- आतंकवाद के प्रति अपने वादे को तालिबान को जमीन पर भी उतारना चाहिए
- अफगानिस्तान में मदद पहुंचाने वाले देशों को बिना किसी बाधा के पहुंचने की इजाजत होनी चाहिए
- अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता बने रहना पूरी दुनिया के लिए जरूरी
अफगानिस्तान में तालिबान का राज है और दुनिया को स्वाभाविक तौर पर चिंता है कि आतंकवाद को रोकने के लिए वो कितना प्रभावी कदम उठाएंगे। तालिबान की तरफ से वैश्विक समुदाय को भरोसा दिया जा रहा है उसकी धरती का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा। लेकिन तालिबान के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए दुनिया के मुल्कों को भरोसा नहीं हो रहा है। जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में तालिबान का मुद्दा उठा तो भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि अगर तालिबान इस बात को कहता है कि उसकी धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के प्रचार और प्रसार के लिए नहीं होगा तो जमीनी तौर पर उसे साबित भी करना चाहिए।
'दुनिया के मुल्क एक साथ आएं'
मानवीय जरूरतों के जवाब में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक साथ आना चाहिए।सहायता करने वाले देशों को निर्बाध, अप्रतिबंधित और सीधी पहुंच प्रदान की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के नागरिकों को उन्हें बुनियादी सुविधाएं मिलती रहे हैं इस पर हमें खासा बल देना होगा। अफगानिस्तान में शांति का बने रहना पूरे विश्व समाज के लिए जरूरी है। अशांत अफगानिस्तान या आतंकियों के प्रभाव का खामियाजा पूरी दुनिया को उठाना पड़ेगा। लिहाजा हमें मिलकर इस मुद्दे पर एक साथ खड़ा होना पड़ेगा।
तालिबान के अलग अलग गुटों में खटपट
अफगानिस्तान में तालिबान राज स्थापित होने के बाद भी अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। बताया जा रहा है कि तालिबान के कई गुटों में अलग अलग तरह के मतभेद हैं। हाल ही में एक खबर आई कि मुल्ला गनी बरादर को बंधक तो दूसरी तरफ हैबतुल्ला अखुंदजादा की मौत हो चुकी है, हालांकि इन खबरों की पुष्टि नहीं हुई है। जिस तरह से हक्कानी और बरादर गुट में शासन चलाने के तरीके को लेकर मतभेद सामने आए हैं उसके बाद वैश्विक स्तर पर चिंता और बढ़ी है। जानकार कहते हैं कि अमेरिका यह सोचता था कि अखुंदजादा और बरादर के हाथ में अफगािस्तान की सत्ता होगा। लेकिन हक्कानी नेटवर्क का बढ़ता प्रभाव चिंता की बड़ी वजह है।