा दी है। लेकिन अभी यह गैस पाइपलाइन शुरू नहीं हुई है। ऐसे में इस प्रतिबंध से न तो जर्मनी की गैस सप्लाई पर कोई असर होगा और न ही रूस को तात्कालिक कोई नुकसान होगा। जर्मनी ने यह प्रतिबंध भी अस्थायी रूप से लगाया है। नार्ड स्ट्रीम-1 गैस पाइपलाइन की सप्लाई जारी है।
इसके अलावा यूरोपीय संघ, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि ने प्रमुख रूप से राजनयिकों की अपने देश में एंट्री पर प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा कुछ देशों ने रूसी बांड पर सख्ती की है। साफ है कि यह ऐसे प्रतिबंध है, जिनका रूस पर फिलहाल बहुत असर होता नहीं दिख रहा है। और यह पुतिन के बयान से भी साफ है जब उन्होंने यूक्रेन पर हमला करते हुए कहा था कि हम तरह की चीजों के लिए तैयार हैं।
रूस 2014 की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत
साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया था तो अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। उस वक्त इन प्रतिबंधों की वजह से रूस की जीडीपी में 2.5 फीसदी की गिरावट आई थी। लेकिन सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार अब प्रतिबंध लगने पर रूस की जीडीपी में एक फीसदी की गिरावट आएगी और अगर SWIFT (200 देश फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन के लिए करते हैं स्विफ्ट का इस्तेमाल) पर प्रतिबंध लगा तो 5 फीसदी तक जीडीपी में गिरावट आ सकती है। हालांकि स्विफ्ट पर सख्ती करना आसान नहीं है। और रूस ने 2014 से सबक लेते हुए अपने कारोबार में कई तरह के अहम बदलाव कर दिए है।
पिछले 20 साल में रूस के कारोबार को देखा जाय तो उसके निर्यात और आयात में अमेरिका और यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी घटी है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार रूस ने 2020 में रूस ने 300 अरब डॉलर से ज्यादा का निर्यात किया था और 200 अरब डॉलर से ज्यादा आयात किया है। और इसमें अमेरिका, यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी घटी है और चीन और दूसरे देशों की हिस्सेदारी बढ़ी है। इसी तरह 2014 की तुलना में रूस का गोल्ड और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है। 2014 में रूस के पास करीब 500 अरब डॉलर का रिजर्व था। जबकि फरवरी 2022 में उसके करीर 630 अरब डॉलर का गोल्ड और विदेशी मुद्रा भंडार है।
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