- यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका मानव विकास सूचकांक में दुनिया में 72 वां स्थान रखता था।
- श्रीलंका में हालात बिगड़ने के बीज 2019 के राष्ट्रपति चुनाव के समय ही बो दिए गए थे।
- फरवरी तक राजपक्षे परिवार के 5 सदस्यों के पास देश के सबसे अहम पद थे।
Sri Lanka In Crisis:पड़ोसी देश श्री लंका जल रहा है, लोग सड़कों पर हैं। हालात ऐसे हैं कि लोगों को खाने-पीने की जरूरी वस्तुएं भी आसानी से नहीं मिल रही है। एटीएम खाली पड़े, 13-14 घंटे तक बिजली नहीं है। और इस बीच नाराज लोगों ने अब सत्ताधारी नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के मंगलवार को इस्तीफा देने के बाद भी प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और उन्होंने राजपक्षे के पैतृक घर में आग लगा दी। वहीं राजपक्षे की पार्टी के सांसद अमरकीर्ति अतुकोरला की रहस्मयी परिस्थितियों में मौत हो गई है। राजपक्षे परिवार के खिलाफ नाराजगी का आलम यह है कि लोगों के गुस्से से बचने के लिए परिवार को किसी गुप्त स्थान पर छुपना पड़ा है।
राजपक्षे परिवार का श्रीलंका पर कब्जा
श्रीलंका में गृहयुद्ध जैसे हालात के लिए सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार राजपक्षे को जिम्मेदार बताया जा रहा है। फरवरी तक राजपक्षे परिवार के 5 सदस्यों के पास देश के सबसे अहम पद थे। गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका का राष्ट्रपति है। जबकि कल इस्तीफा देने से पहले तक उनके भाई महिंद्र राजपक्षे के पास प्रधानमंत्री पद था। इसी तरह वित्त मंत्री का पद बासिल राजपक्षे, सिंचाई मंत्री का पद चामल राजपक्षे और खेल मंत्री का पद नामल राजपक्षे के पास था। और दूसरे सदस्य भी अहम पदों पर काबिज थे
असल में पिछले 17 साल में 13 श्रीलंका की सत्ता पर काबिज रहे राजपक्षे परिवार ने जिस तरह 2019 के बाद श्रीलंका की सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया। उसे लोग मौजूदा संकट के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका मानना है कि राजपक्षे परिवार की गलत नीतियों, भ्रष्टाचार, परिवारवाद की वजह से आज श्रीलंका की यह स्थिति हुई है। क्योंकि करीब 26 साल तक गृह युद्ध का सामना करने वाले श्रीलंका की स्थिति उस समय भी उतनी बुरी नहीं हुई, जितनी की आज है। 1948 में आजाद होने के बाद बीते 12 अप्रैल को ऐसा पहली बार हुआ, जब श्रीलंका सरकार ने अंतरराष्ट्रीय पेमेंट डिफॉल्ट कर दिया है। असल में लोग को यह भरोसा नहीं हो रहा है कि जो श्रीलंका अभी कुछ वर्षों पहले तक खुशहाल था, वह इतनी बुरी स्थिति में कैसे पहुंच गया।
शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य में बेमिसाल रही है तरक्की
1948 में आजाद होने वाला द्वीपीय देश श्रीलंका मानव विकास सूचकांक में काफी बेहतर प्रदर्शन करता रहा है। चाहे शिक्षा की बात हो, स्वास्थ्य सेवाओं की बात या फिर लोगों की इनकम, इन सभी पैमाने पर श्रीलंका का प्रदर्शन अच्छा रहा है। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार श्री लंका मानव विकास सूचकांक में दुनिया में 72 वां स्थान रखता था। जबकि भारत का 131 वां स्थान था। वहीं औसत प्रति व्यक्ति उम्र 77 साल है। जबकि भारत में यह 69.7 साल है। इसी तरह वहां पर औसतन एक बच्चा 14.1 साल स्कूल में बिताता है। जबकि दुनिया के उच्च मानव सूचकांक वाले देशों में यह 14 वर्ष है। इसी तरह भारत में यह 12 साल है। इसी तरह विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका की साक्षरता दर 2019 में 92 फीसदी थी। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि श्रीलंका दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है।
कैसे बिगड़े हालात
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका में हालात बिगड़ने के बीज 2019 के राष्ट्रपति चुनाव के समय ही बो दिए गए थे। जब तत्कालीन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार गोटबाया राजपक्षे ने यह ऐलान किया कि वह अगर चुनाव जीतते हैं तो टैक्स में भारी कटौती करेंगे। राजपक्षे का यह चुनावी दांव तो चल गया लेकिन उसका नुकसान अब श्रीलंका को उठाना पड़ रहा है। चुनाव जीतने के बाद 15 फीसदी वैल्यू एडेड टै्कस (VAT)को घटाकर 8 फीसदी कर दिया गया। इसके अलावा दूसरी रियायतें भी दी गई। लिहाजा सरकार की खर्च की तुलना में कमाई घट गई। इसका असर यह हुआ कि श्रीलंका सरकार कर्ज पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो गई।
विश्व बैंक की रिपोर्ट इस असर का खुलासा करती है। उसके अनुसार श्रीलंका पर करीब 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है। जिसमें उसे 4 अरब डॉलर का इसी साल भुगतान करना है। लेकिन भुगतान के लिए उसके पास पैसे नही हैं। हाल ही में श्रीलंका के पूर्व वित्त मंत्री अली साबरी ने संसद में बताया था कि उपयोग करने योग्य विदेशी मुद्रा भंडार 50 मिलियन डॉलर से भी नीचे चला गया है। उन्होंने यह भी बताया था कि हम अपनी आया से ढाई गुना अधिक खर्च कर कर रहे हैं।
आर्थिक संकट ने श्रीलंका को जला दिया, जानें अब तक क्या हुआ
लगातार गिरती अर्थव्यवस्था की एक वजह कोविड-19 की वजह से पर्यटन का बैठ जाना भी है। और उसके बाद सुधरते हालात में 2019 में ईस्टर के मौके पर आतंकवादी हमले ने विदेशी पर्यटकों का भरोसा तोड़ दिया। इसके अलावा श्रीलंका सरकार ने उर्वरक आयात पर प्रतिबंध लगातार खेती की कमर ही तोड़ दी। सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के नाम पर यह तुगलकी फैसला किया था। जिसका असर कृषि उत्पादन पर सीधा हुआ। और फरवरी में महंगाई दर 15 फीसदी को पर कर गई। और अब हालात इस स्थिति में हैं कि वहां पर अराजकता के अलावा फिलहाल दूसरा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।